न कागज़ चाहिए, न चाहिए कलम,
दिल ही काफी है लिखने को ग़म
हर एक जख्म में दास्ताँ लिखी है,
तुम जो पढ़ लो तो हो जाए कम
शीशे का दिल मेरा बिखर जायेगा
तोड दो, ताकि अब टूट जाये भरम
जमाने ने बना दिया है पत्थर सा -
नजर भर के देख लो हो जाऊँ नरम
रास्तों ने गलत पता बताया तुम्हारा
सर्द हवाये भी अब ढा रही हैं सितम
‘तुम’ बिन मुकम्मल करे ये कहानी
‘वर्मा’ किधर से ला पायेगा वो दम

No comments:
Post a Comment