सोमवार, 18 अक्टूबर 2010

पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा ~~



पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा;

खीचनी ही होगी

गाँडीव की प्रत्यंचा,

लक्ष्य-भेद से कतराकर;

आत्ममुग्धता की स्थिति में आकर

तुम नहीं आगे बढ पाओगे,

तुम जिस महायुद्ध से

विरत होना चाहते हो;

वह तो इकतरफा ही सही

कब का प्रारम्भ हो चुका है,

जिन्हें तुम अपना मानकर

लड़ने से इंकार कर रहे हो,

देखो तुम यहाँ से

जहाँ मैं खड़ा हूँ

मैं देख पा रहा हूँ

वे तुम्हारे हक को मारकर;

मासूमों का गला घोट;

निर्दोषों को मौत के घाट उतारकर

अट्टहास कर रहे हैं,

देखो तुम भी तो देखो

वे तुम्हारे उगाये अनाजों को

इसलिये सड़ा रहे हैं

ताकि मूल्य बढ़ा सकें.

और फिर किसकदर

तुम्हारे हक पर

नजरे गड़ा रहे हैं.

क्या तुम उनके मंसूबों को

रत्ती भर भांप नही पा रहे हो

मुझे पता है

तुम गिरफ्त में हो

उनके लुभावने नारों के

शायद तुम्हें पता नहीं

उनका अगला प्रहार

तुम्हारे श्वासों पर होगा.

इससे पहले कि तुम फिर खो दो

खुद को और अपने अभिमन्यु को,

खीचनी ही होगी

गाँडीव की प्रत्यंचा

पार्थ तुम्हें बढ़ना ही होगा.

यकीनन,

पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा

51 टिप्‍पणियां:

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

पौराणिक प्रतीकों के माध्यम से व्यवस्था पर तीखा प्रहार...सशक्त रचना।

सुज्ञ ने कहा…

कवि का अचुक प्रहार!!
अति-सुंदर

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

वे तुम्हारे उगाये अनाजों को

इसलिये सड़ा रहे हैं

ताकि मूल्य बढ़ा सकें.

और फिर किसकदर

तुम्हारे हक पर

नजरे गड़ा रहे हैं.

शानदार चोट !

समय चक्र ने कहा…

पार्थ तुम्हें बढ़ना ही होगा. यकीनन,पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा....

बहुत सुन्दर सशक्त रचना भाव .... आभार

kshama ने कहा…

Kitna sundar likha hai aapne!Jab,jab,jahan,jahan 'Paarth' nahee lada,sanhaar hee sanhaar hua!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
--
आज का पार्थ लड़ तो रहा है!
आतंक मचा रखा है इसने तो!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सही कहा । परिस्थितियों से भागने की बजाय उनका डटकर सामना करने से ही हल निकलता है ।

honesty project democracy ने कहा…

वर्मा साहब आप जैसे शिक्षक इस लड़ाई के जज्बों को बच्चों के अन्दर डाल सकतें हैं ..जिससे इस लड़ाई की धार तेज हो सकती है...

Coral ने कहा…

पार्थ तुम्हें बढ़ना ही होगा.
यकीनन,
पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा

उत्साह बढाती सुन्दर रचना !

कडुवासच ने कहा…

... भावपूर्ण रचना, बधाई !!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

रोमांचित कर देने वाली सशक्त कविता |

संजय भास्‍कर ने कहा…

आज ऐसे ही जागृति पैदा करने वाले सशक्त रचना की जरूरत है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

bahut sundar bimbon saji achchhi rachna...jamakhoron par achchha kataksh..

अजय कुमार ने कहा…

समय की जरूरत है ,पार्थ को लड़ना ही होगा ।

उस्ताद जी ने कहा…

3.5/10


काम चलाऊ पोस्ट
रचना में ऊर्जा उत्पन्न करने की अतिरिक्त कोशिश. कविता में चेतना कम शोर और उन्माद ज्यादा है

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुन्दर प्रस्तुति . धन्यवाद

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुन्दर प्रस्तुति . धन्यवाद

Asha Lata Saxena ने कहा…

सुंदर शब्द चयन और सशक्त अभिव्यक्ति बहुत बहुत बधाई
आशा

ZEAL ने कहा…

खीचनी ही होगी

गाँडीव की प्रत्यंचा

पार्थ तुम्हें बढ़ना ही होगा.

यकीनन,

पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा...

सशक्त रचना।

.

Dr Xitija Singh ने कहा…

bahut achhi rachna .... vartamaan samay ke anukul... jaagruk karti hai aapki rachna

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जब तक पार्थ नहीं लड़ेगा, व्यवस्था का दुर्योधन नहीं मरेगा।

deepti sharma ने कहा…

bahut prabhavshali rachna
bahut achhi rachna

रानीविशाल ने कहा…

निर्दोषों को मौत के घाट उतारकर

अट्टहास कर रहे हैं,

देखो तुम भी तो देखो

वे तुम्हारे उगाये अनाजों को

इसलिये सड़ा रहे हैं

ताकि मूल्य बढ़ा सकें.
करारा कटाक्ष ....बहुत ही सशक्त प्रस्तुति
यहाँ पधारें
अनुष्का

Razia ने कहा…

मिथकों का सुन्दर प्रयोग

वाणी गीत ने कहा…

पार्थ तुम्हे लड़ना ही होगा ...
कब तक रुकना होगा ...
आखिर तो संग्राम में उतरना ही होगा ...

सार्थक सन्देश ...!

daddudarshan ने कहा…

विल्कुल सच है कि आज आम-आदमी की जिंदगी इतनी कठिन हो गयी है कि द्वापर में एक अभिमंयूं ने एक बार चक्रव्यूह के साथ संघर्ष किया था लेकिन आज आम-आदमी हर पल चक्रव्यूह के साथ संघर्ष-रत है | चूंकि कृष्ण की उस युद्ध में अहम् भूमिका रही थी ;कृष्ण आज भी उससे कहीं ज्यादा प्रशंगिक हैं | आज कृष्ण की भूमिका कवि,लेखक या रचनाकार निभा सकता है | जहाँ प्रिंट और इलेक्टोनिक मिडिया ने या तो पैसे के आगे घुटने टेक दिए हैं या सम्बंधित अधिकारी की कैंची के सामने लाचार है ,वहीँ हम इस खोफ से अभी तक
अछूते हैं | हम ब्लॉगर चाहें तो बहुत-कुछ कर सकते हैं |
वर्मा जी की रचनाओं का कायल रहा | कथाओं के किरदारों के माध्यम से एक और अति- सुन्दर प्रस्तुति |
धन्यवाद |

vandana gupta ने कहा…

आज के हालात पर तीखा प्रहार करती एक सशक्त रचना।

रचना दीक्षित ने कहा…

आज के माहौल पर सशक्त प्रहार बहुत अच्छा लगा

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

behatreen rachna, main to mugdh ho gaya hun.

sandhyagupta ने कहा…

vir ras se ot-prot is utkrist aur sarthak rachna ke liye badhai.

Parul kanani ने कहा…

sundar zazbaat!

मनोज कुमार ने कहा…

व्यवस्था पर कटाक्ष और परिवर्तन का आह्वान के स्वर बहुत ही ओज भरे हैं। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

sahi hai... apni apni jagah se hum nirnay lete hai, per ishwar ki jagah nirdharit kerti hai

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

लगता है आज का पार्थ भी कौरवों से मिल गया है और सी ड्ब्लू जी में खेल रहा है :)

Kailash Sharma ने कहा…

तुम गिरफ्त में हो

उनके लुभावने नारों के

शायद तुम्हें पता नहीं

उनका अगला प्रहार

तुम्हारे श्वासों पर होगा.....


बहुत ही सुन्दर और प्रेरक रचना...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

वे तुम्हारे उगाये अनाजों को
इसलिये सड़ा रहे हैं
ताकि मूल्य बढ़ा सकें.
और फिर किसकदर
तुम्हारे हक पर
नजरे गड़ा रहे हैं.

बहुत सुंदर शब्दों से नवाज़ा है कविता को. हमेशा की तरह सशक्त लेकन.

Jyoti ने कहा…

पार्थ तुम्हें बढ़ना ही होगा.
यकीनन,
पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

रंजना ने कहा…

समसामयिक सार्थक अतिसुन्दर रचना जो झकझोरती है,प्राणों में उर्जा भर प्रतिकार को प्रेरित करती है..


साधुवाद !!!

Akanksha Yadav ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता...प्रहार भी...सन्देश भी.

Urmi ने कहा…

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!

बेनामी ने कहा…

बहुत ही ओजस्वी और उदबोधात्मक कविता ! करना ही होगा !मुक्तिबोध की शैली है ...शंखनाद करती हुई ! आभार !

निर्मला कपिला ने कहा…

तुम गिरफ्त में हो

उनके लुभावने नारों के

शायद तुम्हें पता नहीं

उनका अगला प्रहार

तुम्हारे श्वासों पर होगा.

इससे पहले कि तुम फिर खो दो

खुद को और अपने अभिमन्यु को,
बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश देती कविता है। बधाई।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

वर्मा जी ,
पार्थ तुम्हें लड़ना ही होगा; खीचनी ही होगी गाँडीव की प्रत्यंचा, लक्ष्य-भेद से कतराकर; आत्ममुग्धता की स्थिति में आकर तुम नहीं आगे बढ पाओगे.....
हर बार की तरह एक बेहतरीन रचना .....

शारदा अरोरा ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरती से आज के द्वन्द को उभारा है , काश हम अर्जुन ही बन सकते ..

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

वे तुम्हारे उगाये अनाजों को

इसलिये सड़ा रहे हैं

ताकि मूल्य बढ़ा सकें.

और फिर किसकदर

तुम्हारे हक पर

नजरे गड़ा रहे हैं.
samyik vishay par bahut hee hsandar rachna....badhai

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपकी रचना इस बात को सार्थक करती है की हर युग में महाभारत रचा जाता है किसी न किसी रूप में .... बहुत ही सार्थक रचना है वर्मा जी ....

राज भाटिय़ा ने कहा…

, देखो तुम भी तो देखो वे तुम्हारे उगाये अनाजों को इसलिये सड़ा रहे हैं ताकि मूल्य बढ़ा सकें.
सही कहा आप् ने, ओर आज हम सब को जागरुक होने की जरुरत हे, ताकि यह शेतान फ़िर से ना आ जाये रुप बद्ल कर हमारे ही पेट पर लाट मारने के लिये

mridula pradhan ने कहा…

wah. itni achchi kavita padhkaer bara achcha laga.

Girish Billore Mukul ने कहा…

अति उत्तम
मिसफ़िट:सीधी बात

निर्मला कपिला ने कहा…

वंश के वंश

खड़े किये गये

दंश के कगार पर
सटीक अभिव्यक्ति।
आपकी आवाज मे गज़ल सुनी मन आनन्द से भर गया। बहुत सुन्दर पोस्ट। धन्यवाद।

Unknown ने कहा…

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