माना कि ये रक्तपान करते हैं
पर हर रोज गंगास्नान करते हैं
.
शक के दायरे से बचने के लिए
खुद ही को लहुलुहान करते हैं
.
लूटते हैं जब भी काफिले को
मुक्तहस्त से फिर दान करते हैं
.
हादसे जब होकर गुजर जाते हैं
शिद्दत से ये सावधान करते हैं
.
मुर्दों से इनकी जान पहचान है
कब्रिस्तानों में जलपान करते हैं
.
पर कुतरने की तैयारी होती है
जब किसी का सम्मान करते हैं
.
खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं
38 comments:
बहुत बढ़िया सर..
तीखा कटाक्ष है हमारे समाज के ठेकेदारों पर...
सादर.
एक एक शब्द गहरा वार कर रहा है कहने को शब्द भी कम पड रहे हैं।
आ0 वर्मा जी
ग़ज़ल अच्छी है भाव अच्छे हैं भावना अच्छी है
मगर ’बह्र" समझ में नहीं आ रही है और ग़ज़ल कहीं कहीं बह्र से खारिज़ भी हो जा रही है
मक़्ता में आप का कोई ’तख़्खलुस" भी होता तो ग़ज़ल और अच्छी उतरती
दाद कुबूल करें
सादर
आनन्द.पाठक
"खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं"
वाह! क्या सटीक चरित्र चित्रण किया है,व्यवस्था में व्याप्त लुठेरों का! वाह!
Harek shabd,harek pankti behtareen!
बेहद खुबसूरत व प्रभावी रचना के लिए आभार..
Gazab kee rachana hai!
हादसे जब होकर गुजर जाते हैं
शिद्दत से ये सावधान करते हैं
.waah, kya baat kahi hai
वाह ! मनुष्य की दोहरी मानसिकता को बहुत खूबसूरती से ग़ज़ल में पिरोया है .
सन्नाट कटाक्ष है..
खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं ...
समाज को आइना दिखा रही है आपकी गज़ल ... जबरदस्त है हर शेर ... कुछ न कुछ सार्थक कटाक्ष करता हुवा ...
खेतों से इनका सरोकार नहीं है कब्जे में ये खलिहान करते हैं
.....यकीनन सच
तीखा कटाक्ष है वर्मा जी
खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं
एकदम सच्ची बात !
खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं
सशक्त रचना .कटाक्ष ही कटाक्ष व्यवस्था पर ढकोसलों पर स्पेशल इकोनोमिक जोंस पर .क्या कहने हैं .
इन्सान का वीभत्स रूप दिखाया है ।
बेहतरीन ग़ज़ल वर्मा जी ।
बहुत सटीक अभिव्यक्ति !!
बहुत ही अच्छा कटाक्ष है ,शायद उन सभी पर भी सही बैठता है जो अन्ना आन्दोलन में जुड़े थे और खुद ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त थे
बहुत ही अच्छा कटाक्ष है ,शायद उन सभी पर भी सही बैठता है जो अन्ना आन्दोलन में जुड़े थे और खुद ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त थे
सुशान्त has left a new comment on your post "कब्जे में ये खलिहान करते हैं ….":
बहुत ही अच्छा कटाक्ष है ,शायद उन सभी पर भी सही बैठता है जो अन्ना आन्दोलन में जुड़े थे और खुद ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त थे
समाज को तीखा कटाक्ष करती बेहतरीन सुंदर रचना
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति,के लिए बधाई..वर्मा जी,..
काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
बहुत बढ़िया कटाक्ष ... हर शेर बहुत कुछ कह गया ....
संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "कब्जे में ये खलिहान करते हैं ….":
बहुत बढ़िया कटाक्ष ... हर शेर बहुत कुछ कह गया ....
Posted by संगीता स्वरुप ( गीत ) to जज़्बात at February 29, 2012 1:00 AM
बेहतरीन । डायरेक्ट दिल से । वर्मा जी हैट्स ऑफ़ टू यू सर जी
खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं...
हर एक शब्द व्यवस्था पर गहरी चोट करता है !
बेहतरीन !
मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....
पर कुतरने की तैयारी होती है
जब किसी का सम्मान करते हैं
खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं
वाह ..बहुत खूब लिखा है आपने ..
हादसे जब होकर गुजर जाते हैं
शिद्दत से ये सावधान करते हैं
......लाज़वाब! बेहतरीन गज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा और सटीक..
बस कहने भर को इंसान हैं ये
मगर काम शैतान का करते हैं !
सुंदर भाव अभिव्यक्ति की बेहतरीन रचना,..
NEW POST...फिर से आई होली...
सुंदर भाव अभिव्यक्ति की बेहतरीन रचना,..
NEW POST...फिर से आई होली...
वाह...........
शब्दों से बढ़िया मार लगाईं आपने सर..
बहुत खूब...
सादर.
आपको और परिवार में सभी को होली की शुभ कामनाएं ...
गज़ल का हर शेर कमाल का है ... बहुत ही गहराई लिए .. कडुवी सच्चाई लिए ...
पर कुतरने की तैयारी होती है
जब किसी का सम्मान करते हैं
.
खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं
bahut badhiya ,holi ki dhero badhai aapko
लूटते हैं जब भी काफिले को
मुक्तहस्त से फिर दान करते हैं .
हादसे जब होकर गुजर जाते हैं
शिद्दत से ये सावधान करते हैं
तीखा व्यंग हमारे राजनेताओं पर । वैसे तो हर शेर उम्दा है ।
बहुत बेहतरीन....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
खेतों से इनका सरोकार नहीं है
कब्जे में ये खलिहान करते हैं ...
क्या बात कही...वाह वाह वाह...
एक से बढ़कर एक शेर गढ़े हैं आपने..
लाजवाब, बहुत ही लाजवाब रचना..
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