ज़िन्दगी को जड़ से काट आए हैं
मुर्दों के शहर में दवा बांट आए हैं
इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं
घर से ये बाहर निकलते ही नहीं
बहुत सुना था कि खुर्राट आए हैं
इन्हें भी अपने पापों को धोना है
इसीलिये तो ये गंगा-घाट आए हैं
फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए हैं
मुर्दों के शहर में दवा बांट आए हैं
इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं
घर से ये बाहर निकलते ही नहीं
बहुत सुना था कि खुर्राट आए हैं
इन्हें भी अपने पापों को धोना है
इसीलिये तो ये गंगा-घाट आए हैं
फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए हैं
28 comments:
फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए हैं
तल्ख एहसास का बयान खूबसूरत शब्दो मे
हर शेर बहुत खूबसूरत
बधाई
bahut hi sahi kaha aapane .........aapki kawitao ka jabaaw nahi .....natmastak
पर मुझे तो लगता है
सब कुछ चाट आए हैं
आए तो हैं यहां पर
होकर घाट घाट आए हैं
इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं
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saral shabdo me kahi baat to dil tak chot karti hai
aap hamesha bilkul naayab kafiya use karte hai...great as always
ज़िन्दगी को जड़ से काट आए हैं
मुर्दों के शहर में दवा बांट आए हैं
बहुत सुंदर ग़ज़ल.....
इन्हें भी अपने पापों को धोना है
इसीलिये तो ये गंगा-घाट आए हैं
ak achi vygatmk rachna .
भाई साहब वर्मा जी, तालाब वाली बात ने तो दिल जीत लिया । क्या ही ख़ूब लिक्खा है जी ! वाह वाह!
बहुत अच्छा!
फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए हैं
वाह
अत्यन्त सहज किंतु प्रभावशाली पंक्तिया.... साधू
इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं
bahut badhiya...lajabaab
बहुत खूब ..
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने! आपकी हर एक ग़ज़ल शानदार है! लिखते रहिये!
bahut khoobsurat.....
अब हमारे ईमान की लगेगी ठीक ठीक कीमत,
वो खरीदने साथ लेकर, तराजू-बाट आये हैं..
सोये नहीं,मुद्दत हो गयी,करवटें बदलते, गद्दे पर,
आज चैन से सोने को , खरीद कर खाट लाये हैं.
बहुत ही गजब लिखते हैं आप..बिलकुल कमाल ..अद्भुत ..बहुत ही मजा आया..
इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं
...WAH ACCHI GHAZAL AUR USPAR YE ASARDAAR LEHJA...
कमाल है
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तख़लीक़-ए-नज़र
रचना पढ़कर मजा आ गया
फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए हैं
वाह्! बेहतरीन व्यंग्य रचना.....आभार
bilkul sahi kaha aapne verma ji!!!Bahut khoob likha hai aapne!!!!!
इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं
sabhee sher bakhoobi likhe hain.
meaningful !!!
इन्हें भी अपने पापों को धोना है
इसीलिये तो ये गंगा-घाट आए हैं
Verma ji,
rachna aina dikha rahi hain.badhai!
इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का
देखते नहीं बच्चों को डांट आए हैं
बहुत ही सुन्दर रचना ।
फिर वही तालाब खोदा जायेगा
कागज़ो में जिसको पाट आए है
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति है बधाई
बहुत ही सुन्दर
bahut acchi gazal ... padhkar dil bahut aandit hua sir..
saare sher bahut acche ban [padhe hai ...
Aabhar
Vijay
Pls read my new poem : man ki khidki
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html
वाह ,आदरणीय वर्मा जी ,बहुत उम्दा ग़ज़ल, इन्हें गुमान है अपने बड़प्पन का ,देखते नहीं ,बच्चों को डांट आये हैं .
सादर भूपेndra
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