धुप्प अन्धेरा
भागते हुए लोग;
मुट्ठी भर दिवास्वप्न लिये
सारी-सारी रात
जागते हुए लोग,
बियाबाँ से गुजरे
तो महफिल में ठहरे;
कभी अपनों की चीख सुन
हो गये बहरे,
जिस्म छलनी-छलनी
सतरंगी लिबास,
शातिर निगाहें
कातिल बाहें
तनहाई का शोर
सूरज की आहट हुई
लो हो गई भोर,
जिस्म पर छिपकली
लाशें हैं अधजली
नाली में कंकाल
कभी बाढ़ -
तो कभी अकाल,
लहुलुहान सूरज छिप गया
पहाड़ी के पीछे,
रक्तबीज दम तोड़ रहे
झाड़ी के पीछे,
रिश्तों का तिलिस्म;
बेदम सा जिस्म
खानाबदोश नागर
यायावर सवाल
लोटे में सागर
रोटियों का फ्लैगमार्च
भूख का आत्मसमर्पण,
शक्लें जब पहचानी
हैरान हो गया दर्पण
.
घुटने के बल चलना है
सफ़र अभी जारी है;
कन्दील बुझने तक
सफ़र अभी जारी है
35 comments:
घुटने के बल चलना है
सफ़र अभी जारी है;
कन्दील बुझने तक
सफ़र अभी जारी है
bahut khoobsurat nazm ....
घुटने के बल चलना है
सफ़र अभी जारी है;
कन्दील बुझने तक
सफ़र अभी जारी है ........
बहुत सुन्दर प्रस्तुति......आभार..
... shaandaar rachanaa !
जिस्म पर छिपकली
लाशें हैं अधजली
नाली में कंकाल
कभी बाढ़ -
तो कभी अकाल,
बेहतरीन रचना वर्मा साहब ! हकीकत से रूबरू करवाती !
vermaji,
sundar rachna
लोटे में सागर
रोटियों का फ्लैगमार्च
भूख का आत्मसमर्पण,
शक्लें जब पहचानी
हैरान हो गया दर्पण
गहरी संवेदनाये व्यक्त करती पंक्तियाँ.
लफ्ज़ भी भारी है,
चित्रण भी कलाकारी है,
ये रचना सुनाने के लिए,
हम आपके आभारी है
बहुत सुन्दर बिम्ब विधान ...
संत्रास को, अनिश्चय को दर्शाती हुई सुन्दर रचना.
ओह ..कैसा विभत्स मंज़र खिंच गया इस रचना से ..हकीकत को कहती बहुत संवेदनशील रचना ..
धुप्प अंधेरा
बढ़ रही
धुकधुकी है
धुप्प अंधेरों से ही निकलती
धुपधुपी है।
....कंदील बुझने तक जारी सफर रोशनी की संभावना लिए होती है।
....चिंतन के बाध्य करती कविता।
बहुत सुन्दर रची गढ़ी कविता।
bhukh or gribi ki drd bhri dastaan khubsurt alfaazon men pesh kr mrm bdhaa diyaa jnab. akhtar khan akela kota rajsthan
very good darling
घुटने के बल चलना है
सफ़र अभी जारी है;
कन्दील बुझने तक
सफ़र अभी जारी
bahut hi khoobsurat likha hai .
जानदार काव्य !
वाह ! बड़ी गहरी अभिवयक्ति है
घुटने के बल चलना है
सफ़र अभी जारी है;
कन्दील बुझने तक
सफ़र अभी जारी है ........
बहुत ही सुन्दर शब्द एवं भावमय प्रस्तुति ।
घुटने के बल चलना है
सफ़र अभी जारी है;
कन्दील बुझने तक
बेहतरीन रचना ......
बेहद गहन और सोचने को बाध्य करती अभिव्यक्ति।
बहुत कठिन है ये डगर ।
रोटियों का फ्लैगमार्च...गहरे भावों को सजोती है यह उत्तम कविता...बधाई.
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"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...
bahut sundar bhavapoorn rachana ....abhaar
बियाबाँ से गुजरे तो महफिल में ठहरे;
कभी अपनों की चीख सुन हो गये बहरे ...
जीवन की हक़ीकत दिखा दी आपकी इस बेमिसाल रचना ने ,.... बहुत प्रभावी लिखा है ... ज़मीनी सचाई ...
Dunia ka ghinauna chehra jise hamesha dekh kar bhi undekha kar dena chahte hain... is kavita se saamne aa hi gaya...
बहुत बढ़िया और दिलचस्प रचना! सुन्दर प्रस्तुति!
आपको एवं आपके परिवार को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!
लोटे में सागर
रोटियों का फ्लैगमार्च
भूख का आत्मसमर्पण,
शक्लें जब पहचानी
हैरान हो गया दर्पण
उमदा रचना। बधाई।
लोटे में सागर
रोटियों का फ्लैगमार्च
भूख का आत्मसमर्पण,
शक्लें जब पहचानी
हैरान हो गया दर्पण
...गहरी संवेदनशील अभिवयक्ति ...
आपको एवं आपके परिवार को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!
जिस्म पर छिपकली
लाशें हैं अधजली
नाली में कंकाल
कभी बाढ़ -
तो कभी अकाल,
वाह क्या बात है ....
हकिकात बयानी और फिर उम्मीद कि बात ...
बहुत सुन्दर !
मन को झन्झना देने वाली एक सशक्त रचना !
अनगिन पाँव होते हुए भी
अपने पैरों पर
कब चली है भीड़ !! ..
behatreen prastuti.
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घुटने के बल चलना है
सफ़र अभी जारी है;
कन्दील बुझने तक
सफ़र अभी जारी
verma sir bhut accha likha hai apne
kripya yaha bhi aye aur apna ashirvad de
उफ्फ्फ!!!! के सिवाय क्या कहूँ अब. सर चकरा गया पढ़ कर इतना कड़वा सच. आभार
शक्लें जब पहचानी
हैरान हो गया दर्पण .
घुटने के बल चलना है
सफ़र अभी जारी है;
कन्दील बुझने तक
सफ़र अभी जारी है
--
बहुत ही जीवट की रचना!
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न खत्म होने वाले सफर को आपने
सुन्दर शब्दों में बाँधा है!
bahut hi accha likha hai aapne...jaise jindagi
क्या आप एक उम्र कैदी का जीवन पढना पसंद करेंगे, यदि हाँ तो नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते है :-
1- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
2- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
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