Tuesday, September 29, 2009

सर्दियो मे पिघलना है ~~


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मौसम का मिज़ाज बदलना है
सर्दियो मे हमको पिघलना है


सफर सहेज लिया है दामन में
सूरज से भी पहले निकलना है

माना 'तंज' बोये हैं पत्थरों ने
ठोकरों के बाद भी संभलना है

बाजुओ की पतवार सलामत रहे
लहरों के खिलाफ़ फिसलना है

क्यूँ करू मैं इंतज़ार बादलो का
धूप के साये में ही टहलना है

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31 comments:

रश्मि प्रभा... said...

khoobsurat ehsaason kee jheel-si kavita....bahut sundar

विनोद कुमार पांडेय said...

मौसम का मिज़ाज तो जो है वो ठीक है परंतु आपके ये गीत बेमिशाल हैं..
बेहतरीन अभिव्यक्ति..धन्यवाद इस सुंदर गीत के लिए...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

waaqai mein mausam ka mijaaz badla hua hai.....

बाजुओ की पतवार सलामत रहे
लहरों के खिलाफ़ फिसलना है.....

yahi to zindagi hai.....


bahut hi khoobsoorat ehsaas ke saath likhi hui ek behtareen rachna...

रंजना said...

समझ नहीं पा रही कि क्या कहूँ.......रचना के योग्य प्रशंशा के शब्द संधान कहा जा करूँ....

लाजवाब लाजवाब लाजवाब !!!! वाह !!!

ज्योति सिंह said...

bahut sundar .happy dashhara .

शरद कोकास said...

सर्दियों मे हमको पिघलना है .. वाह यही तो है द्वन्द्वात्मक भौतैकवाद ,वर्मा जी

वाणी गीत said...

सर्दियों में पिघलना है ...
पत्थरों ने तंज बोए हैं
क्यों करूँ मैं इंतज़ार बादलों का
धूप के साये में टहलना है
बहुत खूब ....शुभकामनायें ...!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मौसम का सुन्दर चित्रण।
बधाई!

निर्मला कपिला said...

बाजुओ की पतवार सलामत रहे
लहरों के खिलाफ़ फिसलना है.....
क्या बात है बहुत सुन्दर बधाई हो

sandhya said...

क्यूँ करू मैं इंतज़ार बादलो का
धूप के साये में ही टहलना है

YE PANKTI BAHUT KHOOBSURAT HAI .....

डिम्पल मल्होत्रा said...

क्यूँ करू मैं इंतज़ार बादलो का
धूप के साये में ही टहलना है...intzar to hai..badal barsenge...essi intzar me dhoop me bhi tahala jata hai.....

vandana gupta said...

मौसम का मिज़ाज बदलना है
सर्दियो मे हमको पिघलना है

kya khoob khyal hain.क्यूँ करू मैं इंतज़ार बादलो का
धूप के साये में ही टहलना है

behtreen bhavon se paripoorna rachna.
kis kis pankti ki vyakhya ki jaye............har pankti sochne ko majboor karti hai.

badhayi

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

बहुत खूब वर्मा जी बहुत ही बेहतरीन रचना ,,, काफी दीनो बाद आप के ब्लॉग पर आया हूँ माफ़ी चाहूंगा ,,
क्यूँ करू मैं इंतज़ार बादलो का
धूप के साये में ही टहलना है
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

मनोज भारती said...

परिस्थितियाँ कुछ भी हों
हमें उनसे सँभलने का खूब
ढ़ाँढ़स बंधाया है आपने

सचमुच एक लाज़वाब रचना ।

http://gunjanugunj.blogspot.com

Yogesh Verma Swapn said...

माना 'तंज' बोये हैं पत्थरों ने
ठोकरों के बाद भी संभलना है

wah verma ji, behatareen rachna ke liye badhaai sweekaren.

Prem said...

bhavpoorn abhivyakti,svar bhi sunder hai

Urmi said...

वाह वाह क्या बात है! बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! सर्दियों में हमें पिघलना है..बहुत खूब, बेहद सुंदर !

Girish Kumar Billore said...

सफर सहेज लिया है दामन में
सूरज से भी पहले निकलना है
Wah ji Wah

रवि कुमार, रावतभाटा said...

माना 'तंज' बोये हैं पत्थरों ने
ठोकरों के बाद भी संभलना है

सफर सहेज लिया है दामन में
सूरज से भी पहले निकलना है

उम्दा ग़ज़ल...बेहतर...

श्रद्धा जैन said...

dhoop ke saaye mein hi tahalna hai
bahut gahri baat
naseeb mein jab dhoop hai safar hai
chalna hai
jalna hai to
aisi hi sahi

bahut achcha laga

Sudhir (सुधीर) said...

सफर सहेज लिया है दामन में
सूरज से भी पहले निकलना है


वाह!! क्या बात है...अच्छा शेर हैं

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया रचना कही है..

हरकीरत ' हीर' said...

माना तंज बोए हैं पत्थरों ने
ठोकरों के बाद भी संभलना है

वाह ...वाह.....उत्साह वर्द्धक इस नज़्म के लिए आभार .....!!

monali said...

Encouraging one...

vijay kumar sappatti said...

varma ji

deri se aane ke liye maafi chahunga

aapki kavita ke bhaav hamesha hi man ko lubhaate hai , is gazal ke saare sher ek se badhkar ek hai.. aakhri sher to shaandar hai ..

meri badhai sweekar kare..

dhanywad

vijay
www.poemofvijay.blogspot.com

Prem Farukhabadi said...

क्यूँ करू मैं इंतज़ार बादलो का
धूप के साये में ही टहलना है
बहुत खूब.बधाई!!!!!!!

vikram7 said...

माना 'तंज' बोये हैं पत्थरों ने
ठोकरों के बाद भी संभलना है

बाजुओ की पतवार सलामत रहे
लहरों के खिलाफ़ फिसलना है
अति सुन्दर

kshama said...

Baharon ke saye kiskee qismat the?
Panah dee dhoop ke hee sayone...!

रंजू भाटिया said...

सफर सहेज लिया है दामन में
सूरज से भी पहले निकलना है

बहुत खूब सुन्दर लिखा है आपने

Girish Kumar Billore said...

बेमिशाल
माना 'तंज' बोये हैं पत्थरों ने
ठोकरों के बाद भी संभलना है

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब सुन्दर लिखा है आपने