मारो-मारो
भागने न पाये
इधर गया है
उठा लो साले को !
और वह वह उनसे बचता
भागता रहा निरंतर;
सारी-सारी रात
वह उनकी आहटें सुनता
और जागता रहा निरन्तर;
ज़रा सी आवाज़ पर
वह चौंकन्ना हो जाता था,
हर फुसफुसाहट
उसे मजबूर कर देती
फिर भागने को
कब तक भागता !
कहीं तो रूकना ही था
प्रतिकार का तमंचा लेकर
आखिर रूका वह
अपने कमरे में बेखौफ
और इस बार शायद
न भागने के लिये रूका था
तीसरी मंज़िल के अपने कमरे में
वह खूब लड़ा
इन पीछा करने वालों से;
इनकी आवाज़ों से;
और वह जीत गया.
उसने हरा दिया उन सबको
खिड़की के रास्ते
उन डरावनी आवाज़ों को
बाहर ढकेल दिया.
और अब कितना सुकून है
खून के तालाब में डूबे
कम्पाउण्ड में पड़े
भागने न पाये
इधर गया है
उठा लो साले को !
और वह वह उनसे बचता
भागता रहा निरंतर;
सारी-सारी रात
वह उनकी आहटें सुनता
और जागता रहा निरन्तर;
ज़रा सी आवाज़ पर
वह चौंकन्ना हो जाता था,
हर फुसफुसाहट
उसे मजबूर कर देती
फिर भागने को
कब तक भागता !
कहीं तो रूकना ही था
प्रतिकार का तमंचा लेकर
आखिर रूका वह
अपने कमरे में बेखौफ
और इस बार शायद
न भागने के लिये रूका था
तीसरी मंज़िल के अपने कमरे में
वह खूब लड़ा
इन पीछा करने वालों से;
इनकी आवाज़ों से;
और वह जीत गया.
उसने हरा दिया उन सबको
खिड़की के रास्ते
उन डरावनी आवाज़ों को
बाहर ढकेल दिया.
और अब कितना सुकून है
खून के तालाब में डूबे
कम्पाउण्ड में पड़े
उसकी लाश के चेहरे पर।
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27 comments:
संवेदनशील कविता
बेहद समवेदनशील रचना!
या वो हार गया...जिन्दगी से? चाहे जीत गया लोगो से
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है। शुभकामनायें
bahut hi maarmik aur samvedansheel kavita hai...
पता नहीं वह जीता या मौत!
मृत्यु की गोद में हर कोई सुकून पाता है फिर भी मनुष्य मौत से डरता है!!!!!
nihshabd hun......kuch kahna us sukun ko kuredna hoga
सुंदर भावपूर्ण कविता..संवेदना निहित कविता दिल लेती है...धन्यवाद कविता बहुत बढ़िया लगी..
... prabhaavashaali rachanaa !!!
Verma ji kaun the ve log? mara kyon use? hila dene wali kavita hai... khaskar ant.
Jai Hind
दीपक जी
वास्तव में यह उसके अवचेतन मस्तिष्क की उपज थी यह मेरे मित्र की सच्ची दास्तान है. (बिलकुल सच्ची)
यहाँ मैनें उसे तीसरी मंजिल से नीचे गिरना दर्शाया है पर वास्तव में उसने खुद को गोली मार ली थी.
दिमागी उपज या फिर सचमुच किसी की कहानी है जनाव ? जो भी है सोच और प्रस्तुति बहुत उम्दा है !
bahut hi samvedansheel rachna........nishabd kar diya.
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ।
अपने भीतर भी तो न जाने कितनी बार व्यक्ति और न भाग कर स्वीकार कर लेता है सम्मुख उपस्थित नियति !
झकझोर के रख दिया आपकी कविता ने.
अत्यंत मार्मिक और संवेदंशील.
आखिर कबतक भागेगा आदमी....!
बेहतरीन अंत
बहुत कुछ सोचने के लिए विवश कर देती है आपकी कविता
दर्द जो आपने सहा उसके लिए गहरी संवेदना..
बहुत सुन्दर एवम भावपूर्ण कविता---हार्दिक बधाई।
डा0हेमन्त कुमार
जिंदगी के विकृत यथार्थ को आपने जिस बेबाकी से प्रस्तुत किया है, वह व्यक्ति को झिंझोड देता है। यही कविता की ताकत है, यही कविता की शक्ति है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील रचना लिखा है आपने! अच्छा लगा! इतनी गहराई के साथ आपने रचना को प्रस्तुत किया है कि मैं इतना कहूंगी आपकी लेखनी को सलाम!
Nistabdh tatha Nihshabd hun....
कविता पढ़ कर सहम गया मन।
समवेदनशील रचना के लिए आभार!
आदरणीय वर्मा जी,
काफी दुखद अभिव्यक्ति है...ऐसा प्रतीत होता हैं की निराशा के रंग मं डूबी हुई है... मन में के पीडादायी भाव छोड़ गयी...
आखिर कबतक भागेगा आदमी....!
बेहतरीन अंत
बहुत कुछ सोचने के लिए विवश कर देती है आपकी कविता
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति
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