खाना नाही,
बिजली आउर पानी नाही बा
इ शहर में आउर
कौनो परेशानी नाही बा
मनई क देखा कान
कुतर देहलेस चुहवा
लागेला कि इ
शहर में चूहेदानी नाही बा
देखे के
पहलवान जैसन लोग दिख जालन
सच सुना कि इहा
मगर जवानी नाही बा
इज्जत आबरू क लूटन
रोज क बात हौ
बतावा के कही
कि इ राजधानी नाही बा
हिस्से में इनके किस्सा-कहानी नाही हौ
काहें कि संगे
इनके बुढ़िया नानी नाही बा
9 comments:
वाह..अद्भुत ग़ज़ल...
आपकी लिखी रचना रविवार 14 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर गज़ल बा!👌
वाह !
बहुत खूब
वाह खूब अलग अंदाज बेहतरीन।
लाजवाब सृजन । अलग सा अन्दाज ।
गज़ब ... मज़ा आ गया इस शैली पर ...
हर शेर लाजवाब है ...
....अद्भुत ग़ज़ल
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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