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बारिश हुई
कभी मूसलाधार तो
कभी रूक-रूक कर
सब कुछ भींग गया
वजूद का ओर-छोर भी;
नयन के कोर भी
टूट गये तटबन्धी विश्वास;
बह चला एहसास
कुछ खोया; कुछ पाया
एक जलजला सा आया
अपने आगोश में ले लिया
सख्त से सख्त को
समूल डुबो दिया
समस्त को; दरख्त को
जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
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28 comments:
gahri baat kahi hai rachna ke maadhyam se ........ aapki har rachna kuch na kuch samaajik chetna ka ehsaas karaati hai ... sundar likha hai ...
wo bhi doob jayega sir,
जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
wah ! bahut hi gahri baat kahi hai aapne.......
बहुत अपनी सी लगी कविता ....जैसे मेरे ही दिल की बात कहती हो
bahut hi gahri baat kahi......bahut sundar.
'शानदार कहने दीजिये मुझे, बिना किसी लाग-लपेट के,,,,वाकई...'...बधाई....
बेहतरीन रचना कम शब्दों में . .. बधाई .
जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति है।
बधाई!
जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
wah verma ji bahut sunder abhivyakti. badhai.
जिसे भीगना नहीं होता वह ऊंचाई पर हो या सागर की गहराई में - भीगता नहीं!
नलिनीदलगतजलमतितरलम!
jo dharti par hota hai,wah bheeg jata hai,jo uncha hai......gahri baat hai
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
यही तो त्रासदी है.
बेहतरीन अभिव्यक्ति और सुन्दर भाव
जिसको भिगोने को सारी कवायद हुयी ...वह भीगा नहीं ...क्योंकि बहुत ऊँचाई पर था ...कई बार बारिश में पोर पोर भीगने के बाद मन जो सूखा रह जाता है अलगनी पर लटका सा ....
बहुत गहरी बात कह दी आपने ..!!
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति .
साधु साधु.........
बारिश
भीगना
डूबना
और ऊंचाई जैसे सरल प्रतीक ले कर अत्यन्त गूढ़ बात कह दी आपने........
वाह वाह .......आनन्द आगया.........
इस काव्य के लिए आपको विशेष बधाई !
वर्मा जी बहुत गहरी और भावमय कविता है बहुत बहुत बधाई
wo nahi bheega lekin baki sab bheeg gaye
अद्भुत कविता है आपकी...अति सुन्दर...वाह
नीरज
सब कुछ भीग गया
वजूद का और-छोर भी
नयन के कोर भी...
बहुत ही मार्मिक भावः वर्मा साहब !
वाह............. साधुवाद..
जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
bahut gaharai liye ye rachana mujhe bahut achchhi lagi .
वाह, लाज़वाब.
साहित्यक गहराई नज़र आ रही है.
सब कुछ भीग गया
वजूद का ओर-छोर भी
नयन के कोर भी
टूट गए तटबन्धी विश्वास
बह चला अहसास
जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
बहुत खूब, गहरी बात. आज तक सरकारी कृपा वास्तविक हकदारों तक शायद पहुँच ही नहीं ओई और सारी कवायद अब तक विफल रही...............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
वाह वाह बहुत खूब! अत्यन्त सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!
जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
बाहर की कोई कवायद
उसे भीगो नहीं सकती
और
उसकी ऊँचाई
हमेशा कुछ ऊँची ही रहेगी
चाहे कितनी भी
ऊँचाई चढ़ लो
अति सुन्दर भाई . बधाई!!
जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
एक उम्दा रचना...
जो चेताती है कि भावुक कवायदों की परिणति यही होती है...
शुक्रिया...
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