Tuesday, September 21, 2010

हमारी सुरक्षा व्यवस्था तो चाक-चौबन्द है ~~


हमारी सुरक्षा व्यवस्था तो
चाक-चौबन्द है.
देखते नहीं हमने
हर गली;
हर नुक्कड़;
हर चौराहे पर
बैरकें लगा रखी है

यहाँ से हम नज़र रखे हुए हैं;
और परख रहे हैं
हर आम आदमी की गति को,
और फिर
अवसर-बेअवसर
इन्हें गतिशून्य भी कर देते हैं,
ताकि
अबाध गति मिल सके उनको
जो ‘जेड प्लस’ की सुविधा से लैस हैं;
ताकि
दौड़ सकें ‘लाल बत्ती युक्त गाड़ियाँ’
बिना किसी अवरोध के
फर्राटे से.
तुम्हें तो शायद
हमारे काम के बोझ का
अन्दाजा भी नहीं होगा
’उगाही’ से लेकर
आँकड़ों के संवर्धन को रोकने के लिये
रात के अन्धेरे में
रेल की पटरियों पर
लावारिश लाशें रखने तक का काम
हमें करना पड़ता है.
क्या तुमने महसूस नहीं की
वारदात स्थल को छोड़कर
हर स्थान पर हमारी मौजूदगी ?
या शायद तुमने देखी ही नहीं है
घटनास्थल पर पहुँचकर
विवादास्पद और अनसुलझे
जाँच परिणाम तक पहुँचने की
हमारी तत्परता
इस प्रक्रिया में हम अब तो
फारेंसिक जाँच, नार्को टेस्ट जैसे
भारी भरकम शब्द भी शामिल कर लिये हैं.

अब तो यकीन हो गया होगा कि
हमारी सुरक्षा व्यवस्था
दुरूस्त और चाक-चौबन्द है.

51 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

झन्नाटा हुआ व्यंग।

deepti sharma said...

ekdam sahi kaha hai aapne
deepti shrama

समयचक्र said...

बस हमेशा की तरह कागजों में दुरूस्त और चाक-चौबन्द है..... बहुत सटीक रचना...आभार

वीना श्रीवास्तव said...

सटीक व्यंग

Razia said...

बहुत सटीक और धारदार व्यंग्य रचना ..

दीपक 'मशाल' said...

भिगा-भिगा के मारा है सर... बहुत जबरदस्त व्यंग्य..

देवेन्द्र पाण्डेय said...

करारा कटाक्ष।

रानीविशाल said...

बहुत करारा व्यंग ....आभार

शरद कोकास said...

एक सही राजनीतिक कविता ।

Arvind Mishra said...

सटीक दृष्टि ..

धर्मेन्द्र कुशवाहा said...

सटीक

रचना दीक्षित said...

वाह!! किस तरह से सच्चाई सामने रख दी है जबरदस्त प्रहार है व्यवस्था पर.लेकिन ये तो हैं चिकने घड़े इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता उलटे हमें ही पढ़ कर ग्लानी होती है अपनी असमर्थता पर

Parul kanani said...

sir aapne bhi suraksh chakra ka sting operation kar dala :)

सदा said...

बहुत ही सटीक और तेज शब्‍द प्रस्‍तुति, आभार ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

स्थिति गम्भीर है पर काबू में है :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वारदात स्थल को छोड़कर

हर स्थान पर हमारी मौजूदगी ?

बिलकुल ..हमारी सुरक्षा व्यवस्था दुरूस्त और चाक-चौबन्द है..

ज़बरदस्त व्यंग के माध्यम से सटीक कटाक्ष ...

SATYA said...

सटीक कटाक्ष।

डॉ टी एस दराल said...

यकीन तो पहले भी था । अब यकीन पर मुहर भी लग गई । बढ़िया व्यंग ।

vandana gupta said...

धारदार कटाक्ष्………………मगर कहीं जूँ भी नही रेंगेगी।

Kailash Sharma said...

वास्तविक ज़मीनी स्थिति को दर्शाती एक सुन्दर रचना....

Kailash Sharma said...

वास्तविक ज़मीनी स्थिति को दर्शाती एक सुन्दर रचना....

अजय कुमार said...

सटीक निशाना ।

Udan Tashtari said...

अब तो विश्वास करना ही पड़ेगा..


सटीक..

कडुवासच said...

...behatreen !!!

Asha Joglekar said...

वारदात के स्थल को छोड कर हर जगह हमारी मौजूदगी
यही तो दिखलाती है कि कितनी चाक चौबंद है सुरक्षा व्यवस्था । जोरदार व्यंग ।

मेरे भाव said...

hamari lachar suraksha vayvastha par karara vyang....arthpurn rachna ke liye badhai...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सही कटाक्ष कसा दिल्ली की क़ानून व्यवस्था पर वर्मा साहब !

रंजना said...

सटीक सार्थक व्यंग्य !!!

sandhyagupta said...

सन्नाटे में गूँज की तरह है आपकी यह रचना.बधाई.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... तेज़ धार से लिखा व्यंग है ... हक़ीकत के बहुत करीब बैठ कर लिखा व्यंग .... ये सच है आज बार वी आई पी ही नागरिक रह गये हैं बाकी सब तो नागरिक की श्रेणी में ही नही आते ....

श्यामल सुमन said...

वारदात स्थल को छोड़कर
हर स्थान पर हमारी मौजूदगी ?

तीखे वार हैं वर्मा जी। हकीकत को बयां करती रचना।

सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com

Anonymous said...

यहाँ से हम नज़र रखे हुए हैं
और परख रहे हैं
हर आम आदमी
इन्हें गतिशून्य भी कर देते हैं,
वाह !!!! अब इससे ज्यादा चौकस व्यवस्था क्या हो सकती है ! बहुत
दिनों के बाद झन्नाटेदार व्यंग्य पढने को मिला ! आभार !

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या तुमने महसूस नहीं की

वारदात स्थल को छोड़कर

हर स्थान पर हमारी मौजूदगी ?
क्या बात है वर्मा जी. खूब करारा थप्पड़ है.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

सरल शब्दों में जटिल विषय का बखूबी चित्रण किया है आपने. आजकल सही में सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर यही हो रहा है. सुन कर व देख कर मन दुखी हो जाता है.

Jyoti said...

क्या तुमने महसूस नहीं की
वारदात स्थल को छोड़कर
हर स्थान पर हमारी मौजूदगी
धारदार व्यंग्य रचना ..........

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सटीक व्यंग......

अरुण चन्द्र रॉय said...

समसामायिक और असरदार व्यन्ग्य ...

रवि कुमार, रावतभाटा said...

बेहतर व्यंग्य करती रचना...

ज्योति सिंह said...

behad asardaar hai ,magar unhe bhi nazar aani chahiye ye tasvir jo aadat se baaz nahi aate kabhi .ati uttam hai .

अनुपमा पाठक said...

aptly executed satire!
regards,

Akshitaa (Pakhi) said...

कविता भी...व्यंग्य भी...बढ़िया है.


_________________________
'पाखी की दुनिया' में- 'डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !'

Satish Saxena said...

बढ़िया है भाई जी !

संगीता पुरी said...

बहुत सटीक !!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

कमाल है... बहुत ही सटीक...

हरकीरत ' हीर' said...

आपकी रचनायें समय की मांग पर लिखी गयी होती हैं ....
और हर बार की तरह ....बेहतरीन भाव .....!!

rajesh singh kshatri said...

Bahut Khub...

निर्मला कपिला said...

सटीक शानदार व्यंग। बधाई।

mridula pradhan said...

wah.ati sunder.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

धारदार :)

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...
This comment has been removed by the author.
Priyanka Soni said...

बहुत सुन्दर !