Tuesday, November 25, 2025

“पीड़ा का मैग्मा — और आसन्न विस्फोट”

 


जमा हो रहा है
असीमित मात्रा में
लोगों के अन्दर पीड़ा का मैग्मा

जिसे बाहर आने पर
उन्होंने प्रतिबंध लगा रखा है

यह मैग्मा
दिनप्रतिदिन
संघनित हो रहा है,
और दबाव
लगातार बढ़ रहा है

उसे तलाश है
उस सूक्ष्म रास्ते की
जहाँ उनका पहरा
कमज़ोर पड़ता है,
और वह फूट सके
बिना किसी अनुमति के।

मत भूलिए
जिस दिन
यह ज्वालामुखी फूटेगा,

निकलेगी असीमित मात्रा में
दमित तपिश,
आक्रोश का लावा,
और संपीड़ित घुटन की राख।

और उस दिन
नहीं बचा पाओगे
अपने तमाम
सुरक्षित महलों को,
गुप्त ठिकानों को,
बुलेटप्रूफ़ काँच की दीवारों को,

जहाँ बैठकर
तुम
इन पर नियंत्रण करते रहे हो।

क्योंकि प्रकृति की तरह
मानव भी सहता है,
पर अनंत नहीं।

1 comment:

Razia Kazmi said...

मानव भी सहता है,
पर अनंत नहीं - वाह