Friday, August 14, 2009

जिस्म से लपेट रखो भौरे का छत्ता ~~

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यकीन करो किसी और पर अलबत्ता
पर सलामत रखो खुद की भी सत्ता


चट कर जायेंगे वज़ूद तक तुम्हारा
जिस्म से लपेट रखो भौरे का छत्ता

ये रास्ता तो वही जाता है मुसाफिर
जहाँ लुट जाती है आदमी की इयत्ता

खुद हाथ थाम लो खुद के हाथों से
वरना उड़ जाओगे ज्यूँ पीपल-पत्ता

अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
***

36 comments:

रंजना said...

Yatharth ko prabhavi dhang se sundar abhivyakti deti aapki yah rachna bahut hi achchhi lagi...aabhar swikaren..

अमिताभ श्रीवास्तव said...

अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
are waah is aour dhyaan jaanaa bhi mazedaar rahaa..bahut sundar rachna he aapki/

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

pratima sinha said...

Man ki talkhiyain bhi khoobsoorat lagne lage,aisa kavita aur ghazal ke zariye hi mumkin hai.bahut sundar izhaar-e-andaaz ... !Shabdo ki is duniya mei aapse mulakat achchhi lagi.....

regards !!!!!!!!!!!

Razia said...

अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
हमारी सच्चाई यही है. हम कही न कही असुरक्षित वातावरण खुद बनाये रखते है.

BrijmohanShrivastava said...

सब पर यकीन करो मगर अपनी सत्ता भी सलामत रखो बहुत अच्छी बात है ""दोस्ती करना मगर घर का पता मत देना ""सही है चाटने वाले बजूद तक चाट जाते है ""न इतना मीठा बन की चाट कर जाएँ भूखे ,न इतना कड़वा बन कि जो चख्खे सो थूंके |रस्ते की लूटमार स्वाभाविक हो चली है "मेरे सफ़र का आलम न कुक्छ पूछो ,था लुटेरों का जहाँ गावं वही रात हुई |खुद कि हाथों से खुद को थम्लो यह है सेल्फ कांफिडेंस अंतिम शेर दर्शन शास्त्र किले को अभेद्य समझने वाले भूल जाते हैं कि दरवाजा कमजोर है |यही आदमी की जिन्दगी भी है |

निर्मला कपिला said...

सारी गज़ल ही बहुत खूबसूरत है
अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
लाजवाब बधाइ

Vinay said...

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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INDIAN DEITIES

Prem Farukhabadi said...

चट कर जायेंगे वज़ूद तक तुम्हारा
जिस्म से लपेट रखो भौरे का छत्ता

bahut hi sundar verma ji. dil se badhai!

Gyan Dutt Pandey said...

अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता

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वाह, क्या पंक्तियां हैं!

vikram7 said...

स्‍वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

दर्पण साह said...

एक बीज,
ऊपर आने के लिए,
कुछ नीचे गया ,
ज़मीन के .


कस के पकड़ ली मिटटी ,
ताकि मिट्टी छोड़ उड़ सके .

६३ बरसा हुए आज उसे ….

…मिट्टी से कट के कौन उड़ा ,
देर तक ?

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

अजय कुमार झा said...

वर्मा जी, गजब लिखते हैं आप...इतने कम शब्दों में ..अक्सर बहुत कुछ कह जाते हैं हैं ..बहुत ही उम्दा लगा ..हमेशा की तरह

रविकांत पाण्डेय said...

चट कर जायेंगे वज़ूद तक तुम्हारा
जिस्म से लपेट रखो भौरे का छत्त

वाह! ये शेर खास पसंद आया।

Anonymous said...

bahut khoob

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

चट कर जायेंगे वज़ूद तक तुम्हारा
जिस्म से लपेट रखो भौरे का छत्ता

नमस्कार वर्मा जी बहुत ही सुंदर रचना है हर पंक्ति में जीवन की सच्चाई और एक दर्शन का अनुभव होता है मेरी बधाई स्वीकार करे
सादर प्रवीण पथिक
9971969084

nanditta said...

अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
अच्छी रचना
स्‍वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎ स्वीकार करे

Ria Sharma said...

यकीन करो किसी और पर अलबत्ता
पर सलामत रखो खुद की भी सत्ता

Very well Said !!!

Meri rachna sarahne kaa bhee

abhaar !!!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

kyaa baat hai.....!!

हरकीरत ' हीर' said...

अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता

इन्हीं कमजोर दरवाजों को हवाएं बेन्ध जातीं हैं .....बहुत खूब ....!!

ज्योति सिंह said...

ये रास्ता तो वही जाता है मुसाफिर
जहाँ लुट जाती है आदमी की इयत्ता
खुद हाथ थाम लो खुद के हाथों से
वरना उड़ जाओगे ज्यूँ पीपल-पत्ता.laazwaab .jai bharat bharati .

रचना गौड़ ’भारती’ said...

आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’

Razi Shahab said...

बहुत सुन्दर रचना

रज़िया "राज़" said...

सुंदर रचना! मज़ा आ गया।

hem pandey said...

यकीन करो किसी और पर अलबत्ता
पर सलामत रखो खुद की भी सत्ता

-सुन्दर पंक्तियाँ.

Urmi said...

अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने!लाजवाब!

दर्पण साह said...

अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता
NAYA AUR ADBHOOT RUPAK..

सदा said...

अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता

बहुत ही लाजवाब प्रस्‍तुति ।

Renu Sharma said...

ye rasta vahin jata hai musafir
jahan lut jati hai aadmi ki iyatta
kya khoob likha hai
renu

संजीव गौतम said...

आपके ग़ज़लकार रूप का आज ही पता चला. शानदार है.

दर्पण साह said...

यकीन करो किसी और पर अलबत्ता
पर सलामत रखो खुद की भी सत्ता

nai nai upmaaon ke saath nai nai 'kafiyat' acchi lagi...

bhawanre ka chatta !!

peepal patta!!
aur...

darwaje ke badle gatta !!

nai upmaiyen gadhne hetu badhai sweekarein.

Neeraj Kumar said...

बहुत ही अच्छी रचना ...सारे शेर बखूबी बड़ी बड़ी बातों को सरलता से कह जाते हैं...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

खुद हाथ थाम लो खुद के हाथों से
वरना उड़ जाओगे ज्यूँ पीपल-पत्ता

बहुत सुन्दर!
बधाई!

डिम्पल मल्होत्रा said...

अभेद्य किले से बने है ये घर मगर
दरवाजे की जगह जड़ा हुआ है गत्ता.....ek khoobsurat rachna...

Arshia Ali said...

अच्छी गजल कही है।
( Treasurer-S. T. )

kshama said...

समझ में नही आता ,कि , आपकी इस रचना के लिए क्या अल्फाज़ इस्तेमाल करूँ ? "दरवाज़ेकी जगह गत्ता ...!"

कभी हम भी अपने मन को अभेद्य समझ बैठे थे ..लेकिन सारे भरम टूट गए ..जब दीवारें नही रहीं , तो क्या रहा ?