Wednesday, October 28, 2009

और वह जीत गया ~~




मारो-मारो
भागने न पाये
इधर गया है
उठा लो साले को !

और वह वह उनसे बचता
भागता रहा निरंतर;
सारी-सारी रात
वह उनकी आहटें सुनता
और जागता रहा निरन्तर;
ज़रा सी आवाज़ पर
वह चौंकन्ना हो जाता था,
हर फुसफुसाहट
उसे मजबूर कर देती
फिर भागने को

कब तक भागता !
कहीं तो रूकना ही था
प्रतिकार का तमंचा लेकर
आखिर रूका वह
अपने कमरे में बेखौफ
और इस बार शायद
न भागने के लिये रूका था

तीसरी मंज़िल के अपने कमरे में
वह खूब लड़ा
इन पीछा करने वालों से;
इनकी आवाज़ों से;
और वह जीत गया.
उसने हरा दिया उन सबको
खिड़की के रास्ते
उन डरावनी आवाज़ों को
बाहर ढकेल दिया.

और अब कितना सुकून है
खून के तालाब में डूबे
कम्पाउण्ड में पड़े
उसकी लाश के चेहरे पर।
~~

27 comments:

अजय कुमार said...

संवेदनशील कविता

ओम आर्य said...

बेहद समवेदनशील रचना!

राज भाटिय़ा said...

या वो हार गया...जिन्दगी से? चाहे जीत गया लोगो से

निर्मला कपिला said...

बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है। शुभकामनायें

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bahut hi maarmik aur samvedansheel kavita hai...

Gyan Dutt Pandey said...

पता नहीं वह जीता या मौत!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

मृत्यु की गोद में हर कोई सुकून पाता है फिर भी मनुष्य मौत से डरता है!!!!!

रश्मि प्रभा... said...

nihshabd hun......kuch kahna us sukun ko kuredna hoga

विनोद कुमार पांडेय said...

सुंदर भावपूर्ण कविता..संवेदना निहित कविता दिल लेती है...धन्यवाद कविता बहुत बढ़िया लगी..

कडुवासच said...

... prabhaavashaali rachanaa !!!

दीपक 'मशाल' said...

Verma ji kaun the ve log? mara kyon use? hila dene wali kavita hai... khaskar ant.

Jai Hind

M VERMA said...

दीपक जी
वास्तव में यह उसके अवचेतन मस्तिष्क की उपज थी यह मेरे मित्र की सच्ची दास्तान है. (बिलकुल सच्ची)
यहाँ मैनें उसे तीसरी मंजिल से नीचे गिरना दर्शाया है पर वास्तव में उसने खुद को गोली मार ली थी.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

दिमागी उपज या फिर सचमुच किसी की कहानी है जनाव ? जो भी है सोच और प्रस्तुति बहुत उम्दा है !

vandana gupta said...

bahut hi samvedansheel rachna........nishabd kar diya.

सदा said...

बहुत ही मार्मिक प्रस्‍तुति ।

अभिषेक आर्जव said...

अपने भीतर भी तो न जाने कितनी बार व्यक्ति और न भाग कर स्वीकार कर लेता है सम्मुख उपस्थित नियति !

Razia said...

झकझोर के रख दिया आपकी कविता ने.
अत्यंत मार्मिक और संवेदंशील.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आखिर कबतक भागेगा आदमी....!
बेहतरीन अंत
बहुत कुछ सोचने के लिए विवश कर देती है आपकी कविता
दर्द जो आपने सहा उसके लिए गहरी संवेदना..

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

बहुत सुन्दर एवम भावपूर्ण कविता---हार्दिक बधाई।
डा0हेमन्त कुमार

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जिंदगी के विकृत यथार्थ को आपने जिस बेबाकी से प्रस्तुत किया है, वह व्यक्ति को झिंझोड देता है। यही कविता की ताकत है, यही कविता की शक्ति है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Urmi said...

बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील रचना लिखा है आपने! अच्छा लगा! इतनी गहराई के साथ आपने रचना को प्रस्तुत किया है कि मैं इतना कहूंगी आपकी लेखनी को सलाम!

रंजना said...

Nistabdh tatha Nihshabd hun....

रानी पात्रिक said...

कविता पढ़ कर सहम गया मन।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

समवेदनशील रचना के लिए आभार!

Sudhir (सुधीर) said...

आदरणीय वर्मा जी,

काफी दुखद अभिव्यक्ति है...ऐसा प्रतीत होता हैं की निराशा के रंग मं डूबी हुई है... मन में के पीडादायी भाव छोड़ गयी...

संजय भास्‍कर said...

आखिर कबतक भागेगा आदमी....!
बेहतरीन अंत
बहुत कुछ सोचने के लिए विवश कर देती है आपकी कविता

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही मार्मिक प्रस्‍तुति