आईने के सामने बैठ
खुद को पहचानने की कोशिश में
रूबरू हो गए
मेरे समस्त अन्तर्निहित
और अनाहूत किरदार.
मेरे वजूद की धज्जियाँ उड़ाते
कुछ थे रंगदार;
तो कुछ स्वयम्भू सरदार,
कोई धारदार हथियारों से लैस था;
तो किसी की निगाहों में
बेवजह तैस था,
कुछ न जाने क्या गा रहे थे;
तो कुछ लगातार खा रहे थे,
कुछ अनाचारी;
तो कुछ थे व्यभिचारी,
यही नहीं इन्हीं के बीच
अट्टहास लगाता फिर रहा था
एक किरदार बलात्कारी.
.
आईने
झूठ नहीं बोलते हैं,
पर मैं इन्हें छुपा लूंगा
मुस्कराते हुए;
खुशनुमा मुखौटों के बीच
इससे पहले कि
ये किसी और को नज़र आयें.
.
जी हाँ ! मैं इन्हें छुपा लूंगा.
39 comments:
kya bat hai aaine ka sahi rup prastut kiya hai badhai
बहुत सही ..बेहतरीन
आईने
झूठ नहीं बोलते हैं,
पर मैं इन्हें छुपा लूंगा
मुस्कराते हुए;
खुशनुमा मुखौटों के बीच
इससे पहले कि
ये किसी और को नज़र आयें.
भावमय करते शब्द ।
badhiya rachnas.
बहुत सुन्दर, अफ़सोस कि इन दुराचारियों को आप वहां जाने से नहीं रोक सकते, दो सभाएं है एक से नहीं घुसे तो दूसरी से घुस जायेंगे !
बहुत सुन्दर
nice :)
behtareen abhivyakti
उम्दा और बेहतरीन
Gyan Darpan
..
आईने से क्या क्या छिपाया जाये भला..
इन्सान के भी कई भयानक चेहरे होते हैं ।
लेकिन लोग आईना देखते ही कहाँ हैं ।
बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई वर्मा जी ।
सुन्दर!
behtarin rachana hai...
behtarin rachana hai...
behatarin abhivykti...
सही कहा आपने. आईने झूठ नही बोलते है.
बेहतरीन भावमयी प्रस्तुति.
आईने
झूठ नहीं बोलते हैं,
पर मैं इन्हें छुपा लूंगा
लाजवाब रचना...
सादर.
लाज़वाब! बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
आईने के सामने खुद का विश्लेषण यूँ भी होता है .. गहन अभिव्यक्ति
man ko chhu gayi aap kii racna
badhai
behtareen....
www.poeticprakash.com
bhawpoorn......
बहुत शशक्त ... लाजवाब ... सोचने को मजबूर करती है रचना ...
sach kaha vo in sab kirdaron ko chhupa lega aur ek bar fir janta ko ullu bana lega....yahi to uska maksad hai.
"मैं इन्हें छुपा लूँगा" बेहतरीन पंक्तियाँ हैं | और यही तो हमारे देश का दुर्भाग्य है कि सब जानते हुए भी कुछ कर नहीं पा रहें हैं हम |
सुंदर प्रस्तुति,
पोस्ट में आने के लिए आभार,...इसी तरह स्नेह बनाए रखे,...धन्यबाद
बेहतरीन...
बहुत गहरी अभिव्यक्ति
सादर.
मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !
एक भाव पूर्ण रचना....सुन्दर प्रस्तुति!
आईना झूठ नहीं बोलता...
अंदर झांकने को प्रेरित व्यंग्य...
आईने
झूठ नहीं बोलते हैं,
पर मैं इन्हें छुपा लूंगा
मुस्कराते हुए;
खुशनुमा मुखौटों के बीच
इससे पहले कि
ये किसी और को नज़र आयें.
बेहतरीन पंक्तियाँ.
vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
बेहद ही गहन भाव युक्त शसक्त रचना
बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति..
वाह बहुत खूब ...
छिपाना भी क्या इतना आसान हो पायेगा??
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........
सुंदर अभिव्यक्ति अच्छी रचना,..
NEW POST --26 जनवरी आया है....
is hunar me to aaj sabhi ek se badh kar ek hain.
sunder sateek vyangy.
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