
तुम नदी हो बहो
बिना रूके, निरंतर
देखना तारें तुम्हें सजायेंगे,
किनारे खड़े पेड़ और
आसमान का चाँद भी
तुम्हारे विस्तृत अस्तित्व में
डुबकी लगायेंगे
बेशक दिल में हो -
सागर मिलन की तमन्ना
पर रहना चौकन्ना
मिलन की उत्कंठा कहीं
तुम्हारी गति को
बहुत तेज न कर दे
वर्ना,
लोग बाँध बना देंगे और
अवरूद्ध कर देंगे-
तुम्हारे प्रवाह को.
तुम नदी हो बहो
बिना रूके, निरंतर
पर निर्बाध गति पर
‘थकन’ अंकुश न लगा दे
तुम्हारे दिल में भी
विश्राम की इच्छा न जगा दे
और तुम,
कहीं भूल कर भी
गतिशून्य न हो जाओ
वर्ना
नकार देंगे लोग
तुम्हारे अस्तित्व को ही
और फिर
शहर के मलबे के ढेर से
ढक दिये जाओगे
प्रतीक्षारत हैं –
बहुमंजिली इमारतें
तुम्हारे अस्तित्व पर कब्जा करने हेतु .
तुम नदी हो बहो
बिना रूके, निरंतर
दुविधा मे डाल दिया आपने तो यमुना जी को अप्नी इस सुन्दर रच्ना के माध्यम से वर्मा सहाब ! आगे कुंआ पीछे खाई जैसी स्थिति उसके सामने बयां कर दी !
ReplyDelete... सुन्दर रचना !!!
ReplyDeleteप्रतीक्षारत हैं –
ReplyDeleteबहुमंजिली इमारतें
तुम्हारे अस्तित्व पर कब्जा करने हेतु .
बहुत खूबसूरती से रचना के माध्यम से निरंतर गतिमान रहने कि प्रेरणा दी है ...
Kaunsi nadi apne veg pe niyantran rakh payi?
ReplyDeleteHaan,nirantar bahte rahne ka, gatimaan rahne ka sandesh nihayat sundar hai!
sundar bhawon ka prvaah!
ReplyDeleteबांध तोड़ो
ReplyDeleteयह नदी
बंधन नहीं
बहना चाहती है।
..सुंदर भाव जगाती कविता।
bahut hi achhi rachna
ReplyDeleteसुंदर भाव जगाती कविता।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से रचना के माध्यम से प्रेरणा दी है ...
नदी के माध्यम से पूरी जिंदगी समझा डी आपने.बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteनदी का काम ही चलना है । वर्ना वह झील बन कर रह जाएगी । बहुत खूबसूरती से आपने अपनी बात कही है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, जीवन को दर्शाती, धन्यवाद
ReplyDeletebahut hi sundar kavita hai
ReplyDeleteor hamesa aage badne vale sandes ke sath
नदी है तो जीवन है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteसम्पूर्ण जीवन दर्शन है इस रचना में
बहुत सुन्दर काव्य नदिया बही..
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
ReplyDeleteमध्यकालीन भारत धार्मिक सहनशीलता का काल, मनोज कुमार,द्वारा राजभाषा पर पधारें
लोग बाँध बना देंगे और अवरूद्ध कर देंगे-
ReplyDeleteतुम्हारे प्रवाह को....
सुन्दर रचना ........
बहना ही है अपना कार्य।
ReplyDeleteमज़ा ये है, की नदी को समझाने की जरूरत नहीं है, वो तो खुद ब खुद बहती है, और आदमी को जितना समझाओ , उतना कम ..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति, लिखते रहिये ......
तुम नदी हो बहो
ReplyDeleteबिना रूके, निरंतर !!!
यह आपकी सौन्दर्य मयी दृष्टि है ! नदी है तो ..बहे ! बहना है ..तो प्रवाह हो ! प्रवाह हो.. तो निरन्तरता हो ! सौन्दर्य तो मन को मोहता ही है ! आभार
मिलन की उत्कंठा कहीं
ReplyDeleteतुम्हारी गति को
बहुत तेज न कर दे
वर्ना,
लोग बाँध बना देंगे और
अवरूद्ध कर देंगे-
तुम्हारे प्रवाह को.
बहुत सुन्दर लगी आपकी कविता। बधाई
नदी से ही तो जीवन की सार्थकता है ..
ReplyDeleteप्रवाह रुका तो जीवन अवरुद्ध...
...जीवन सन्देश देती सुन्दर अभिव्यक्ति
सुंदर भाव जगाती कविता
ReplyDeleteसम्पूर्ण जीवन दर्शन है इस रचना में
बधाई और आभार
प्रतीक्षा में :
मिलिए ब्लॉग सितारों से
तुम, कहीं भूल कर भी गतिशून्य न हो जाओ
ReplyDeleteवर्ना नकार देंगे लोग तुम्हारे अस्तित्व को ही
और फिर शहर के मलबे के ढेर से
ढक दिये जाओगे
प्रतीक्षारत हैं – बहुमंजिली इमारतें
तुम्हारे अस्तित्व पर कब्जा करने हेतु
तुम नदी हो बहो बिना रूके, निरंतर
जब कविता में इतनी गति है तो नदिया कैसे न गति शील रहेगी
चलना ही ज़िन्दगी है………………बहुत सुन्दर और सार्थक संदेश देती प्रवाहमयी रचना दिल को छू गयी।
ReplyDeleteउर्जा और प्रेरणा देती मुग्धकारी अतिसुन्दर रचना...
ReplyDeleteBahut sundar aur prakriti ke prati apke prrem ko pradarshit kartee rachna.
ReplyDeletePoonam
कहीं भूल कर भी
ReplyDeleteगतिशून्य न हो जाओ
तुम नदी हो
बिना रुके, बहो निरंतर
अत्यंत सुंदर और भावमयी कविता
m yun hi vyathit thi khud par lagi tamaam bandisho se... jab nadi ko hi nahi chhoda jata to m kya hu... sundar kavita...
ReplyDeleteबढ़िया सबक देती रचना भाई जी ! हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteवर्माजी कविता के माध्यम से आपने जीवन के प्रति बहुत बड़ी मगर गहन बात सिखला दी हमें......
ReplyDeleteGood really good . i can understand the context and am enjoying your writing ' तुम नदी हो बहो
ReplyDeleteबिना रूके, निरंतर '
keep it up keep writing like this to inspire the like minded .
Karan
धीरे बहो नदिया :)
ReplyDeleteउत्कंठा कहीं तुम्हारी गति को बहुत तेज न कर दे वर्ना, लोग बाँध बना देंगे और अवरूद्ध कर देंगे- तुम्हारे प्रवाह को. तुम नदी हो बहो बिना रूके, निरंतर पर निर्बाध गति पर ‘थकन’ अंकुश न लगा दे तुम्हारे दिल में भी
ReplyDeletebahut hi badhiya likha hai .
pravah hi jeevan hai...bahut sundar abhivyakti....
ReplyDeletesundar sabdon ke madhyam se aapne kafi kuchh kah dala
ReplyDeleteetni badhiya kavita ke liye aapko badhai .
तुम्हारी गति को
ReplyDeleteबहुत तेज न कर दे
वर्ना,
लोग बाँध बना देंगे और
अवरूद्ध कर देंगे-
तुम्हारे प्रवाह को.
bahut hi achchhi rachanaa....mujhe ye panktiyaan adhik prabhavi lagin...
shubhkamanaayen...
apni rachna vatvriksh ke liye bhejen parichay aur tasweer ke saath
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब लिखा है आपने! बेहद ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है और सामयिक व गहन विचार प्रवाह वाली...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDelete--
दो अक्टूबर को जन्मे,
दो भारत भाग्य विधाता।
लालबहादुर-गांधी जी से,
था जन-गण का नाता।।
इनके चरणों में श्रद्धा से,
मेरा मस्तक झुक जाता।।
बेहतरीन अभिव्यक्ति.''वर्ना नकार देंगे लोग तुम्हे......''लाज़वाब ...इस तरह की चुनिन्दा कवितायेँ हैं जो मुझे पसंद हैं....आपने मेरा ब्लॉग पढ़ा और सराहा उसके लिए बहुत आभारी हूँ...धन्यवाद्...
ReplyDeleteवंदना
Verma ji,
ReplyDeletepal pal jeevant rahne ki prerana deti hui rachna bahut hi prabhav shaali ban padi hai. nadi ki tarah stree purush ko bhi sada jeevant rahna chahiye.Badhai!!
Allow the river to live... or at least allow her to breathe... lovely poem...
ReplyDeletesundar rachna... nadiya bahe bahe re dhara tujhko chalnaa hoga... aise hee bhavo ke sang aapki lekhni ne kamaal dikhaya...
ReplyDeleteसागर मिलन की तमन्ना
ReplyDeleteपर रहना चौकन्ना
मिलन की उत्कंठा कहीं
तुम्हारी गति को
बहुत तेज न कर दे ।
और
निर्बाध गति पर ‘थकन’ अंकुश न लगा दे
तुम्हारे दिल में भी विश्राम की इच्छा न जगा दे
और तुम, कहीं भूल कर भी
गतिशून्य न हो जाओ
वर्ना नकार देंगे लोग तुम्हारे अस्तित्व को ही
और फिर शहर के मलबे के ढेर से
ढक दिये जाओगे
प्रतीक्षारत हैं – बहुमंजिली इमारतें तुम्हारे अस्तित्व पर कब्जा करने हेतु .
नदियों के आज पर कितना गहरा कटाक्ष है । काश हम जाग जायें और बहने दे नदियों को अबाधित, स्वच्छ सुंदर ।
बहुत सुन्दर रचना....बधाई आपको.
ReplyDelete_________________
'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .
सुन्दर प्रवाहमान रचना ! आपकी लेखनी भी निरंतर चलती रहे यही कामना है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद
ReplyDeleteमुट्ठी भर दिवास्वप्न लिये
ReplyDeleteसारी-सारी रात
जागते हुए लोग,...
mohak prastuti !
aabhar.
.
बहुत खुब
ReplyDeleteजीवन-धारा के सुप्रवाह के लिए बहुत उपयुक्त और सार्थक संदेश देती हुई रचना -बधाई स्वीकारें .
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