बुधवार, 3 मार्च 2010

जबसे आँख लगी है ~~

हर घर के सामने

एक कार खड़ी है

यूँ तो जिन्दगी खुद

उधार पड़ी है

~~~~~~~

लोग 'आँख लगने' को

कहते हैं सो जाना

पर

जबसे आँख लगी है

तड़पता हूँ मैं सोने को.

38 टिप्‍पणियां:

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

सुंदर क्षणिकाएँ... हर कड़ी में छुपी है एक लाज़वाब भाव...भावों को शब्दों का रूप देना कोई आप से सीखे...
वर्मा जी बहुत बहुत धन्यवाद...

डॉ टी एस दराल ने कहा…

यूँ तो जिन्दगी खुद उधार पड़ी है ~~~~~

सही कहा , ये जिंदगी उधार की ही तो है।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

वर्मा जी , घडी को ठीक कर लीजिये ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अलंकारित पोस्ट के लिए शुभकामनाएँ!

Himanshu Pandey ने कहा…

बेहतरीन !
शीर्षक क्षणिका ने तो मुग्ध कर दिया । सँजोये हुए भाव ! आभार ।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आँख लगने का अच्छा प्रयोग.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Dard uker diya aapne..

रानीविशाल ने कहा…

Behatreen Kshanikaae...Aabhar!!

Razia ने कहा…

वाह क्या बात है
दोनों क्षणिकाएँ शानदार

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आँख लगने का बढ़िया कथन....दोनों क्षणिकाएं गज़ब हैं....

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा व लाजवाब क्षणिकाएँ लगीं ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बढ़िया भाव वर्मा जी ,
लोंन लेके गाडी खरीदी, बाहर गली में खडी की, क्योंकि घर में तो जगह ही नहीं है , दूसरी गाडी मुश्किल से क्रॉस हो पाती है चिंता है कोई ठोक न दे , तो भाईसहाब आँख भी लग जाए तो गनीमत !!!! :)

निर्मला कपिला ने कहा…

vaah bahut khoob | shubhakaamanaayeM

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बढ़िया सुंदर भाव के साथ....सुंदर रचना...

बेनामी ने कहा…

सुन्दर अर्थपरक क्षणिकाएँ

संजय भास्‍कर ने कहा…

आँख लगने का अच्छा प्रयोग.

Satish Saxena ने कहा…

कहाँ लगी यह तो बताया नहीं ......?

kshama ने कहा…

Bahut khoob! Gagarme sagar!

vandana gupta ने कहा…

लोग 'आँख लगने' को कहते हैं सो जाना पर जबसे आँख लगी है तड़पता हूँ मैं सोने को.

kya baat kahi hai.........ati sundar.

Kusum Thakur ने कहा…

लोग 'आँख लगने' को कहते हैं सो जाना पर जबसे आँख लगी है तड़पता हूँ मैं सोने को.

वाह .....बहुत ही अच्छी है आपकी रचना !!

Jyoti ने कहा…

जबसे आँख लगी है तड़पता हूँ मैं सोने को. सुंदर क्षणिकाएँ

सदा ने कहा…

हर पंक्ति में गहरे भाव, बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

शरद कोकास ने कहा…

उधार की कार ? उधार का जीवन

shikha varshney ने कहा…

waah aankh ke lagne -lagne main bhi kitna farak hota hai...bahut sundar rachna.

Pawan Kumar ने कहा…

लोग 'आँख लगने' को कहते हैं सो जाना
पर जबसे आँख लगी है तड़पता हूँ मैं सोने को.
.............बहुत प्यारी क्षणिका है दोस्त.............ऐसे ही लिखते रहिये........आगे भी इसी तरह की रचनाओं का इन्तिज़ार रहेगा

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही शानदार.

रामराम.

कडुवासच ने कहा…

.....सुन्दर रचनाएं!!!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा बात कही!

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

wah. wah.

Unknown ने कहा…

wah, lajwaab

वाणी गीत ने कहा…

ये आँख भी खूब लगी ....
घर के बाहर कार कड़ी हो तो उधार की लगती है ..??
कल से अन्दर रख देंगे ...:)

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

sunder kshanikaye...bahut gehri baate keh di.

ज़मीर ने कहा…

Bahut hi sundar gazal,Badhai.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह वर्मा जी ... जब से आख लगी है ... सो नही पाता .... लाजवाब .. क्या बात है ...

तब देख के छुपते थे ... अब देखते हैं छुप कर ...

अजय कुमार ने कहा…

जिंदगी उधार पड़ी है--

जिंदगी की गाथा है ,बधाई

Urmi ने कहा…

वाह कम शब्दों में आपने सब कुछ कह दिया है! बेहद पसंद आया! अत्यंत सुन्दर प्रस्तुती !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह जी बहुत सुंदर

Jyoti ने कहा…
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