
मौसम खुशगवार है, मन धानी है
क्या करें मगर हुक्मरान तालिबानी है
'धान' बोया तो सावन रूठ गया
'अरहर' की खेत देखिये पानी-पानी है
आज ये है तो कल वो होगा ही
किस बात पर भला इतनी परेशानी है
संजो लिया है जख्म, छुपा लिया है
ये तो मेरे सबसे अज़ीज की निशानी है
यूँ ही नहीं चूमा अपनी हथेली को
मेरे लिये तो ये तुम्हारी ही पेशानी है
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35 comments:
आ गया मजा जब पढ़ा पूरी गजल
गजल ही तो सुमन की जिन्दगानी है
आदरणीय वर्मा साहब,
मैं तो आपके शिल्प का मुरीद हूँ कितनी खूबसूरती से अश’आर गढ़ते हैं, और उतने ही कोमल अहसासों से सजा देते हैं।
बहुत खूब कहा है :-
आज ये है तो कल वो होगा ही
किस बात पर भला इतनी परेशानी है
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
'धान' बोया तो सावन रूठ गया
'अरहर' की खेत देखिये पानी-पानी है
विसंगतियो को बखूबी दर्शाया है आपने.
और फिर जीवन का सच
आज ये है तो कल वो होगा ही
किस बात पर भला इतनी परेशानी है
दूसरा शेर तो कमाल है, वाह बहुत ख़ूब!
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waah
bahut khoob kaha...........
'धान' बोया तो सावन रूठ गया
'अरहर' की खेत देखिये पानी-पानी है
वाह ! बहुत खूब...सत्यता बयान कर दी आपने
मौसम खुशगवार है, मन धानी है
क्या करें मगर हुक्मरान तालिबानी है
'धान' बोया तो सावन रूठ गया
'अरहर' की खेत देखिये पानी-पानी है
bahut khoob lage ye ashaar...
धान' बोया तो सावन रूठ गया
'अरहर' की खेत देखिये पानी-पानी है....
में विसंगतियों को और अंतिम शेर में प्रेम के कोमल भावों को जिस प्रकार आपने शब्द दिए हैं,बस मन मुग्ध विभोर हो गया पढ़कर......
पूरी ग़ज़ल ही मर्म को छूकर मन बाँध लेने वाली है........बहुत बहुत आभार पढने का सुअवसर देने के लिए...
बहुत खूब वर्मा जी , सावन के नहीं बरसने का मलाल ..अरहर के नहीं फूलने का मलाल ...और मलाल न करने की नसीहत भी ..!!
बहुत बधाई..!!
बेहतरीन शेरों से सजी इस कविता के लिए बधाई।
संजो लिया है जख्म, छुपा लिया है
ये तो मेरे सबसे अज़ीज की निशानी है...khoobsurat nazam....nishania sambhali hi jatee hai chahe wo dard hi kyun na ho...
'धान' बोया तो सावन रूठ गया
'अरहर' की खेत देखिये पानी-पानी है
इंसानों के संगति में रह कर शायद प्रकृति पर भी "कहो कुछ, करो कुछ" का रंग चढ़ गया है, तभी तो उपरोक्त शेर जैसी बातें चरितार्थ हो रही है.
मुकम्मल ग़ज़ल पर बधाई.
संजो लिया है जख्म, छुपा लिया है
ये तो मेरे सबसे अज़ीज की निशानी
बहुत खूब, लाजवाब प्रस्तुति के लिये बधाई ।
वर्मा जी मै जो बात हमेशा से ही कहता हूँ की आप की कविता में कुछ येसी बात है जो हमेशा से ही दिल को सुकून देती है ,, दूसरी चीज ये की इसमें आम जन की पीडा होती उनका दर्द होता है जिसे आप बाखूबी महसूस करकर शब्द देते है ,,,, और एक चीज जो मै फिर कहना चाहूँगा की आप की कविता यथार्थ का पुट लिए होती है \
मेरी बधाई स्वीकार करे और जल्दी जल्दी लिखा करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
सुंदर ग़ज़ल से मन खिल उठा,
ये ग़ज़ल लगा जैसे मनखिलानी है,
अच्छा ग़ज़ल सुंदर भाव..बधाई...
bahut hi shaandar .
आज ये है तो कल वो होगा ही
किस बात पर भला इतनी परेशानी है
संजो लिया है जख्म, छुपा लिया है
ये तो मेरे सबसे अज़ीज की निशानी है
aur kya kahe laazwaab .
मौसम खुशगवार है, मन धानी है
क्या करें मगर हुक्मरान तालिबानी है
'धान' बोया तो सावन रूठ गया
'अरहर' की खेत देखिये पानी-पानी ह
लाजवाब बहुत बहुत बधाई
waah ji waah.......gazab kar diya.
har sher gazab ka likha hai aur aakhiri 2 sher to jaise gazal ko char chand laga gaye hain.
मित्रवर, अरहर कविता का विषय हो गयी है, आहार से हट कर। कीमतें और बढ़ीं तो सुनार के पास चली जायेगी!
bahut sunder rachna hai... simply superb...
behad sundar gazal... badhai..
यूँ ही नहीं चूमा अपनी हथेली को
मेरे लिए तो ये तेरी पेशानी है
वाह ......बहुत खूब जी ......!!
बहुत अच्छा लगा! ग़ज़ल की एक एक लाइन में बहुत गहराई है और दिल से लिखा है आपने हर एक शब्द! बहुत खूब!
श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
संजो लिया है जख्म, छुपा लिया है
ये तो मेरे सबसे अज़ीज की निशानी है
बहुत खूब कहा आपनें
आज ये तो कल वो होगा ही
किस बात पर भला इतनी परेशानी है ,
बहुत खूब सारा सर इन दो पंक्तियों में कह डाला |
संजो लिया है जख्म, छुपा लिया है
ये तो मेरे सबसे अज़ीज की निशानी है...
bahut hi khoobsoorat lines............
आज ये है तो कल वो होगा ही
किस बात पर भला इतनी परेशानी है
is line ne to dil hi chhoo liya........
'संजो लिया है जख्म, छुपा लिया है
ये तो मेरे सबसे अज़ीज की निशानी है'
waah wah wah!
bahut umda sher!
bahut achchee gazal !
vakai kabil-e-taarif...
संजो लिया है जख्म, छुपा लिया है
ये तो मेरे सबसे अज़ीज की निशानी है
वाह
बहुत खूब
पसंद आई आपकी रचना
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धान' बोया तो सावन रूठ गया
'अरहर' की खेत देखिये पानी-पानी है
Kya khoob jindagee ka such bayan kiya hai.
यूँ ही नहीं चूमा अपनी हथेली को
मेरे लिये तो ये तुम्हारी ही पेशानी है
anubhutiyon se nikali rachna anubhuti to kara hi deti hai.khyal kamaal ka. Dil se badhai!!
तालिबानी काफिये के साथ यह पहली गज़ल देखी ।
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल...
बेहतर रवानगी के साथ...
यूँ ही नहीं चूमा अपनी हथेली को
मेरे लिए तो ये तुम्हारी ही पेशानी है....
बहुत कमाल का लिखते हैं आप....बहुत ही
सूक्ष्म लम्हों को शेरों में कैद कर लेते हो.....
डॉ. अमरजीत कौंके
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