बुधवार, 2 मई 2012

कांटे से ही कांटे को निकाला मैंने ….


जिस्म को बेइंतिहाँ उछाला मैंने
बिखरकर खुद को संभाला मैंने
.

बेदर्द का दिया दर्द सह नहीं पाया
पत्थर का एक ‘वजूद’ ढाला मैंने
.

किरदार छुपा लेते हैं एहसासों को
खुद को बना डाला रंगशाला मैंने
.

एहसास उनके रूबरू ही नही होते
न जाने कितनी बार खंगाला मैंने
.

अब क्या दिखेंगे जख्म के निशान
ओढ़ लिया है जबकि दुशाला मैंने
.

जब हो गया मजबूर हर नुस्खे से
कांटे से ही कांटे को निकाला मैंने
.

ताकि ये किसी और को न डसें
आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने

45 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

मन में उतर जाती हैं आपकी रचनाएं, यह रचना अपवाद कैसे होती...

बेहतरीन लिखा है...

विभूति" ने कहा…

भावो को संजोये रचना......

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत खूब सर!


सादर

Rajesh Kumari ने कहा…

very nice ghazal very nice.

S.N SHUKLA ने कहा…

इस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें /

kshama ने कहा…

Zindagee ke behad qareeb!

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो

सुनीता जोशी ने कहा…

बहुत खूब सर जी ,आस्तीनों में साँपों को पाला मैंनें ,क्या लिखा है आपनें।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बेदर्द का दिया दर्द सह नहीं पाया

पत्थर का एक ‘वजूद’ ढाला मैंने

ताकि ये किसी और को न डसें
आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने

बहुत खूब ... खूबसूरत गजल


.

रविकर ने कहा…

शुक्रवार के मंच पर, लाया प्रस्तुति खींच |
चर्चा करने के लिए, आजा आँखे मीच ||
स्वागत है-

charchamanch.blogspot.com

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

कविता की तरह ही आपके ग़ज़ल भी भीतर तक पहुच कर उद्वेलित करते हैं.. बढ़िया ग़ज़ल..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अब क्या दिखेंगे जख्म के निशान

ओढ़ लिया है जबकि दुशाला मैंने... देखकर व्यर्थ की बातों से बचा लिया खुद को ...

समय चक्र ने कहा…

एहसास उनके रूबरू ही नही होते

न जाने कितनी बार खंगाला मैंने

बहुत ही सार्थक प्रस्तुति...आभार

.

vandana gupta ने कहा…

ताकि ये किसी और को न डसें

आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने

गज़ब कर दिया वर्मा जी………हर बार की तरह शानदार

डॉ टी एस दराल ने कहा…

वाह ! बहुत बढ़िया और शानदार ग़ज़ल लिखी है वर्मा जी .

सुरभि ने कहा…

बहुत सुन्दर...सीधे दिल को छूती रचना :)

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

Superb !

सदा ने कहा…

मन को छूते गहन भाव ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

शंकर ने विष पी डाला सब,
नहीं मरेगा कहीं कोई अब।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

किरदार छुपा लेते हैं एहसासों को
खुद को बना डाला रंगशाला मैंने ..

एक कडुवे सच कों उतारा है इस शेर में ...
सच है जीवन के अनेकों किरदार हों तो सच छुप जाता है ... लाजवाब लिखा है वर्मा जी ,...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा अशआरों से सजी बढ़िया गजल!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा अशआरों से सजी बढ़िया गजल!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बढ़िया गज़ल है। अंतिम दो शेर तो बेहतरीन बन पड़े हैं।

mridula pradhan ने कहा…

bahut sunder rachna.....

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut acchhe link mile.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

ek ek aashar behtareen .

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह वाह क्या खूबसूरत कतरे हैं वर्मा जी बहुत ही सुंदर बहुत ही बेहतरीन

Rewa Tibrewal ने कहा…

wah ! bahut khoob

अरुन अनन्त ने कहा…

वाह क्या बात है
(अरुन = arunsblog.in)

Amrita Tanmay ने कहा…

साँपों को पाला ...लाज़वाब ...

Mamta Bajpai ने कहा…

जब हो गया मजबूर हर नुस्खे से

कांटे से ही कांटे को निकाला मैंने
बहुत बढ़िया है

नीलांश ने कहा…

bahut hi acchi ghazal hai verma ji

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत खूबसूरत गजल .....

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहूत हि खुबसुरत और बेहतरीन रचना...

रचना दीक्षित ने कहा…

जब हो गया मजबूर हर नुस्खे से
कांटे से ही कांटे को निकाला मैंने

ताकि ये किसी और को न डसें
आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने.

रोज़मर्रा की अनुभवों पर आधारित कारगर नुस्खे एक सुंदर गज़ल के र्रोप में.

बधाई.

रचना दीक्षित ने कहा…

जब हो गया मजबूर हर नुस्खे से
कांटे से ही कांटे को निकाला मैंने

ताकि ये किसी और को न डसें
आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने.

रोज़मर्रा की अनुभवों पर आधारित कारगर नुस्खे एक सुंदर गज़ल के र्रोप में.

बधाई.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

किरदार छुपा लेते हैं एहसासों को
खुद को बना डाला रंगशाला मैंने

बेहतरीन ग़ज़ल का बेमिसाल शेर !
हर शेर को दुबारा पढ़ा मैंने।

अनुपमा पाठक ने कहा…

बहुत खूब!

अंजना ने कहा…

बहुत बढिया .....

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब वर्मा जी ...
शुभकामनायें आपको !

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत खूब! हरेक शेर बहुत उम्दा और दिल को छू जाता है....

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

जब हो गया मजबूर हर नुस्खे से
कांटे से ही कांटे को निकाला मैंने
ताकि ये किसी और को न डसें
आस्तीनों में साँपों को पाला मैंने...
kante se kante wala nuskha wakah lajababa hai..sadar badhai

Unknown ने कहा…

Great post. Check my website on hindi stories at http://afsaana.in/ . Thanks!

anand.editsoft ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

Amazing lines