Thursday, November 19, 2009

रोटियों की दीवारें ~~














वे क़ैद हैं

और उन्हें

अपने क़ैद का

अभास तक नहीं है।

.

जब कभी

उन्होने सूरज की ओर देखा;

जब कभी

उन्होनें आक्सीजन से

रूबरू होने की कोशिश की;

जब कभी

उन्होने आसमाँ के इस छोर से

उस छोर तक उड़ना चाहा;

जब कभी

उनमें अभिव्यक्ति की अकुलाहट मिली;

जब कभी

उनकी आँखों में

सपनों की आहट मिली;

जब कभी उनमें --

जब कभी --

.

खड़ी कर दी गयी

उनके इर्द-गिर्द

रोटियों की दीवारें

और अब वे क़ैद हैं

पर उन्हें

अपने क़ैद का

अभास तक नहीं है।


40 comments:

Urmi said...

खड़ी कर दी गयी
उनके इर्द-गिर्द
रोटियों की दीवारें
और अब वे क़ैद हैं
पर उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।
वाह वर्मा जी बहुत ही सुंदर और शानदार रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है ! आपने सच्चाई को बखूबी प्रस्तुत किया है !

Udan Tashtari said...

अद्भुत!!

बहुत सुन्दरता से आपने बात कही, वाह!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वे क़ैद हैं और उन्हें
अपने क़ैद का अभास तक नहीं है।.

कम शब्दों में
परिकल्पना और विडम्बनाओं को
उजागर करती हुई कविता सुन्दर बन पड़ी है।

वाणी गीत said...

वे कैद हैं और उन्हें आभास तक नहीं ....मगर आपकी दृष्टि और संवेदना से बच नहीं पाया यह सब कुछ ...प्रेरक कविता ...!!

मनोज कुमार said...

इस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती । कोई टीका नहीं लिखी जा सकती । सिर्फ महसूस की जा सकती है । इस कविता को मस्तिस्क से न पढ़कर बोध के स्तर पर पढ़ना जरूरी है – तभी यह कविता खुलेगी ।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

जब कभी --.
खड़ी कर दी गयी उनके इर्द-गिर्द रोटियों की दीवारें और अब वे क़ैद हैं पर उन्हें अपने क़ैद का अभास तक नहीं है।

sach.... aur unhe aabhaas hi nahi hai....


bahut hi prerak aur..... sunder....

अजय कुमार said...

इसका शीर्षक और कविता दोनो अनूठे हैं

Unknown said...

manoj kumaar se sahmat.........

sachmuch yah kavita aisee hi hai...

abhinandan aapka !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जब कभी.........
खडी कर दी गई, रोटियों की दीवारे .......
वाह ! लाजबाब वर्मा साहब, बहुत सुन्दर भाव उतारे !

Anonymous said...

bahut hi marmik kavita hai ye....

mehek said...

puri kavita apne aap mein ek gehra marm liye huye hai jo sidhha dil tak mehsus hota hai.bahut sunder.

सदा said...

अब वे क़ैद हैं
पर उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।

बहुत ही भावमय प्रस्‍तुति ।

Unknown said...

good poem hai sir

रश्मि प्रभा... said...

रोटियों की दीवारों में घिरे एहसास......बहुत ही उत्कृष्ट लगे

संजय भास्‍कर said...

लाजबाब वर्मा साहब, बहुत सुन्दर भाव उतारे
from
sanjay bhaskar

vandana gupta said...

manoj ji se sahmat.........is rachna ke bare mein kuch nhi kaha ja sakta........atyant gahan aur sukshm ..........aisa sirf aap hi likh sakte hain ..........sargarbhit.

राज भाटिय़ा said...

खड़ी कर दी गयी

उनके इर्द-गिर्द

रोटियों की दीवारें

और अब वे क़ैद हैं

पर उन्हें

अपने क़ैद का

आभास तक नहीं है।
वाह वर्मा जी आप ने आज की सच्चाई को, आज की हम सब की मजबुरियो को अपनी इस कविता मै बहुत सुंदर शव्दो मै पिरो दिया
धन्यवाद

shikha varshney said...

खड़ी कर दी गयी
उनके इर्द-गिर्द
रोटियों की दीवारें
और अब वे क़ैद हैं
पर उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।
बहुत ही गहरे अर्थो वाली बात कह दी है आपने वर्मा जी! वाकई इसपर कोई टीका टिपण्णी की ही नहीं जा सकती....

ज्योति सिंह said...

वे क़ैद हैं और उन्हें
अपने क़ैद का अभास तक नहीं है।.
bahut khoob kah diya shabdon ne aapki kalam se ,badhai is sundar rachna ke liye

"अर्श" said...

JAISA KI AAPNE KI RACHANAA KA SHIRSHAK DIYAA HAI WAKAI RACHANAA USPE PURI TARAH SABIT HOTI HAI ... NIHSHABD KAR DIYAA HAI AAAPNE... SAPANO KI AAHAT...WAKAI NIHSHABD HO GAYAA ... BAHUT BAHUT BADHAAYEE KI UMDA RACHANAA KO PADHWAANE KE LIYE...


AAPKA
ARSH

"अर्श" said...

JAISA KI AAPNE KI RACHANAA KA SHIRSHAK DIYAA HAI WAKAI RACHANAA USPE PURI TARAH SABIT HOTI HAI ... NIHSHABD KAR DIYAA HAI AAAPNE... SAPANO KI AAHAT...WAKAI NIHSHABD HO GAYAA ... BAHUT BAHUT BADHAAYEE KI UMDA RACHANAA KO PADHWAANE KE LIYE...


AAPKA
ARSH

निर्मला कपिला said...

खड़ी कर दी गयी
उनके इर्द-गिर्द
रोटियों की दीवारें
और अब वे क़ैद हैं
पर उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।
जीवन की विडंबनायों का स्जीव चित्रण बहुत सुन्दर कविता है बधाई

दिगम्बर नासवा said...

KAMAAL KI ABHIVYAKTI HAI .... AAJ KE HAALAAT KA SAHI CHTRAN .... GAREEB KI AANKHON MEIN SAPNE JAAGNE HI NAHI DETE KUCH LOG .....
KITNI SAHAJTA SE KAH DI AAPNE APNI BAAT .....

शरद कोकास said...

यह रोटी के प्रचलित अर्थ मे एक नया बिम्ब है ।

डॉ टी एस दराल said...

रोटियों की दीवारें --
एकदम नयापन लिए रचना।
बहुत बढ़िया वर्मा जी।

योगेन्द्र मौदगिल said...

अच्छी कविता है भाई जी... साधुवाद.. साधुवाद.

gazalkbahane said...

वाकई दर्द के गांव से लाए हैं यह कविता आप

Gyan Dutt Pandey said...

पिंजरे का पंछी उसी में रहना चाहता है।
सुना है लम्बी कैद के बाद आजाद होने पर कैदी तनावग्रस्त हो जाता है।

अभिषेक आर्जव said...

इस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती । कोई टीका नहीं लिखी जा सकती । सिर्फ महसूस की जा सकती है ।
सचमुच !

अभिषेक आर्जव said...

sachamuch ke alavaa baaki saari panktiyaa "" me rahegii.

Asha Joglekar said...

बहुत खूब, साफ और सटीक बात ।

Prem Farukhabadi said...

vermaji,
Rachna samasya pradhan hai magar is ka hal adhyayan ya swadhyayan hai. badhai!

कडुवासच said...

... sundar rachanaa, prasanshaneey !!!!!

karuna said...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है बधाई ....

Razia said...

वे क़ैद हैं
और उन्हें अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है.
बहुत सुन्दर कविता और भाव

इश्क-प्रीत-love said...

सच कितना गहराई से उभारा यह बिम्ब
बधाइयां

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाकई
रोटियों की दीवारें इतनी मजबूत होती हैं
कि आदमी को पता ही नहीं चलता
कि वह कैद है।
--कमाल की अभिव्यक्ति

Kusum Thakur said...

बहुत खूबसूरत रचना है .

Rajeysha said...

उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।

जि‍नके पास रोटि‍यां, कपड़े और मकान हैं उन्‍हें भी।

रवि कुमार, रावतभाटा said...

जीवन की आधारभूत आवश्यकताएं ही अधिकतर को सहज नहीं है...

बेहतर अभिव्यक्ति...