Saturday, April 13, 2019
इ शहर में आउर कौनो परेशानी नाही बा (भोजपुरी ग़ज़ल)
Saturday, May 30, 2009
घूम रहे हैं सपने चुराने वाले ~ ~
Friday, May 29, 2009
घोंसले में शायद उसका बच्चा सो रहा होगा ----
Tuesday, May 26, 2009
सूरज की ओर नज़र कर देखिये --

जिन्दगी मुझ सा बसर कर देखिये
बस्ती-ए-कातिल में ठहर कर देखिये
खूं का रंग हो चुका होगा सफ़ेद
ऊँगलियाँ अपनी कुतर कर देखिये
बुलंदियां ख़ुद ब ख़ुद मिल जायेगी
गहराइयों में आप उतर कर देखिये
दर्दे-शिकन मुस्कराकर छुपाते हैं
इनके करीब से गुज़र कर देखिये
तपिश ज़िन्दगी की रूबरू होगी
सूरज की ओर नज़र कर देखिये
Sunday, May 24, 2009
तालों की मुस्तैदी ....

लहूलुहान मनसूबे हो गए, घायल हुई उमंग
जीवन यू हिचकोले लेता जैसे कटी पतंग
मुस्कानों में छिपा रहे ये ज़हरीले दांतों को
आस्तीनों में रहने वाले शातिर बड़े भुजंग
बच के आए दोराहे से चौराहे ने पकड़ लिया
गली-कुचे भी मुसकाकर करने लगे हैं तंग
बहुत भरोसा मत करना इन पहरेदारों पर
बतियाते दिख जायेंगे शातिर चोरों के संग
.
लूटने वाले वाकिफ़ हैं तालों की मुस्तैदी से
हर घर से जोड़ दिया है जाने कितनी सुरंग
पल में तोला, पल में माशा, फेकेंगे ये पासा
पल-पल कैसे बदल रहे हैं गिरगिट जैसे रंग
सौगातों के पीछे देखो खंज़र छुपा हुआ है
शान्ति संदेशों पर मत जाना, छेड़ेंगे ये जंग
Saturday, May 23, 2009
टुकडो में रिश्ते ----

Wednesday, May 20, 2009
ज्वालामुखी पर शहर ---

ज्वालामुखी पर शहर फिर रख आए हैं
इनके मुँह पर लगा खून कह रहा है
दोपाये के वेश में छुपे ये चौपाए हैं
क़त्ल करके अट्टहास लगा रहे थे जो
मातमपुर्सी में आज वे नज़र आए हैं
ये तो ढूढने गए थे अपने अज़ीज़ो को
गुमशुदा इश्तहारों में ख़ुद ही को पाए हैं
बिके हुए लोगों को देखिये तो ज़रा
सेहरे में आज अपना चेहरा छुपाए हैं
Tuesday, May 19, 2009
घर से बाहर निकालिए .....

घर से तो बाहर निकलिए ज़नाब
यूं ही तो हाथ मत मलिए ज़नाब
सफर में हैं ठोकरों से क्या डरना
संभालिये औ ख़ुद संभलिए ज़नाब
थकन तो काफूर हो जायेगी पल में
बच्चों सा निष्कपट उछलिए ज़नाब
इतनी बेरुखी अच्छी नहीं होती हैं
बर्फ सा आप भी पिघलिए ज़नाब
रोशन करने के लिए किसी को –
चिराग सा आप भी ज़लिए ज़नाब
चाँद-तारे तो फितरत हैं ख्वाबों के
ख़ुद को बेवज़ह न छलिए ज़नाब
महज़ आरजू से मंजिल न मिलेगी
खुरदरे ज़मीन पर ही चलिए ज़नाब
Monday, May 18, 2009
बेरहम ने कुतर दिया ..

ज़ालिम इन आधियो का कहर देखिए
Thursday, May 14, 2009
बिस्तरों पर अजगर ------

समुंदर में वे पूरा शहर रखते हैं
हालात पर फिर नज़र रखते हैं
मरीज़ की हालत सुधरे भी कैसे
दवा की जगह वे ज़हर रखते हैं
कर रहे हैं होशों-हवास का दावा
जो कदम इधर, कभी उधर रखते हैं
हर बात में सूखे पत्ते सा कांपते हैं
जो कहते हैं शेर का जिगर रखते हैं
बड़े फख्र से फिर वही दुहराते हैं
दाव में बीबी-बच्चे, घर रखते हैं
वे ही मिलेंगे ख़बरों की सुर्खियों में
जो सारे ज़हान की ख़बर रखते हैं
सोते रहोगे कब तक, देखो तो
बिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं
Wednesday, May 13, 2009
सामने चिकने घड़े हैं ....

Tuesday, May 12, 2009
लूट ली अस्मत उसकी .....

ख़ुद ही के ज़ख्मों पर नमक लगाते रहिए
अब तो आँखें खोलिए जिस्म हिलाते रहिए
आप से क्या मतलब, बस मुस्कुराते रहिए
रोटियों की क्या फिक्र, रोटियां महफूज़ हैं
महज़ इतना करिए कि दुम हिलाते रहिए
नफरती खंज़र पहचान न लें अजीजों को
मुलम्मा मज़हबी ज़हर का चढाते रहिए
ज़श्ने आज़ादी में इनको भी बुलाते रहिए
रह-रह कर इन्हें सब्जबाग दिखाते रहिए