घर से बाहर निकालिए .....
घर से तो बाहर निकलिए ज़नाब
यूं ही तो हाथ मत मलिए ज़नाब
सफर में हैं ठोकरों से क्या डरना
संभालिये औ ख़ुद संभलिए ज़नाब
थकन तो काफूर हो जायेगी पल में
बच्चों सा निष्कपट उछलिए ज़नाब
इतनी बेरुखी अच्छी नहीं होती हैं
बर्फ सा आप भी पिघलिए ज़नाब
रोशन करने के लिए किसी को –
चिराग सा आप भी ज़लिए ज़नाब
चाँद-तारे तो फितरत हैं ख्वाबों के
ख़ुद को बेवज़ह न छलिए ज़नाब
महज़ आरजू से मंजिल न मिलेगी
खुरदरे ज़मीन पर ही चलिए ज़नाब
3 comments:
अच्छी गजल, मक्ता बहुत अच्छा लगा
वीनस केसरी
शुक्रिया --- आपकी रचनाए पढी सुन्दर है.
achi gjal .akhiri sher bhut khoob.
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