कब तक
सहमीं रहेंगी
नदी के कगारों से
अजस्त्र धारायें
अवरोधों के उस पार
कहीं तो नवल क्षितिज होगा.
.
अन्धेरे के तमाम त्रासदियों को
सहने के बाद
जब भी यह रात ढलेगी;
अंतस के प्राची से
जब भी नूतन भोर झांकेगा,
मैं जानता हूँ
सूरज का महज़ एक तपन
काफी है पिघला देने को
उन गहनतम दीवारों को भी
जो हमें अब तक
बौना बनाये रखे हैं
.
सार्थक प्रयत्न
कभी भी निष्फल नही होता
उजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी
आखिर कब तक
गर्म हौसलों को
ठंडी बर्फ़ की परतें
छुपा सकती हैं भला
कब तक ........
(यह रचना सन 1984 मे लिखी थी)
41 comments:
कहीं होगा वह नवल क्षितिज ....... मुझे विश्वास है, तभी तो कलम कह रही है
सच कहा उजास की किरण देर सबेर हम तक भी पहुंचेगी .....प्रयत्न कायम रहना चाहए .....यही तो जीवन है ....!!
सशक्त रचना ....!!
जड़ जमाये गहनतम दीवारों का पिघलना जरुरी है.
कोशिश सबको करनी होगी, उस प्रकाश/तपन को पाने के लिए.
आखिर कब तक
गर्म हौसलों को
ठंडी बर्फ़ की परतें
छुपा सकती हैं भला
कब तक ........
Sundar aur prabhavi abhivyakti.
बहुत प्रभावशाली और नयी उर्जा देने वाली अभिव्यक्ति.....
सूरज का महज़ एक तपन
काफी है पिघला देने को
उन गहनतम दीवारों को भी
बहुत सुन्दर रचना है ... आशा की बात करती हुई ... यह भोर अवश्य आयेगा ... पर शयद यह भोर बहार से नहीं अपने अन्दर से ही आना है ... जब हरेक इन्सान में सच्चाई, इंसानियत और ज्ञान का भोर आयेगा तो अँधेरा खुद व खुद मिट जायेगा ....
..... आशा के भाव ... उम्मीद की किरण ... नवल क्षितिज ....बेहद प्रेरणादायक रचना!!!!
nice
सार्थक प्रयत्न कभी निष्फल नही होता ....
सच कहा है ... बहुत ही अनुपम रचना ...
बहुत ही गहन और सकारात्मक दिशा देती रचना।
बहुत ही आशावादी कविता लिखी है आपने पसंद आई शुक्रिया
नयी उर्जा देने वाली अभिव्यक्ति.....
सुन्दर रचना ...
बेहतरीन रचना आशा जगाती
सकारात्मक सोच प्रदर्शित करती रचना ।
बढ़िया ।
सार्थक प्रयत्न
कभी भी निष्फल नही होता
उजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी
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ओह सन चौरासी की लिखी है तो यह ढ़ाई दशक में सिद्ध हुआ कि नहीं?
1984 me to mera janam hua tha. usi wakat likhi gayi hogi!!!! :-)
waise behatrin hai.
वो सुबह कभी तो आएगी...
बेहतर रचना...
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 11.04.10 की चर्चा मंच (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
बेहद खूबसूरत रचना ! आभार ।
काबिलेतारीफ है प्रस्तुति।.सारी रचनाये आपकी बहुत ही अच्छी है|
नवल क्षितिज उदित होगा या ढूढ़ना पड़ेगा ।
आप को झूठ नहीं बोलना चाहिए, यह 1984 की रचना कैसे हो सकती है !!
यह तो हमें आज भी प्रेरणा दे रही है. :)
यह तो सर्वकालिक हुई.
समय इसे नहीं बाँध पायेगा.
भले ही इसका जन्म १९८४ में हुआ हो, पर यह अमर है.
lajawaab kar diyaa aapne,sach....
सार्थक प्रयत्न
कभी भी निष्फल नही होता
िउजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी
आखिर कब तक
गर्म हौसलों को
ठंडी बर्फ़ की परतें
छुपा सकती हैं भला
कब तक ....... बहुत सुन्दर और सकारात्मक सोच वाली रचना----
सार्थक प्रयत्न
कभी भी निष्फल नही होता
उजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी
आखिर कब तक
गर्म हौसलों को
ठंडी बर्फ़ की परतें
छुपा सकती हैं
भला कब तक ........
बहुत सुन्दर
karm karte rahana hi hamare jeevan ka uddeshy hai.vo subah kabhi to aaygi
sach gambheer ho gaya main bhi padhkar..
shukria,
tapan acchi lagi.
अवरोधों के उस पार
कहीं तो नवल क्षितिज होगा.
--वाह! अच्छी कविता।
उजास की किरण देर-सबेर हम तक भी पहुँचेगी.......
बहुत सुन्दर रचना...........
सार्थक प्रयत्न
कभी भी निष्फल नही होता
उजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी..
बिल्कुल सही कहा है आपने ! सूरज की किरण हम सभी पर ज़रूर पहुंचेगी ! बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
varma ji
aapki is rachna par main nishabd hoon ...kya kahu , mere paas tareef ke liye shabd nahi hai , ye kavita tareef se upar hai .. aapki lekhni ko mera salaam ...
aabhar aapka
vijay
p.s. pls meri ek kavita ko aap bhojpoori me translate kariyenga ..jald hi likhta hoon
बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें
गज़ब की जादूगरी शब्दों से !!बहुत प्रभावशाली और नयी उर्जा देने वाली सशक्त रचना
is tapan mein nikhar gayi nazm!
is tapan mein nikhar gayi nazm!
harkirat ji ki baat se main bhi sahmat hoon ,chintan karne laayak baate hai , rachna sundar lagi .
क्या बात है वर्मा जी शब्दों से खेलना कोई आप सीखे और साथ ही साथ चंद बेहतरीन भावनाओं के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ...धन्यवाद इस सुंदर क्षणिकाओं के लिए....आभार
बिलकुल सही कहा आपने.... कहीं तो नवल क्षितिज होगा....
बहुत सुंदर कविता....
प्रेरित करती, आशा जगाती एक सुंदर रचना...
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