बढ़िया भाव वर्मा जी , लोंन लेके गाडी खरीदी, बाहर गली में खडी की, क्योंकि घर में तो जगह ही नहीं है , दूसरी गाडी मुश्किल से क्रॉस हो पाती है चिंता है कोई ठोक न दे , तो भाईसहाब आँख भी लग जाए तो गनीमत !!!! :)
लोग 'आँख लगने' को कहते हैं सो जाना पर जबसे आँख लगी है तड़पता हूँ मैं सोने को. .............बहुत प्यारी क्षणिका है दोस्त.............ऐसे ही लिखते रहिये........आगे भी इसी तरह की रचनाओं का इन्तिज़ार रहेगा
38 comments:
सुंदर क्षणिकाएँ... हर कड़ी में छुपी है एक लाज़वाब भाव...भावों को शब्दों का रूप देना कोई आप से सीखे...
वर्मा जी बहुत बहुत धन्यवाद...
यूँ तो जिन्दगी खुद उधार पड़ी है ~~~~~
सही कहा , ये जिंदगी उधार की ही तो है।
वर्मा जी , घडी को ठीक कर लीजिये ।
अलंकारित पोस्ट के लिए शुभकामनाएँ!
बेहतरीन !
शीर्षक क्षणिका ने तो मुग्ध कर दिया । सँजोये हुए भाव ! आभार ।
आँख लगने का अच्छा प्रयोग.
Dard uker diya aapne..
Behatreen Kshanikaae...Aabhar!!
वाह क्या बात है
दोनों क्षणिकाएँ शानदार
आँख लगने का बढ़िया कथन....दोनों क्षणिकाएं गज़ब हैं....
बहुत ही उम्दा व लाजवाब क्षणिकाएँ लगीं ।
बढ़िया भाव वर्मा जी ,
लोंन लेके गाडी खरीदी, बाहर गली में खडी की, क्योंकि घर में तो जगह ही नहीं है , दूसरी गाडी मुश्किल से क्रॉस हो पाती है चिंता है कोई ठोक न दे , तो भाईसहाब आँख भी लग जाए तो गनीमत !!!! :)
vaah bahut khoob | shubhakaamanaayeM
बढ़िया सुंदर भाव के साथ....सुंदर रचना...
सुन्दर अर्थपरक क्षणिकाएँ
आँख लगने का अच्छा प्रयोग.
कहाँ लगी यह तो बताया नहीं ......?
Bahut khoob! Gagarme sagar!
लोग 'आँख लगने' को कहते हैं सो जाना पर जबसे आँख लगी है तड़पता हूँ मैं सोने को.
kya baat kahi hai.........ati sundar.
लोग 'आँख लगने' को कहते हैं सो जाना पर जबसे आँख लगी है तड़पता हूँ मैं सोने को.
वाह .....बहुत ही अच्छी है आपकी रचना !!
जबसे आँख लगी है तड़पता हूँ मैं सोने को. सुंदर क्षणिकाएँ
हर पंक्ति में गहरे भाव, बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
उधार की कार ? उधार का जीवन
waah aankh ke lagne -lagne main bhi kitna farak hota hai...bahut sundar rachna.
लोग 'आँख लगने' को कहते हैं सो जाना
पर जबसे आँख लगी है तड़पता हूँ मैं सोने को.
.............बहुत प्यारी क्षणिका है दोस्त.............ऐसे ही लिखते रहिये........आगे भी इसी तरह की रचनाओं का इन्तिज़ार रहेगा
बहुत ही शानदार.
रामराम.
.....सुन्दर रचनाएं!!!
बहुत उम्दा बात कही!
wah. wah.
wah, lajwaab
ये आँख भी खूब लगी ....
घर के बाहर कार कड़ी हो तो उधार की लगती है ..??
कल से अन्दर रख देंगे ...:)
sunder kshanikaye...bahut gehri baate keh di.
Bahut hi sundar gazal,Badhai.
वाह वर्मा जी ... जब से आख लगी है ... सो नही पाता .... लाजवाब .. क्या बात है ...
तब देख के छुपते थे ... अब देखते हैं छुप कर ...
जिंदगी उधार पड़ी है--
जिंदगी की गाथा है ,बधाई
वाह कम शब्दों में आपने सब कुछ कह दिया है! बेहद पसंद आया! अत्यंत सुन्दर प्रस्तुती !
वाह जी बहुत सुंदर
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