रविवार, 28 मार्च 2010

लुटा अपनी रिश्तेदारी में ~~~~

सारी उम्र कटी यूँ तो सिपहसालारी में

मारा गया बेरहमी से मगर वो यारी में

.

इम्तहान तो था महज़ कुछ घंटों का

पूरा साल निकल गया देखो तैयारी में

.

बहुत ढूढ़ा खोया था जो इकलौता बीज

अंकुरित हुआ तो मिला इस क्यारी में

.

बीहड़ों में से हो आया बेखौफ मुसाफिर

लुटा तो आकर वो अपनी रिश्तेदारी में

.

लहुलुहान हर फूल है देखो दुबका हुआ

जब से कैक्टस आ पहुँचा फुलवारी में

.

बेमौत मरा पीठ पर खाकर वो गोली

पेट की खातिर खोखे चुनते चाँदमारी में

.

कितने मासूम परस्त हैं यहाँ के लोग

देखना हो आकर देखो तुम निठारी में

38 टिप्‍पणियां:

shama ने कहा…

सारी उम्र कटी यूँ तो सिपहसालारी में

मारा गया बेरहमी से मगर वो यारी में

.

इम्तहान तो था महज़ कुछ घंटों का

पूरा साल निकल गया देखो तैयारी में
Aapke lekhan pe comment karun itni qabiliyat hi nahi mujhme!Sirf ek shabd...gazab!

Razia ने कहा…

लहुलुहान हर फूल है देखो दुबका हुआ
जब से कैक्टस आ पहुँचा फुलवारी में
क्या कहूँ इन शानदार शेरो के लिये

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना जी

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
verma ji aapki tareef ke liye....

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत शानदार गज़ल है, वाह!

मनोज कुमार ने कहा…

इम्तहान तो था महज़ कुछ घंटों का
पूरा साल निकल गया देखो तैयारी में
एक से बढकर एक शे’र से सजी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

एक एक शेर बहुत खूब है....

कितने मासूम परस्त हैं यहाँ के लोग
देखना हो आकर देखो तुम निठारी में

बहुत संवेदनशील....

sonal ने कहा…

मोती चुन कर लाये है आप बहुत खूब

कडुवासच ने कहा…

बहुत ढूढ़ा खोया था जो इकलौता बीज
अंकुरित हुआ तो मिला इस क्यारी में
...बेहतरीन,लाजबाव गजल, बधाईंया!!!!

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

वाणी गीत ने कहा…

मासूम परस्ती देखनी हो देखें आकर निठारी में ...
इस पंक्ति पर तो बस दिल ही बैठ जाता है ....युत तो सरे शेर लाजवाब हैं ....
आभार ...!!

वाणी गीत ने कहा…

@ यूँ तो सारे

Jyoti ने कहा…

इम्तहान तो था महज़ कुछ घंटों का पूरा साल निकल गया देखो तैयारी में ... ..
बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

jitni bhi tareef ki jaye kam hai.. bas sirf chandmari ka matlab na pata hone ki wajah se wahin thoda thithka. abhar

pallavi trivedi ने कहा…

बेमौत मरा पीठ पर खाकर वो गोली

पेट की खातिर खोखे चुनते चाँदमारी में

very nice and very original...

vandana gupta ने कहा…

bahut hi gahan aur umda prastuti.........har sher lajawaab.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi badhiyaa sanyojan

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बीहड़ो में से हो आया बेख़ौफ़ मुसाफिर
लुटा भी तो आकर रिश्तेदारी में
बहुत खूब वर्मा साहब !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गज़ब का लिखा है । पूर्णतः सच और सामयिक ।

समय चक्र ने कहा…

इम्तहान तो था महज़ कुछ घंटों का
पूरा साल निकल गया देखो तैयारी में

बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना आभार ...

Urmi ने कहा…

बहुत ढूढ़ा खोया था जो इकलौता बीज
अंकुरित हुआ तो मिला इस क्यारी में
बीहड़ों में से हो आया बेखौफ मुसाफिर
लुटा तो आकर वो अपनी रिश्तेदारी में
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! दिल को छू गयी आपकी ये भावपूर्ण रचना! बहुत बढ़िया लगा! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ज्वलंत मुद्दों को उठाया है आपने हर शेर में ... आम आदमी से जुड़े शेर ... बहुत ही ग़ज़ब की अभिव्यक्ति वर्मा जी ...

अजय कुमार ने कहा…

एक से एक बेहतरीन शेर , मजा आ गया

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

Imtehaan to tha mahaz kuchh ghanton ka,
Poora saal nikal gaya dekho taiyyari mein!!!
Wah!
Nithari se aapka matlab Noida/Ghaziabad wale Nithari se hai shayad!
Phr se dukh hua!

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

varma ji behtareen..bahut badhiya gazal prstut kiya aapne main pahunch nahi paya tha aapke blog par kshama kare..aur jaise hi paya jaise khajana mila....sundar bhav..dhanywaad vamra ji

Dr. Shashi Singhal ने कहा…

बहुत याद की और जोर डाला दिमाग पर
किंतु
किंतु एक लाइन भी न गुनगुना सकी
वजह यही रही कि इन बेहतरीन व भावपूर्ण लाइनों
का जिक्र तक न कर सकी अपने ब्लॉग पर
क्षमा करें ....
यूं तो कविता की हर लाइन अपनेआप में भावपूर्ण है मगर अंतिम लाइनों
"कितने मासूम परस्त हैं यहाँ के लोग देखना हो आकर देखो तुम निठारी में"
को सुनकर निठारी का कुकृत्य आंखों के सामने छा गया ....,

Prem Farukhabadi ने कहा…

बीहड़ों में से हो आया बेखौफ मुसाफिर
लुटा तो आकर वो अपनी रिश्तेदारी में

bahut hi sundar Verma ji.

BrijmohanShrivastava ने कहा…

वाह | घर वालों ने प्यार जता कर गैरों ने मक्कारी से /मुझको तो मिल जुल कर लूटा सबने बारी बारी से |

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बहुत ढूढ़ा खोया था जो इकलौता बीज
अंकुरित हुआ तो मिला इस क्यारी में

sabse pasandida ......!!
लहुलुहान हर फूल है देखो दुबका हुआ
जब से कैक्टस आ पहुँचा फुलवारी में

waah.....!!

kaise pakad lete hain itani gahrai se ......??

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

कितने मासूम परस्त हैं यहाँ के लोग
देखना हो आकर देखो तुम निठारी में
....बहुत सही लिखा अंकल जी...

arvind ने कहा…

लहुलुहान हर फूल है देखो दुबका हुआ
जब से कैक्टस आ पहुँचा फुलवारी में
......बहुत सुंदर रचना

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

कितने मासूम परस्त हैं यहाँ के लोग

देखना हो आकर देखो तुम निठारी में

Padhkar aansoo nikal aye...ye kaisa sach likh diya aapne..sharm se har insaan ka sar jhuk jana chahiye..(agar thodi si insaniyat bachi ho to)!

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुती ! निठारी याद आई तो घाव हरे हो गये !आभार !

Kulwant Happy ने कहा…

कवि को सलाम। रचना को सजदा।
हर शब्द, है अलहदा।
और क्या कहूँ।

Akanksha Yadav ने कहा…

खूब लिखा आपने. मनोभावों की विलक्षण दुनिया..बेहतरीन.

_________
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CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

mast!!!!!!!!

Reetika ने कहा…

kya khoob likha hai..