भीड़ में होते हैं
अनगिनत पाँव
पर नहीं होता है
भीड़ का अपना पाँव.
भीड़ देखती है
अनगिन आँखों से
पर नहीं होती हैं
भीड़ की अपनी आँखें.
भीड़ अक्सर
नारे लगाती है
पर नहीं होता है
भीड़ का अपना कोई नारा.
भीड़ को देखकर
भीड़ मुड़ जाती है
क्योंकि भीड़,
भीड़ से कतराती है.
उजाड देती है पल में
आशियाना, नीड़
खौफनाक होती है
बेख़ौफ़ भीड़.
भीड़ में यूं तो
होते हैं अनगिनत चेहरे
पर नहीं होता है
भीड़ का अपना चेहरा
.
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
34 comments:
kuchh bhi n hote hue bhi bheed me sab kuchh hai..saty kaha.
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
Sach! Bheed ka badaa hee darawna roop aapne dikha diya!
भीड़ तो उद्देश्यहीन होती है ... कारण से बेखबर, परिणाम से बेखबर
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भीड़ के मनोविज्ञान का क्या ख़ूब चित्रण !
भीड़ का सच यही होता है, कोई नेपथ्य से संचालन करता है।
भीड़ का दिमाग नहीं होता ... पर भीड़ के पीछे शातिर दिमाग होता है/ सटीक
वाह!.... बिलकुल सही लिखा है..
और हमारे जैसे देश में तो उतनी भीड़ नहीं जुटती जितने शातिर दिमाग उसके पीछे उसे जुटाने में लगे होते है , ५०-५० रूपये बांटकर !
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
बिल्कुल सच कहा है आपने इन पंक्तियों में ।
और शातिर दिमाग बड़ा फसादी भी होता है..प्रभावी रचना..
भीड़ का अपना कोई चेहरा नहीं होता .अमूर्त होती है भीड़ .प्रजा तंत्र को सींच रही है यही भीड़ ....
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
सही कहा आपने...
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
बहुत ही पते की बात कही है..
Bilkul sach kahte hain!
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
बहुत गहरी बात कह दी .
बेहतरीन रचना .
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है. ...
जबरदस्त ... पहुत ही प्रभावी धमाकेदार रचना ... कमाल का लिखा है भीड़ का पूरा चीड फाड़ कर दिया और असली चेहरा सामने ला दिया ...
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है…………यही है कडवा सच्।
वाह बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने भीड़ के व्यवाहर को शब्दों में पिरोया है बहुत ही सुंदर भाव संयोजन ....
bheed ke peeche shatir dimaag hota hai ...sahi kaha aaj ke vaqt me to yahi hota hai achche maksad ke liye to itni bheed nahi hoti jitni shati dimaag ki chaal me fanskar bheed jama hoti hai.
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
भीड़ को सही शब्दों में उकेरा है .. अच्छी प्रस्तुति
भीड़ में सच में अपना दिमाग कहाँ होता है..बहुत सटीक और सुंदर प्रस्तुति...
भीड़, अक्सर दिमाग के नियंत्रण में आ जाती है.
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
भीड़ के मनोविज्ञान की सटीक व्याख्या।
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
बहुत खूब!!
भीड का सच्चा वर्णन ।
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
यूं तो भीड़ का
अपना दिमाग नहीं होता है,
पर हर भीड़ के पीछे
एक शातिर दिमाग होता है.
bahut sahi ,rachna bahut hi achchhi hai
बहुत अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन प्रभावी रचना,...
MY NEW POST ...कामयाबी...
बहुत सुन्दर विश्लेषण ...
भीड़ में यूं तो
होते हैं अनगिनत चेहरे
पर नहीं होता है
भीड़ का अपना चेहरा
....भीड़ की मानसिकता का बहुत सटीक चित्रण..
सुन्दर प्रस्तुति....बेहतरीन रचना....
कृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या(भाग-2)
varma ji it's nice rally.congr..
सच कहा...तभी कहते हैं..
mob mentality..
बढ़िया चित्रण सर..
जाने कैसे पहले नहीं आ पायी इस पोस्ट तक ..
विलम्ब के लिए क्षमा..
सादर.
बहुत खूब ! भीड़ की मानसिकता का सुन्दर विश्लेषण किया है ।
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