रविवार, 21 दिसंबर 2025

आकाश पर पहरा

एक राज्य के राजा

महल की छत पर टहल रहे थे,

तभी उनकी नज़र गई

परिंदों की बेखौफ उड़ान पर।

 

उन्हें लगा,

यह तो सीधा हमला है

उनकी राजकीय शान पर।

यह उन्हें नागवार लगा,

अहंकार ने फिर फरमान जारी कर दिया:

नभ की व्यापक सीमाओं पर

अब बस राज-मुहर होगी,

उड़ने की हर एक कोशिश

अब सत्ता के घर होगी।

 

परिंदों ने इस ज़ुल्म के खिलाफ

अपना मोर्चा खोल दिया,

देखते ही देखते महल पर

सीधा धावा बोल दिया।

उठा लीं उन्होंनेनारों की तख्तियाँ,

धूल चाटने लगीं राजा की तमाम सख्तियाँ।

 

राजा घबराया,

मंत्रिपरिषद को तुरंत बुलाया।

लंबे विमर्श के बाद

एक नया पाखंडी फरमान जारी हुआ:

जो अपने पंख राजकोष में जमा करेगा,

उसे सम्मानित किया जाएगा।

वे बंदी नहीं बनाए जाएँगे,

और उन पर से हटा दी जाएगी

उड़ान की पाबंदी।

 

बहुत से पंछियों ने

अपने पंख राज-चरणों में डाल दिया,

राजा ने भी उन्हें

देशभक्तके तमगे का ढाल दिया ।

 

लेकिन कुछ थे,

जिन्होंने इस कड़वे सच को पहचाना:

कि उड़ान पर तो बस पंछियों का हक है।

महलों की उस सुरक्षा से,

बेहतर अपनी खुद्दारी और शक है।

वे इस सौदे को नहीं माने

उनकी ज़िद थी कि वे उड़ेंगे,

बिना किसी अनुमति-पत्र के।

 

तभी, दरबार ने अंतिम फैसला सुना दिया

अपराधी कहलाए वे पक्षी,

जो अपने पंख बचा ले गए।

द्रोही घोषित हुए वे,

जिनके लिए तैनात हुईं बंदूकें,

और आदमकद पाबंदियाँ

चौराहों से आसमान तक बढ़ा दी गईं।

 

इन सब के बावजूद,

हवाओं में आज भी एक आवाज़ गूँजती है

पंख बेचने से बेहतर है

अपनी ऊँची उड़ान पर अड़े रहो।

जिसने अपने पंख नहीं बेचे,

सच मानिए

यह अनंत आकाश बस उसी का है। 

2 टिप्‍पणियां:

Razia Kazmi ने कहा…

कटाक्ष बहुत ही शानदार है वाह

M VERMA ने कहा…

Thanks