अब तक सोये
बुलडोज़रों को
आख़िर काम मिलेगा,
अरावली—तुझे अब
एक नया नाम मिलेगा।
जिसे पहाड़ कहा जाता
था
वह “प्लॉट” कहलायेगा,
हर चोटी का कद अब
फ़ाइल में नापा जायेगा।
तू अपनी ऊँचाई खुद
कभी क्यों नहीं नापता?
तू सियासतों की फितरत
अब तक क्यों नहीं भापता?
कुर्सी से दिखता जो
ऊँचा
वही तुझे महान लगे,
धरती की चीखें तुझे
अब तक क्यों अनजान लगे?
यह विकास नहीं—
यह माप बदलने की साज़िश है,
जहाँ बुलडोज़र सच है
और पहाड़ एक बार-बार उठता
असहज सवाल है।
याद रख!
इतिहास ऊँचाई नहीं पूछेगा,
इतिहास नीयत नापेगा।
2 टिप्पणियां:
अरावली का दर्द बखूबी बयान करती रचना
😊 नमस्ते
एक टिप्पणी भेजें