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यकीन करो किसी और पर अलबत्ता
पर सलामत रखो खुद की भी सत्ता
चट कर जायेंगे वज़ूद तक तुम्हारा
जिस्म से लपेट रखो भौरे का छत्ता
ये रास्ता तो वही जाता है मुसाफिर
जहाँ लुट जाती है आदमी की इयत्ता
खुद हाथ थाम लो खुद के हाथों से
वरना उड़ जाओगे ज्यूँ पीपल-पत्ता
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
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36 comments:
Yatharth ko prabhavi dhang se sundar abhivyakti deti aapki yah rachna bahut hi achchhi lagi...aabhar swikaren..
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
are waah is aour dhyaan jaanaa bhi mazedaar rahaa..bahut sundar rachna he aapki/
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
Man ki talkhiyain bhi khoobsoorat lagne lage,aisa kavita aur ghazal ke zariye hi mumkin hai.bahut sundar izhaar-e-andaaz ... !Shabdo ki is duniya mei aapse mulakat achchhi lagi.....
regards !!!!!!!!!!!
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
हमारी सच्चाई यही है. हम कही न कही असुरक्षित वातावरण खुद बनाये रखते है.
सब पर यकीन करो मगर अपनी सत्ता भी सलामत रखो बहुत अच्छी बात है ""दोस्ती करना मगर घर का पता मत देना ""सही है चाटने वाले बजूद तक चाट जाते है ""न इतना मीठा बन की चाट कर जाएँ भूखे ,न इतना कड़वा बन कि जो चख्खे सो थूंके |रस्ते की लूटमार स्वाभाविक हो चली है "मेरे सफ़र का आलम न कुक्छ पूछो ,था लुटेरों का जहाँ गावं वही रात हुई |खुद कि हाथों से खुद को थम्लो यह है सेल्फ कांफिडेंस अंतिम शेर दर्शन शास्त्र किले को अभेद्य समझने वाले भूल जाते हैं कि दरवाजा कमजोर है |यही आदमी की जिन्दगी भी है |
सारी गज़ल ही बहुत खूबसूरत है
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
लाजवाब बधाइ
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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INDIAN DEITIES
चट कर जायेंगे वज़ूद तक तुम्हारा
जिस्म से लपेट रखो भौरे का छत्ता
bahut hi sundar verma ji. dil se badhai!
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
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वाह, क्या पंक्तियां हैं!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
एक बीज,
ऊपर आने के लिए,
कुछ नीचे गया ,
ज़मीन के .
कस के पकड़ ली मिटटी ,
ताकि मिट्टी छोड़ उड़ सके .
६३ बरसा हुए आज उसे ….
…मिट्टी से कट के कौन उड़ा ,
देर तक ?
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
वर्मा जी, गजब लिखते हैं आप...इतने कम शब्दों में ..अक्सर बहुत कुछ कह जाते हैं हैं ..बहुत ही उम्दा लगा ..हमेशा की तरह
चट कर जायेंगे वज़ूद तक तुम्हारा
जिस्म से लपेट रखो भौरे का छत्त
वाह! ये शेर खास पसंद आया।
bahut khoob
चट कर जायेंगे वज़ूद तक तुम्हारा
जिस्म से लपेट रखो भौरे का छत्ता
नमस्कार वर्मा जी बहुत ही सुंदर रचना है हर पंक्ति में जीवन की सच्चाई और एक दर्शन का अनुभव होता है मेरी बधाई स्वीकार करे
सादर प्रवीण पथिक
9971969084
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
अच्छी रचना
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎ स्वीकार करे
यकीन करो किसी और पर अलबत्ता
पर सलामत रखो खुद की भी सत्ता
Very well Said !!!
Meri rachna sarahne kaa bhee
abhaar !!!
kyaa baat hai.....!!
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
इन्हीं कमजोर दरवाजों को हवाएं बेन्ध जातीं हैं .....बहुत खूब ....!!
ये रास्ता तो वही जाता है मुसाफिर
जहाँ लुट जाती है आदमी की इयत्ता
खुद हाथ थाम लो खुद के हाथों से
वरना उड़ जाओगे ज्यूँ पीपल-पत्ता.laazwaab .jai bharat bharati .
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’
बहुत सुन्दर रचना
सुंदर रचना! मज़ा आ गया।
यकीन करो किसी और पर अलबत्ता
पर सलामत रखो खुद की भी सत्ता
-सुन्दर पंक्तियाँ.
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने!लाजवाब!
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
NAYA AUR ADBHOOT RUPAK..
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति ।
ye rasta vahin jata hai musafir
jahan lut jati hai aadmi ki iyatta
kya khoob likha hai
renu
आपके ग़ज़लकार रूप का आज ही पता चला. शानदार है.
यकीन करो किसी और पर अलबत्ता
पर सलामत रखो खुद की भी सत्ता
nai nai upmaaon ke saath nai nai 'kafiyat' acchi lagi...
bhawanre ka chatta !!
peepal patta!!
aur...
darwaje ke badle gatta !!
nai upmaiyen gadhne hetu badhai sweekarein.
बहुत ही अच्छी रचना ...सारे शेर बखूबी बड़ी बड़ी बातों को सरलता से कह जाते हैं...
खुद हाथ थाम लो खुद के हाथों से
वरना उड़ जाओगे ज्यूँ पीपल-पत्ता
बहुत सुन्दर!
बधाई!
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता.....ek khoobsurat rachna...
अच्छी गजल कही है।
( Treasurer-S. T. )
समझ में नही आता ,कि , आपकी इस रचना के लिए क्या अल्फाज़ इस्तेमाल करूँ ? "दरवाज़ेकी जगह गत्ता ...!"
कभी हम भी अपने मन को अभेद्य समझ बैठे थे ..लेकिन सारे भरम टूट गए ..जब दीवारें नही रहीं , तो क्या रहा ?
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