
हमारी सुरक्षा व्यवस्था तो
चाक-चौबन्द है.
देखते नहीं हमने
हर गली;
हर नुक्कड़;
हर चौराहे पर
यहाँ से हम नज़र रखे हुए हैं;
और परख रहे हैं
हर आम आदमी की गति को,
और फिर
अवसर-बेअवसर
इन्हें गतिशून्य भी कर देते हैं,
ताकि
अबाध गति मिल सके उनको
जो ‘जेड प्लस’ की सुविधा से लैस हैं;
ताकि
दौड़ सकें ‘लाल बत्ती युक्त गाड़ियाँ’
बिना किसी अवरोध के
फर्राटे से.
तुम्हें तो शायद
हमारे काम के बोझ का
अन्दाजा भी नहीं होगा
’उगाही’ से लेकर
आँकड़ों के संवर्धन को रोकने के लिये
रात के अन्धेरे में
रेल की पटरियों पर
लावारिश लाशें रखने तक का काम
हमें करना पड़ता है.
क्या तुमने महसूस नहीं की
वारदात स्थल को छोड़कर
हर स्थान पर हमारी मौजूदगी ?
या शायद तुमने देखी ही नहीं है
घटनास्थल पर पहुँचकर
विवादास्पद और अनसुलझे
जाँच परिणाम तक पहुँचने की
हमारी तत्परता
इस प्रक्रिया में हम अब तो
फारेंसिक जाँच, नार्को टेस्ट जैसे
भारी भरकम शब्द भी शामिल कर लिये हैं.
अब तो यकीन हो गया होगा कि
हमारी सुरक्षा व्यवस्था
दुरूस्त और चाक-चौबन्द है.
झन्नाटा हुआ व्यंग।
ReplyDeleteekdam sahi kaha hai aapne
ReplyDeletedeepti shrama
बस हमेशा की तरह कागजों में दुरूस्त और चाक-चौबन्द है..... बहुत सटीक रचना...आभार
ReplyDeleteसटीक व्यंग
ReplyDeleteबहुत सटीक और धारदार व्यंग्य रचना ..
ReplyDeleteभिगा-भिगा के मारा है सर... बहुत जबरदस्त व्यंग्य..
ReplyDeleteकरारा कटाक्ष।
ReplyDeleteबहुत करारा व्यंग ....आभार
ReplyDeleteएक सही राजनीतिक कविता ।
ReplyDeleteसटीक दृष्टि ..
ReplyDeleteसटीक
ReplyDeleteवाह!! किस तरह से सच्चाई सामने रख दी है जबरदस्त प्रहार है व्यवस्था पर.लेकिन ये तो हैं चिकने घड़े इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता उलटे हमें ही पढ़ कर ग्लानी होती है अपनी असमर्थता पर
ReplyDeletesir aapne bhi suraksh chakra ka sting operation kar dala :)
ReplyDeleteबहुत ही सटीक और तेज शब्द प्रस्तुति, आभार ।
ReplyDeleteस्थिति गम्भीर है पर काबू में है :)
ReplyDeleteवारदात स्थल को छोड़कर
ReplyDeleteहर स्थान पर हमारी मौजूदगी ?
बिलकुल ..हमारी सुरक्षा व्यवस्था दुरूस्त और चाक-चौबन्द है..
ज़बरदस्त व्यंग के माध्यम से सटीक कटाक्ष ...
सटीक कटाक्ष।
ReplyDeleteयकीन तो पहले भी था । अब यकीन पर मुहर भी लग गई । बढ़िया व्यंग ।
ReplyDeleteधारदार कटाक्ष्………………मगर कहीं जूँ भी नही रेंगेगी।
ReplyDeleteवास्तविक ज़मीनी स्थिति को दर्शाती एक सुन्दर रचना....
ReplyDeleteवास्तविक ज़मीनी स्थिति को दर्शाती एक सुन्दर रचना....
ReplyDeleteसटीक निशाना ।
ReplyDeleteअब तो विश्वास करना ही पड़ेगा..
ReplyDeleteसटीक..
...behatreen !!!
ReplyDeleteवारदात के स्थल को छोड कर हर जगह हमारी मौजूदगी
ReplyDeleteयही तो दिखलाती है कि कितनी चाक चौबंद है सुरक्षा व्यवस्था । जोरदार व्यंग ।
hamari lachar suraksha vayvastha par karara vyang....arthpurn rachna ke liye badhai...
ReplyDeleteसही कटाक्ष कसा दिल्ली की क़ानून व्यवस्था पर वर्मा साहब !
ReplyDeleteसटीक सार्थक व्यंग्य !!!
ReplyDeleteसन्नाटे में गूँज की तरह है आपकी यह रचना.बधाई.
ReplyDeleteबहुत खूब ... तेज़ धार से लिखा व्यंग है ... हक़ीकत के बहुत करीब बैठ कर लिखा व्यंग .... ये सच है आज बार वी आई पी ही नागरिक रह गये हैं बाकी सब तो नागरिक की श्रेणी में ही नही आते ....
ReplyDeleteवारदात स्थल को छोड़कर
ReplyDeleteहर स्थान पर हमारी मौजूदगी ?
तीखे वार हैं वर्मा जी। हकीकत को बयां करती रचना।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
यहाँ से हम नज़र रखे हुए हैं
ReplyDeleteऔर परख रहे हैं
हर आम आदमी
इन्हें गतिशून्य भी कर देते हैं,
वाह !!!! अब इससे ज्यादा चौकस व्यवस्था क्या हो सकती है ! बहुत
दिनों के बाद झन्नाटेदार व्यंग्य पढने को मिला ! आभार !
क्या तुमने महसूस नहीं की
ReplyDeleteवारदात स्थल को छोड़कर
हर स्थान पर हमारी मौजूदगी ?
क्या बात है वर्मा जी. खूब करारा थप्पड़ है.
सरल शब्दों में जटिल विषय का बखूबी चित्रण किया है आपने. आजकल सही में सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर यही हो रहा है. सुन कर व देख कर मन दुखी हो जाता है.
ReplyDeleteक्या तुमने महसूस नहीं की
ReplyDeleteवारदात स्थल को छोड़कर
हर स्थान पर हमारी मौजूदगी
धारदार व्यंग्य रचना ..........
सटीक व्यंग......
ReplyDeleteसमसामायिक और असरदार व्यन्ग्य ...
ReplyDeleteबेहतर व्यंग्य करती रचना...
ReplyDeletebehad asardaar hai ,magar unhe bhi nazar aani chahiye ye tasvir jo aadat se baaz nahi aate kabhi .ati uttam hai .
ReplyDeleteaptly executed satire!
ReplyDeleteregards,
कविता भी...व्यंग्य भी...बढ़िया है.
ReplyDelete_________________________
'पाखी की दुनिया' में- 'डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !'
बढ़िया है भाई जी !
ReplyDeleteबहुत सटीक !!
ReplyDeleteकमाल है... बहुत ही सटीक...
ReplyDeleteआपकी रचनायें समय की मांग पर लिखी गयी होती हैं ....
ReplyDeleteऔर हर बार की तरह ....बेहतरीन भाव .....!!
Bahut Khub...
ReplyDeleteसटीक शानदार व्यंग। बधाई।
ReplyDeletewah.ati sunder.
ReplyDeleteधारदार :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
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