Tuesday, February 28, 2012

कब्जे में ये खलिहान करते हैं ….


माना कि ये रक्तपान करते हैं
पर हर रोज गंगास्नान करते हैं
.
शक के दायरे से बचने के लिए
खुद ही को लहुलुहान करते हैं
.
लूटते हैं जब भी काफिले को
मुक्तहस्त से फिर दान करते हैं
.
हादसे जब होकर गुजर जाते हैं
शिद्दत से ये सावधान करते हैं
.
मुर्दों से इनकी जान पहचान है
कब्रिस्तानों में जलपान करते हैं
.
पर कुतरने की तैयारी होती है
जब किसी का सम्मान करते हैं
.
खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं

38 comments:

vidya said...

बहुत बढ़िया सर..
तीखा कटाक्ष है हमारे समाज के ठेकेदारों पर...

सादर.

vandana gupta said...

एक एक शब्द गहरा वार कर रहा है कहने को शब्द भी कम पड रहे हैं।

आनन्द पाठक said...

आ0 वर्मा जी
ग़ज़ल अच्छी है भाव अच्छे हैं भावना अच्छी है
मगर ’बह्र" समझ में नहीं आ रही है और ग़ज़ल कहीं कहीं बह्र से खारिज़ भी हो जा रही है

मक़्ता में आप का कोई ’तख़्खलुस" भी होता तो ग़ज़ल और अच्छी उतरती
दाद कुबूल करें
सादर
आनन्द.पाठक

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

"खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं"

वाह! क्या सटीक चरित्र चित्रण किया है,व्यवस्था में व्याप्त लुठेरों का! वाह!

kshama said...

Harek shabd,harek pankti behtareen!

Amrita Tanmay said...

बेहद खुबसूरत व प्रभावी रचना के लिए आभार..

shama said...

Gazab kee rachana hai!

रश्मि प्रभा... said...

हादसे जब होकर गुजर जाते हैं

शिद्दत से ये सावधान करते हैं

.waah, kya baat kahi hai

डॉ टी एस दराल said...

वाह ! मनुष्य की दोहरी मानसिकता को बहुत खूबसूरती से ग़ज़ल में पिरोया है .

प्रवीण पाण्डेय said...

सन्नाट कटाक्ष है..

दिगम्बर नासवा said...

खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं ...

समाज को आइना दिखा रही है आपकी गज़ल ... जबरदस्त है हर शेर ... कुछ न कुछ सार्थक कटाक्ष करता हुवा ...

संजय भास्‍कर said...

खेतों से इनका सरोकार नहीं है कब्जे में ये खलिहान करते हैं
.....यकीनन सच
तीखा कटाक्ष है वर्मा जी

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

खेतों से इनका सरोकार नहीं है

कब्जे में ये खलिहान करते हैं
एकदम सच्ची बात !

virendra sharma said...

खेतों से इनका सरोकार नहीं है

कब्जे में ये खलिहान करते हैं
सशक्त रचना .कटाक्ष ही कटाक्ष व्यवस्था पर ढकोसलों पर स्पेशल इकोनोमिक जोंस पर .क्या कहने हैं .

डॉ टी एस दराल said...

इन्सान का वीभत्स रूप दिखाया है ।
बेहतरीन ग़ज़ल वर्मा जी ।

संगीता पुरी said...

बहुत सटीक अभिव्‍यक्ति !!

SushantShankar said...

बहुत ही अच्छा कटाक्ष है ,शायद उन सभी पर भी सही बैठता है जो अन्ना आन्दोलन में जुड़े थे और खुद ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त थे

SushantShankar said...

बहुत ही अच्छा कटाक्ष है ,शायद उन सभी पर भी सही बैठता है जो अन्ना आन्दोलन में जुड़े थे और खुद ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त थे

M VERMA said...

सुशान्त has left a new comment on your post "कब्जे में ये खलिहान करते हैं ….":

बहुत ही अच्छा कटाक्ष है ,शायद उन सभी पर भी सही बैठता है जो अन्ना आन्दोलन में जुड़े थे और खुद ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त थे

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

समाज को तीखा कटाक्ष करती बेहतरीन सुंदर रचना
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति,के लिए बधाई..वर्मा जी,..

काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया कटाक्ष ... हर शेर बहुत कुछ कह गया ....

M VERMA said...

संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "कब्जे में ये खलिहान करते हैं ….":

बहुत बढ़िया कटाक्ष ... हर शेर बहुत कुछ कह गया ....



Posted by संगीता स्वरुप ( गीत ) to जज़्बात at February 29, 2012 1:00 AM

अजय कुमार झा said...

बेहतरीन । डायरेक्ट दिल से । वर्मा जी हैट्स ऑफ़ टू यू सर जी

वाणी गीत said...

खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं...
हर एक शब्द व्यवस्था पर गहरी चोट करता है !
बेहतरीन !

विभूति" said...

मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....

सदा said...

पर कुतरने की तैयारी होती है
जब किसी का सम्मान करते हैं

खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं
वाह ..बहुत खूब लिखा है आपने ..

Kailash Sharma said...

हादसे जब होकर गुजर जाते हैं

शिद्दत से ये सावधान करते हैं

......लाज़वाब! बेहतरीन गज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा और सटीक..

Arvind Mishra said...

बस कहने भर को इंसान हैं ये
मगर काम शैतान का करते हैं !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर भाव अभिव्यक्ति की बेहतरीन रचना,..

NEW POST...फिर से आई होली...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर भाव अभिव्यक्ति की बेहतरीन रचना,..

NEW POST...फिर से आई होली...

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...........
शब्दों से बढ़िया मार लगाईं आपने सर..

बहुत खूब...

सादर.

दिगम्बर नासवा said...

आपको और परिवार में सभी को होली की शुभ कामनाएं ...

दिगम्बर नासवा said...

गज़ल का हर शेर कमाल का है ... बहुत ही गहराई लिए .. कडुवी सच्चाई लिए ...

ज्योति सिंह said...

पर कुतरने की तैयारी होती है

जब किसी का सम्मान करते हैं

.

खेतों से इनका सरोकार नहीं है

कब्जे में ये खलिहान करते हैं
bahut badhiya ,holi ki dhero badhai aapko

Asha Joglekar said...

लूटते हैं जब भी काफिले को
मुक्तहस्त से फिर दान करते हैं .
हादसे जब होकर गुजर जाते हैं
शिद्दत से ये सावधान करते हैं

तीखा व्यंग हमारे राजनेताओं पर । वैसे तो हर शेर उम्दा है ।

Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

India Darpan said...

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....

रंजना said...

खेतों से इनका सरोकार नहीं है

कब्जे में ये खलिहान करते हैं ...

क्या बात कही...वाह वाह वाह...

एक से बढ़कर एक शेर गढ़े हैं आपने..

लाजवाब, बहुत ही लाजवाब रचना..