शनिवार, 29 नवंबर 2025

“तुम्हारी सोच जलेगी — वह नहीं।” .... (पत्नी कोई वस्तु या खिलौना नही)

 

पत्नी होती है
सहचर, साथी,
चलती है कदम से कदम,
पर तुम्हारी परछाई बनकर नहीं।

वह थकती है, सोचती है,
उलझती है, टूटती है,
और फिर खुद ही
अपने टुकड़ों को जोड़कर
फिर खड़ी हो जाती है
जबकि तुम
आज भी उसके वजूद को
सिर्फ भूमिकासमझने की भूल करते हो।

तुम्हारी वो सड़ी हुई
सामंतवादी सोच
जिसे तुम परवरिश का नाम देते हो
हर बार उसे खिलौना बनाती है,
सामान समझती है,
और बराबरी से तुम्हें
अजीब-सा डर लगने लगता है।

पर सुनो
वह कोई वस्तु नहीं,
न तमाशा, न खिलौना।
वह एक पूरा मन है,
पूरा वजूद
जिसे तुम चाहो या न चाहो,
वह हमेशा बराबरी पर ही खड़ी रहेगी।

अगर तुम्हें औरत में आज भी

चीज़, खिलौना या वस्तु नज़र आती है,
तो तुम्हे ज़रूरत है -
अपनी सोच का पोस्टमॉर्टम करने की।

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