Saturday, July 4, 2009

खुर्राट आए हैं ----- ! !



ज़िन्दगी को जड़ से काट आए हैं
मुर्दों के शहर में दवा बांट आए हैं

इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं

घर से ये बाहर निकलते ही नहीं
बहुत सुना था कि खुर्राट आए हैं

इन्हें भी अपने पापों को धोना है
इसीलिये तो ये गंगा-घाट आए हैं

फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए हैं

28 comments:

USHA GAUR said...

फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए हैं
तल्ख एहसास का बयान खूबसूरत शब्दो मे
हर शेर बहुत खूबसूरत
बधाई

ओम आर्य said...

bahut hi sahi kaha aapane .........aapki kawitao ka jabaaw nahi .....natmastak

अविनाश वाचस्पति said...

पर मुझे तो लगता है
सब कुछ चाट आए हैं

आए तो हैं यहां पर
होकर घाट घाट आए हैं

Razia said...

इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं
---------
saral shabdo me kahi baat to dil tak chot karti hai

Sajal Ehsaas said...

aap hamesha bilkul naayab kafiya use karte hai...great as always

अर्चना तिवारी said...

ज़िन्दगी को जड़ से काट आए हैं
मुर्दों के शहर में दवा बांट आए हैं

बहुत सुंदर ग़ज़ल.....

शोभना चौरे said...

इन्हें भी अपने पापों को धोना है
इसीलिये तो ये गंगा-घाट आए हैं

ak achi vygatmk rachna .

बवाल said...

भाई साहब वर्मा जी, तालाब वाली बात ने तो दिल जीत लिया । क्या ही ख़ूब लिक्खा है जी ! वाह वाह!

Smart Indian said...

बहुत अच्छा!

पतिनुमा प्राणी said...

फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए हैं

वाह

Sudhir (सुधीर) said...

अत्यन्त सहज किंतु प्रभावशाली पंक्तिया.... साधू

इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं

Arvind Kumar said...

bahut badhiya...lajabaab

विवेक रस्तोगी said...

बहुत खूब ..

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने! आपकी हर एक ग़ज़ल शानदार है! लिखते रहिये!

शेफाली पाण्डे said...

bahut khoobsurat.....

अजय कुमार झा said...

अब हमारे ईमान की लगेगी ठीक ठीक कीमत,
वो खरीदने साथ लेकर, तराजू-बाट आये हैं..

सोये नहीं,मुद्दत हो गयी,करवटें बदलते, गद्दे पर,
आज चैन से सोने को , खरीद कर खाट लाये हैं.

बहुत ही गजब लिखते हैं आप..बिलकुल कमाल ..अद्भुत ..बहुत ही मजा आया..

दर्पण साह said...

इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं


...WAH ACCHI GHAZAL AUR USPAR YE ASARDAAR LEHJA...

Vinay said...

कमाल है

---
तख़लीक़-ए-नज़र

अनिल कान्त said...

रचना पढ़कर मजा आ गया

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए हैं

वाह्! बेहतरीन व्यंग्य रचना.....आभार

ARUNA said...

bilkul sahi kaha aapne verma ji!!!Bahut khoob likha hai aapne!!!!!

Ria Sharma said...

इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं
sabhee sher bakhoobi likhe hain.

meaningful !!!

Prem Farukhabadi said...

इन्हें भी अपने पापों को धोना है
इसीलिये तो ये गंगा-घाट आए हैं

Verma ji,
rachna aina dikha rahi hain.badhai!

सदा said...

इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं

बहुत ही सुन्‍दर रचना ।

निर्मला कपिला said...

फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए है
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति है बधाई

vikram7 said...

बहुत ही सुन्दर

vijay kumar sappatti said...

bahut acchi gazal ... padhkar dil bahut aandit hua sir..
saare sher bahut acche ban [padhe hai ...


Aabhar

Vijay

Pls read my new poem : man ki khidki
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

वाह ,आदरणीय वर्मा जी ,बहुत उम्दा ग़ज़ल, इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का ,देखते नहीं ,बच्चों को डांट आये हैं .

सादर भूपेndra