गुरुवार, 17 मई 2012

उसका मरना कोई खबर नहीं है ….



आज वह
एक बार फिर मरा है
पर यह कोई खबर नहीं है
वैसे भी,
उसके मरने की खबर
किसी खबरनवीस के लिए
खबर की बू नहीं देती,
क्योंकि
खबर तभी खबर बन पाती है
जब उसमें
पंचातारे की नजाकत हो;
या फिर
बिकने की ताकत हो.
.
यूं तो यह विषय है
अनुसन्धान का
कि वह पहली बार कब मरा ?
स्वयं यह प्रश्न
खुद के अस्तित्व के लिए
निरंतर अवसादित है;
अन्य सार्थक प्रश्नों की तरह
यह प्रश्न
आज भी विवादित है,
और फिर
प्रश्न यदि बीज बन जाएँ
तो कुछ और प्रश्न पनपते हैं
यथा ..
क्या वह कभी ज़िंदा भी था ?
और अगर हाँ
तो किन मूल्यों पर ?
.

क्यूंकि वह
आये दिन मरा है
इसीलिये तो उसका मरना
कोई खबर नहीं है

30 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आभार सर जी |
हर दिन मरा करते हैं लोग -
अच्छा है संयोग -
आज अखबार वाले आये हैं -
मरते मरते फोटू छपवाए हैं -

Anupama Tripathi ने कहा…

gahan rachna ...!!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

आपने सही कहा,... बर्माजी

क्यूंकि वह
आये दिन मरा है
इसीलिये तो उसका मरना
कोई खबर नहीं है,,,,,,

,..अच्छी प्रस्तुति,,,,,,

MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वह तो न कभी खरीद पाया, न कभी बिक पाया..

Shah Nawaz ने कहा…

Zabardast Jazbaat hai....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वह ... हर आम आदमी रोज़ ही मारता है न जाने कितनी बार ... गहन अभिव्यक्ति

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

हाँ ,मौत भी किस्तों में होती है अब -ध्यान कौन दे !

वाणी गीत ने कहा…

किश्तों में मर रहा हर दिन आदमी , क्या कभी जिन्दा भी था !
निराशावादी दौर की सजीव प्रस्तुति !

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया सर!


सादर

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

मन को झिंझोडते ख़याल ...
गहन रचना...

सादर

डॉ टी एस दराल ने कहा…

उनका मरना कोई खबर नहीं है
फिर भी खबर में मरने वालों की संख्या कम नहीं है .

Satish Saxena ने कहा…

सच है भाई.....
शुभकामनायें वर्मा जी !

Kailash Sharma ने कहा…

क्यूंकि वह

आये दिन मरा है

इसीलिये तो उसका मरना

कोई खबर नहीं है

....बिलकुल सच .....रचना के भाव अंतस को छू गये..आभार

सदा ने कहा…

बहुत सही कहा आपने ... गहन भाव संयोजन ।

vandana gupta ने कहा…

आम इंसान की ज़िन्दगी का सच

Amrita Tanmay ने कहा…

और कभी खबर बन भी नहीं सकता..

सुनीता जोशी ने कहा…

आम आदमी तो आए दिन मरता है ,उसके पास ना तो कोई खबर नवीस आता है ना ही कोई और उसे पूछता है ,हाँ जरूरत पडने पर ना जाने कब कोई आ जाए,कुछ नहीं कह सकते। बहुत अच्छा सर जी।

सुनीता जोशी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बहुत खूब ....
आपके यहाँ आकर ही लगता है कुछ पढ़ा है .....

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

अच्छा चित्रण किया है आप ने...सुन्दर प्रस्तुति... बहुत बहुत बधाई...

Shanti Garg ने कहा…

बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

कविता रावत ने कहा…

क्यूंकि वह
आये दिन मरा है
इसीलिये तो उसका मरना
कोई खबर नहीं है
..सच कहा आपने जाने कितनी बार मरना पड़ता है ...खबर में वही होती है जिसके बहुतेरे होते है कर्ता-धर्ता ,,
बहुत बढ़िया विचारशील प्रस्तुति ..आभार

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

सवालों के घेरे में मीडिया...

अनुपमा पाठक ने कहा…

गहन बात कह गयी रचना...
जीने का सलीका ही तो मौत को गरिमा प्रदान करता है वरना आना जाना तो लगा हुआ है बेख़बर क्रम सा!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आम आदमी की मौत कोई खबर नहीं होती ...
मारना उसकी नियति है .. गहरी अभिव्यक्ति ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

अनुपम गहरे भाव संयोजित सुंदर रचना...आभार,,,,,

RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

क्यूंकि वह
आये दिन मरा है
इसीलिये तो उसका मरना
कोई खबर नहीं है

मार्मिक ! रोज-रोज मरने वालों की कोई खबर नहीं बनती।
दूसरी ओर, तथाकथित हैसियत वाले लोग जब छींकते हैं तो वो भी बड़ी खबर बन जाती है।

Anjani Kumar ने कहा…

असाधारण लेखन सर
इतना बारीक अवलोकन असाधारण चक्षु ही कर सकते हैं

शिवनाथ कुमार ने कहा…

क्यूंकि वह

आये दिन मरा है

इसीलिये तो उसका मरना

कोई खबर नहीं है

क्या खूब लिखा है आपने ...
साभार !!