बुधवार, 23 मई 2012

छत्तीस का आकड़ा है ….

छत्तीस का आकड़ा है
क़दमों में पर पड़ा है
.
आंसुओं को छुपा लेगा
जी का बहुत कड़ा है
.
उंगलियां उठें तो कैसे?
कद उनका बहुत बड़ा है
.
लहुलुहान तो होगा ही 
पत्थरों से वह लड़ा है
.
कब का मर चुका है
वह जो सामने खड़ा है
.
खाद बना पाया खुद को 
महीनों तक जब सड़ा है
.
कल सर उठाएगा बीज
आज धरती में जो गड़ा है

34 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

छोटी बहर की शानदार गजल लिखी है आपने!

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

वाह !!

Anupama Tripathi ने कहा…

लहुलुहान तो होगा ही

पत्थरों से वह लड़ा है

सुंदर ...अभिव्यक्ति ....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह सर वाह..............

छोटे बहर की बेहद खूबसूरत गज़ल......

सादर.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

उंगलियां उठें तो कैसे?
कद उनका बहुत बड़ा है ,,,,,,

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,,बेहतरीन रचना,,,,,

MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

virendra sharma ने कहा…

छोटी बहर की बहुत सशक्त ग़ज़ल.कृपया यहाँ भी पधारें -
गोपनीय जीव विज्ञान देगा सुराग येती के होने ,न ,होने का
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
.कृपया यहाँ भी पधारें -
स्वागत बिधान बरुआ :
स्वागत बिधान बरुआ :आमंत्रित करता है लोकमान्य तिलक महापालिका सर्व -साधारण रुग्णालय शीयन ,मुंबई ,बिधान बरुआ साहब को जो अपनी सेक्स चेंज सर्जरी के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहें हैं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/और यहाँ भी ज़नाब -
ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/drug-dilemma.html

मंगलवार, 22 मई 2012
:रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का जोखिम बढ़ाओ
http://veerubhai1947.blogspot.in/

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत बढ़िया गजल ...

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

सशक्त ग़ज़ल...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

कल सर उठाएगा बीज

आज धरती में गड़ा है

बहुत बढ़िया , बेहतर !

निर्मला कपिला ने कहा…

लहुलुहान तो होगा ही

पत्थरों से वह लड़ा है
बहुत खूब!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इस छोटी बहर में तूफ़ान की तरह उमड़ते भावों कों समेटना जोखिम भरा काम है और आपने इसे बाखूबी किया है ... लाजवाब गज़ल ...

डॉ टी एस दराल ने कहा…

प्रभावशाली रचना ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब..

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत बढ़िया ...बेहतरीन

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति।

Satish Saxena ने कहा…

उंगलियां उठें तो कैसे?
कद उनका बहुत बड़ा है

जबरदस्त प्रभावशाली ....
बधाई वर्मा जी !

Bharat Bhushan ने कहा…

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. वाह..

Asha Joglekar ने कहा…

खाद बना पाया खुद को

महीनों तक जब सड़ा है

वाह, इस खूबसूरत गज़ल का एक एक शेर बेहतरीन ।

बेनामी ने कहा…

उंगलियां उठें तो कैसे?
कद उनका बहुत बड़ा है

लहुलुहान तो होगा ही

पत्थरों से वह लड़ा है

कल सर उठाएगा बीज
आज धरती में गड़ा है

bahut sundar evam prabhavshali rachna... in panktiyon ki kavyatmakta to bas adbhut hai...

Smart Indian ने कहा…

सही कहा है!

ZEAL ने कहा…

very impressive...

अरुन अनन्त ने कहा…

बहुत सुन्दर
( अरुन =arunsblog.in)

art ने कहा…

waah...kya baat hai..!!

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

उंगलियां उठें तो कैसे?
कद उनका बहुत बड़ा है

कितनी सही बात।
शानदार ग़ज़ल।

Kailash Sharma ने कहा…

कल सर उठाएगा बीज

आज धरती में गड़ा है

...यही जीवन का सहारा है...बेहतरीन गज़ल...

अशोक सलूजा ने कहा…

जीवन का सत्य ......
कल सर उठाएगा बीज
आज धरती में गड़ा है

बहुत खूब !
शुभकामनाएँ!

Ankur Jain ने कहा…

bahut sundar...

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

इस गज़ल से तो 63 का आंकड़ा हो गया।:)

Anjani Kumar ने कहा…

बहुत खूब सर
छोटी बहर में इतना कुछ

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना है..
शानदार अभिव्यक्ति:-)

Satish Saxena ने कहा…

कमाल है भाई जी....
शुभकामनायें आपको !

Saras ने कहा…

आंसुओं को छुपा लेगा

जी का बहुत कड़ा है

बहुत मजबूरियों को साथ लेकर चलता है यह . ..बहुत सुन्दर !

शिवनाथ कुमार ने कहा…

कल सर उठाएगा बीज

आज धरती में गड़ा है


बहुत सुंदर .....