समुंदर में वे पूरा शहर रखते हैं
हालात पर फिर नज़र रखते हैं
मरीज़ की हालत सुधरे भी कैसे
दवा की जगह वे ज़हर रखते हैं
कर रहे हैं होशों-हवास का दावा
जो कदम इधर, कभी उधर रखते हैं
हर बात में सूखे पत्ते सा कांपते हैं
जो कहते हैं शेर का जिगर रखते हैं
बड़े फख्र से फिर वही दुहराते हैं
दाव में बीबी-बच्चे, घर रखते हैं
वे ही मिलेंगे ख़बरों की सुर्खियों में
जो सारे ज़हान की ख़बर रखते हैं
सोते रहोगे कब तक, देखो तो
बिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं
4 comments:
bahut khoob, verma ji, behatareen.
वर्मा जी, यकीन मानिए आपकी हर गजल लाजवाब होती है।
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ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
नाइट शिफ्ट की कीमत..
हर बात में सूखे पत्ते सा कांपते हैं
जो कहते हैं शेर का जिगर रखते
वे ही मिलेंगे ख़बरों की सुर्खियों में
जो सारे ज़हान की ख़बर रखते हैं
बहुत सटीक गज़ल ...
बहुत खूब।
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