बुधवार, 29 सितंबर 2010

तुम नदी हो बहो बिना रूके, निरंतर ~ ~


तुम नदी हो बहो
बिना रूके, निरंतर
देखना तारें तुम्हें सजायेंगे,
किनारे खड़े पेड़ और
आसमान का चाँद भी
तुम्हारे विस्तृत अस्तित्व में
डुबकी लगायेंगे
बेशक दिल में हो -
सागर मिलन की तमन्ना
पर रहना चौकन्ना
मिलन की उत्कंठा कहीं
तुम्हारी गति को
बहुत तेज न कर दे
वर्ना,
लोग बाँध बना देंगे और
अवरूद्ध कर देंगे-
तुम्हारे प्रवाह को.



तुम नदी हो बहो
बिना रूके, निरंतर
पर निर्बाध गति पर
‘थकन’ अंकुश न लगा दे
तुम्हारे दिल में भी
विश्राम की इच्छा न जगा दे
और तुम,
कहीं भूल कर भी
गतिशून्य न हो जाओ
वर्ना
नकार देंगे लोग
तुम्हारे अस्तित्व को ही
और फिर
शहर के मलबे के ढेर से
ढक दिये जाओगे
प्रतीक्षारत हैं
बहुमंजिली इमारतें
तुम्हारे अस्तित्व पर कब्जा करने हेतु .



तुम नदी हो बहो
बिना रूके, निरंतर

52 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

दुविधा मे डाल दिया आपने तो यमुना जी को अप्नी इस सुन्दर रच्ना के माध्यम से वर्मा सहाब ! आगे कुंआ पीछे खाई जैसी स्थिति उसके सामने बयां कर दी !

कडुवासच ने कहा…

... सुन्दर रचना !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

प्रतीक्षारत हैं –

बहुमंजिली इमारतें

तुम्हारे अस्तित्व पर कब्जा करने हेतु .

बहुत खूबसूरती से रचना के माध्यम से निरंतर गतिमान रहने कि प्रेरणा दी है ...

kshama ने कहा…

Kaunsi nadi apne veg pe niyantran rakh payi?
Haan,nirantar bahte rahne ka, gatimaan rahne ka sandesh nihayat sundar hai!

Parul kanani ने कहा…

sundar bhawon ka prvaah!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बांध तोड़ो
यह नदी
बंधन नहीं
बहना चाहती है।
..सुंदर भाव जगाती कविता।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi achhi rachna

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुंदर भाव जगाती कविता।
बहुत खूबसूरती से रचना के माध्यम से प्रेरणा दी है ...

shikha varshney ने कहा…

नदी के माध्यम से पूरी जिंदगी समझा डी आपने.बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

नदी का काम ही चलना है । वर्ना वह झील बन कर रह जाएगी । बहुत खूबसूरती से आपने अपनी बात कही है ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना, जीवन को दर्शाती, धन्यवाद

deepti sharma ने कहा…

bahut hi sundar kavita hai
or hamesa aage badne vale sandes ke sath

शरद कोकास ने कहा…

नदी है तो जीवन है ।

Razia ने कहा…

बहुत सुन्दर ..
सम्पूर्ण जीवन दर्शन है इस रचना में

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर काव्य नदिया बही..

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
मध्यकालीन भारत धार्मिक सहनशीलता का काल, मनोज कुमार,द्वारा राजभाषा पर पधारें

Jyoti ने कहा…

लोग बाँध बना देंगे और अवरूद्ध कर देंगे-
तुम्हारे प्रवाह को....
सुन्दर रचना ........

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहना ही है अपना कार्य।

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

मज़ा ये है, की नदी को समझाने की जरूरत नहीं है, वो तो खुद ब खुद बहती है, और आदमी को जितना समझाओ , उतना कम ..

सुन्दर अभिव्यक्ति, लिखते रहिये ......

बेनामी ने कहा…

तुम नदी हो बहो
बिना रूके, निरंतर !!!

यह आपकी सौन्दर्य मयी दृष्टि है ! नदी है तो ..बहे ! बहना है ..तो प्रवाह हो ! प्रवाह हो.. तो निरन्तरता हो ! सौन्दर्य तो मन को मोहता ही है ! आभार

निर्मला कपिला ने कहा…

मिलन की उत्कंठा कहीं

तुम्हारी गति को

बहुत तेज न कर दे

वर्ना,

लोग बाँध बना देंगे और

अवरूद्ध कर देंगे-

तुम्हारे प्रवाह को.
बहुत सुन्दर लगी आपकी कविता। बधाई

कविता रावत ने कहा…

नदी से ही तो जीवन की सार्थकता है ..
प्रवाह रुका तो जीवन अवरुद्ध...
...जीवन सन्देश देती सुन्दर अभिव्यक्ति

Creative Manch ने कहा…

सुंदर भाव जगाती कविता
सम्पूर्ण जीवन दर्शन है इस रचना में

बधाई और आभार


प्रतीक्षा में :
मिलिए ब्लॉग सितारों से

रचना दीक्षित ने कहा…

तुम, कहीं भूल कर भी गतिशून्य न हो जाओ
वर्ना नकार देंगे लोग तुम्हारे अस्तित्व को ही
और फिर शहर के मलबे के ढेर से
ढक दिये जाओगे
प्रतीक्षारत हैं – बहुमंजिली इमारतें
तुम्हारे अस्तित्व पर कब्जा करने हेतु
तुम नदी हो बहो बिना रूके, निरंतर
जब कविता में इतनी गति है तो नदिया कैसे न गति शील रहेगी

vandana gupta ने कहा…

चलना ही ज़िन्दगी है………………बहुत सुन्दर और सार्थक संदेश देती प्रवाहमयी रचना दिल को छू गयी।

रंजना ने कहा…

उर्जा और प्रेरणा देती मुग्धकारी अतिसुन्दर रचना...

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

Bahut sundar aur prakriti ke prati apke prrem ko pradarshit kartee rachna.
Poonam

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

कहीं भूल कर भी
गतिशून्य न हो जाओ
तुम नदी हो
बिना रुके, बहो निरंतर
अत्यंत सुंदर और भावमयी कविता

monali ने कहा…

m yun hi vyathit thi khud par lagi tamaam bandisho se... jab nadi ko hi nahi chhoda jata to m kya hu... sundar kavita...

Satish Saxena ने कहा…

बढ़िया सबक देती रचना भाई जी ! हार्दिक शुभकामनायें !

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

वर्माजी कविता के माध्यम से आपने जीवन के प्रति बहुत बड़ी मगर गहन बात सिखला दी हमें......

BK Karan ने कहा…

Good really good . i can understand the context and am enjoying your writing ' तुम नदी हो बहो
बिना रूके, निरंतर '
keep it up keep writing like this to inspire the like minded .
Karan

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

धीरे बहो नदिया :)

ज्योति सिंह ने कहा…

उत्कंठा कहीं तुम्हारी गति को बहुत तेज न कर दे वर्ना, लोग बाँध बना देंगे और अवरूद्ध कर देंगे- तुम्हारे प्रवाह को. तुम नदी हो बहो बिना रूके, निरंतर पर निर्बाध गति पर ‘थकन’ अंकुश न लगा दे तुम्हारे दिल में भी
bahut hi badhiya likha hai .

Kailash Sharma ने कहा…

pravah hi jeevan hai...bahut sundar abhivyakti....

Neeta Jha ने कहा…

sundar sabdon ke madhyam se aapne kafi kuchh kah dala
etni badhiya kavita ke liye aapko badhai .

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

तुम्हारी गति को
बहुत तेज न कर दे

वर्ना,

लोग बाँध बना देंगे और

अवरूद्ध कर देंगे-

तुम्हारे प्रवाह को.

bahut hi achchhi rachanaa....mujhe ye panktiyaan adhik prabhavi lagin...

shubhkamanaayen...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

apni rachna vatvriksh ke liye bhejen parichay aur tasweer ke saath

Urmi ने कहा…

वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! बेहद ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!

Neeraj Kumar ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है और सामयिक व गहन विचार प्रवाह वाली...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
--
दो अक्टूबर को जन्मे,
दो भारत भाग्य विधाता।
लालबहादुर-गांधी जी से,
था जन-गण का नाता।।
इनके चरणों में श्रद्धा से,
मेरा मस्तक झुक जाता।।

वंदना शुक्ला ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति.''वर्ना नकार देंगे लोग तुम्हे......''लाज़वाब ...इस तरह की चुनिन्दा कवितायेँ हैं जो मुझे पसंद हैं....आपने मेरा ब्लॉग पढ़ा और सराहा उसके लिए बहुत आभारी हूँ...धन्यवाद्...
वंदना

Prem Farukhabadi ने कहा…

Verma ji,
pal pal jeevant rahne ki prerana deti hui rachna bahut hi prabhav shaali ban padi hai. nadi ki tarah stree purush ko bhi sada jeevant rahna chahiye.Badhai!!

Vidushi ने कहा…

Allow the river to live... or at least allow her to breathe... lovely poem...

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

sundar rachna... nadiya bahe bahe re dhara tujhko chalnaa hoga... aise hee bhavo ke sang aapki lekhni ne kamaal dikhaya...

Asha Joglekar ने कहा…

सागर मिलन की तमन्ना

पर रहना चौकन्ना

मिलन की उत्कंठा कहीं

तुम्हारी गति को

बहुत तेज न कर दे ।
और
निर्बाध गति पर ‘थकन’ अंकुश न लगा दे
तुम्हारे दिल में भी विश्राम की इच्छा न जगा दे
और तुम, कहीं भूल कर भी
गतिशून्य न हो जाओ
वर्ना नकार देंगे लोग तुम्हारे अस्तित्व को ही
और फिर शहर के मलबे के ढेर से
ढक दिये जाओगे
प्रतीक्षारत हैं – बहुमंजिली इमारतें तुम्हारे अस्तित्व पर कब्जा करने हेतु .
नदियों के आज पर कितना गहरा कटाक्ष है । काश हम जाग जायें और बहने दे नदियों को अबाधित, स्वच्छ सुंदर ।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना....बधाई आपको.

_________________

'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

सुन्दर प्रवाहमान रचना ! आपकी लेखनी भी निरंतर चलती रहे यही कामना है !

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद

ZEAL ने कहा…

मुट्ठी भर दिवास्वप्न लिये

सारी-सारी रात

जागते हुए लोग,...

mohak prastuti !
aabhar.

.

OP ने कहा…

बहुत खुब

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

जीवन-धारा के सुप्रवाह के लिए बहुत उपयुक्त और सार्थक संदेश देती हुई रचना -बधाई स्वीकारें .