गुरुवार, 4 मार्च 2010

चूनर जब सरकी

लाज से

पलकें झुकी

चूनर सर की

जब सरकी

***

एक अरसे से वह

आई ना

अब तो मैनें छोड़ दिया है

देखना भी

आईना

***

उसने

उसकी बात पर

तवज्जो न दी

देखिये

निगाहों से

बहने लगी नदी

~~~

39 टिप्‍पणियां:

अजय यादव ने कहा…

भाई साहब ये क्या है...अब यह मत सोचिएगा कि आपने दिल की गहराई से लिखा और मुझे समझ नहीं आया...जो मन में आ गया उसे महान मानने के भ्रम में रहना छोड़िए...कुछ अच्छा लिखिए...भगवान आपकी मन ठंठक पहुंचाएं...

अमिताभ मीत ने कहा…

बहुत खूब भाई.... क्या बात है !!

Satish Saxena ने कहा…

यहाँ भी पश्चाताप, और पुरानी यादें ...बहुत खूब भाई जी !
लगता है कोई महा विद्वान्, गली से झूमते हुए, टहलते हुए , आपको अच्छी नसीहत दे गए हैं वर्मा जी ! अब सिर्फ नाईस और हो जाये तो ....हा...हा...हा...
बुरा न मानो होली है ...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

दिल गहराइयों से लिखी .....बहुत सुंदर रचना...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी ये क्षणिकाएं पढ़ कर डॉ. सरोजनी प्रीतम कि क्षणिकाएं याद आ गयीं....

आपने बहुत सुन्दर रचनाएँ लिखी हैं....बधाई

kshama ने कहा…

Saral,sundar rachana!

shikha varshney ने कहा…

baut khubsurat kashanikayen hain..nayaab..

रानीविशाल ने कहा…

Bahut khubsurat gahare bhaav liye in kshanikaao ke liye dhanywaad!

Himanshu Pandey ने कहा…

सुन्दर क्षणिकाएं ! आभार !

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सुंदरतम क्षणिकाएं.

रामराम.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बढ़िया संजोया वर्मा जी ,

वैसे "उसने छोड़ दिया ...... की जगह 'हमने भी छोड़ दिया .... होता तो और बेहतर !!

seema gupta ने कहा…

सुन्दर...
regards

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi khoobsurat prastuti

डॉ टी एस दराल ने कहा…

वर्मा जी , बढ़िया शब्दों की कलाकारी पेश की है। लुत्फ़ आ गया ।

vandana gupta ने कहा…

gazab ki prastuti.

अजय कुमार ने कहा…

कम शब्दों में सुंदर अभिव्यक्ति

ज्योति सिंह ने कहा…

उसने

उसकी बात पर

तवज्जो न दी

देखिये

निगाहों से

बहने लगी नदी
baat chhoo gayi ,sundar rachna

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Varma Sir.. kshanikayen mazedaar hain..

Urmi ने कहा…

वाह अद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ! बिल्कुल सही कहा है आपने! बेहद पसंद आया आपकी ये भावपूर्ण रचना!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह आई न ... क्या प्रयोग है ... एक ग़ज़ल का शेर याद आ गया ..

इधर मंदिर, इधर मस्जिद, इधर गुरुद्वार, इधर गिरजा
खुदा के ये सभी घर हैं, जिधर चाहे उधर गिरजा ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

दिल गहराइयों से लिखी .....बहुत सुंदर रचना...

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

एक से बढ़ कर एक खूबसूरत भावपूर्ण क्षणिकाएँ....बढ़िया लगी..धन्यवाद

"अर्श" ने कहा…

तीनो रचनाओं में तिन शब्दों से जिस तरह से आपने इन रचनाओं को मूल रूप दिया है अपने आप में नया तज़रबा है ...मुझे तो भई अछि लगीं... बधाई कुबूल करें...


अर्श

श्यामल सुमन ने कहा…

संगीता स्वरूप जी ने बिल्कुल ठीक कहा है। सरोजिनी प्रीतम जी की पंक्तियाँ हैं कि-

सालों की मिहनत सालों की कमाई
सालों ने मिलकर सालों तक खाई

एक और उन्हीं की क्षणिका-

हलवाई की बेटी वृक्षारोपण कार्यक्रम में जाती है
वे पेड़ों की बात बताते हैं ये पेड़ों की समझ जाती है

बहुत अच्छा वर्मा भाई।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

छोटे- छोटे भावों को बड़े करीने से पिरोया है आपने ....कुछ-कुछ हाइकू की तरह ......!१

कल हिंद युग्म में भी आपकी बड़ी अच्छी सी नज़्म पढ़ी .....!!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

एक बार फिर आई हूँ .....
ये अजय जी की टिपण्णी देखी नहीं थी .....रहा नहीं गया इतनी गहरी पकड़ पर ये प्रतिक्रिया देख ......
शायद वो समझ नहीं पाए इनके भाव ....कम शब्दों में तीखा प्रहार ....बहुत कम लोग इस दक्षता में परिपूर्ण होते हैं ....!!

Bhawna ने कहा…

बहुत खूब....

सदा ने कहा…

गहरे भाव लिये हुये सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

निर्मला कपिला ने कहा…

उसने

उसकी बात पर

तवज्जो न दी

देखिये

निगाहों से

बहने लगी नदी
वाह बहुत अच्छी लगी ये क्षणिका और पहली भी सुन्दर है
बधाई आपको।

Manish ने कहा…

kafi achchhi hai...

zazbaat par pahli baar aana huaa hai... :) :)

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

एक अरसे से वह आई ना अब तो मैनें छोड़ दिया है देखना भी आईना touching..

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

mere blog par aane ke liye dhanyvad.
suman 'meet'

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

kam shabdon me behat samvedansheel abhivyakti ! pehli baar apke blog par aayaa aur abhibhoot ho gaya !

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

shabdon ka ye khel mujhe achha laga...khel khel me apni baat bhi keh diye...wah!

Asha Joglekar ने कहा…

श्लेष का सुंदर उपयोग करती प्रभावी रचना । मराठी के मोरोपंत जी की याद दिला दी ।

तिलक राज कपूर ने कहा…

लाज से
पलकें झुकी
चूनर सर की
जब सरकी
कहॉं खो गयी ये अलंकारिक शैली।

तिलक राज कपूर ने कहा…

लाज से
पलकें झुकी
चूनर सर की
जब सरकी
कहॉं खो गयी ये अलंकारिक शैली।

Unknown ने कहा…

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