पहले हर काम मैं
परफ़ेक्शन से कर देता था,
और वो उलझ जाती थीं—
क्योंकि उन्हें मौका नहीं मिलता था
मुझसे शिकवा करने का।
मैं समझता हूँ,
तानों में भी एक गहरा अपनापन होता है,
और नाराजगी—कभी-कभी
सबसे प्यारी भाषा बन जाती है।
अब जान-बूझकर
छोड़ देता हूँ एक न एक त्रुटि—
ताकि वो डाँटें,
बुदबुदाएँ,
और फिर होंठों की कोरों पर
हल्की-सी जीत की मुस्कान लिये
चलती फिरें पूरे घर में।
लोग कहते हैं—
प्यार देना, निभाना, सँभालना होता है,
पर मैंने सीखा है—
कभी-कभी प्यार,
जानबूझकर अपूर्ण होने में भी होता है।

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