प्रश्न सूंघते से खड़े हैं
उत्तर उंघते से पड़े हैं
हर शिलालेख के नीचे
अनगिनत लाश गड़े हैं
वह कब का जा चुका हैं
किसको कसकर पकड़े हैं?
ये दरख्त बुलंद होंगी ही
रूह तक इनकी जड़े हैं
जो कह रहे थे भागने को
यकीन मानो वही जकड़े हैं
संगतराश जाओगे कैसे?
राह में देखो बुत अड़े हैं
क्यों बहाते हो बेवज़ह आसू
सामने जब चिकने घड़े हैं
वही एकता के गीत गाते हैं
जो ख़ुद ही टुकड़े-टुकड़े हैं
1 comment:
हुज़ूर आपका भी ....एहतिराम करता चलूं .......
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
कृपया अधूरे व्यंग्य को पूरा करने में मेरी मदद करें।
मेरा पता है:-
www.samwaadghar.blogspot.com
शुभकामनाओं सहित
संजय ग्रोवर
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