कभी सर्द हवाओं;
तो कभी
गर्म थपेड़ों के बहाने
उसके इर्द-गिर्द
खड़ी कर दी गई
बिना छत की दीवारें ।
वह विभेद करता रहा,
उन दीवारों से कान सटाकर
अट्टहास और चीत्कार में ।
अक्सर रात में
उसे दिखाये गये
चमकदार तारें;
आक्सीजन के नाम पर
उसे दिया गया निरंतर
आश्वासनों का अफीम ।
वह खुद ही में खोया,
कभी खुद ही को ढोया
और फिर
फूट-फूट कर रोया ।
.
मुझे पता है अब वह
खुद को भरमायेगा;
दीवारों से सर टकरायेगा
और फिर अंततोगत्वा
वहीं मर जायेगा ।
शायद वह जानता ही नहीं
साजिशों से बनी दीवारें
टूटा नहीं करती हैं ।
25 comments:
शानदार रचना
Gyan Darpan
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न जाने ऐसी कितनी ही दीवारें खड़ी कर ली हैं हमने अपने चारों ओर।
जाने कितने दर्द बयाँ कर रही है यह गूढ़ रचना ।
महंगाई और भ्रष्टाचार रुपी साजिशों की दीवारों में घिरा इंसान आज यूँ ही तड़प तड़प कर मर रहा है ।
गहन अर्थ लिए हुए खूबसूरत रचना
और फिर अंततोगत्वा
वहीं मर जायेगा ।
शायद वह जानता ही नहीं
साजिशों से बनी दीवारें
टूटा नहीं करती हैं ।
Uff!
•आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ...कल शनिवार (५-११-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ......कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें .....!!!धन्यवाद.
बिना छत की दीवारें और साजीशों का भंवर... अंततोगत्वा मिटा ही तो देता है!
गहन रचना!
गहन भावों की अभिव्यक्ति दीवारों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया आपने ...
साजिशों से बनी दीवारें टूटा नहीं करती ...
बेहतरीन !
सुन्दर रचना....
सादर...
साजिशों से बनी दीवारें टूटती नहीं
तोड़ देती हैं ....
अच्छी रचना,
बहुत सुंदर
शायद वह जानता ही नहीं
साजिशों से बनी दीवारें
टूटा नहीं करती हैं ।
Ekdam sachch, shaandaar rachnaa.
जबर्दस्त कविता लिखी है।
behatareen bhaavon se saji sundar kavita
भावमय करती प्रस्तुति ।
साजिशे है हर तरफ़
है मगर अचरज फिर भी
घर बसे हैं, घर बचे हैं
--ऋषभ देव शर्मा [‘ताकि सनद रहे’ पुस्तक से]
वे लौह दीवारें होती हैं शायद !
मुझे पता है अब वह
खुद को भरमायेगा;
दीवारों से सर टकरायेगा
और फिर अंततोगत्वा
वहीं मर जायेगा ।
बहुत गंभीर और विचारणीय प्रस्तुति. मन बहुत भावुक हो गया इस रचना से.
और साजिशें आपके नाम को बट्टा लगाने के लिए इतिहास मे दर्ज हो जाती हैं.. साजिशें मरा नहीं करतीं...
शायद वह जानता ही नहीं
साजिशों से बनी दीवारें
टूटा नहीं करती हैं।
...वाह! ये पंक्तियाँ बड़ी दमदार हैं। सशक्त कविता।
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
सही कहा आपने ....
शुभकामनायें ! !
शायद वह जानता ही नहीं
साजिशों से बनी दीवारें
टूटा नहीं करती हैं ।
....gahra arthbodh karati saarthak rachna...
खूबसूरत रचना।
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