Tuesday, October 5, 2010

रोटियों का फ्लैगमार्च ~~


धुप्प अन्धेरा
भागते हुए लोग;
मुट्ठी भर दिवास्वप्न लिये
सारी-सारी रात
जागते हुए लोग,
बियाबाँ से गुजरे
तो महफिल में ठहरे;
कभी अपनों की चीख सुन
हो गये बहरे,
जिस्म छलनी-छलनी
सतरंगी लिबास,
शातिर निगाहें
कातिल बाहें
तनहाई का शोर
सूरज की आहट हुई
लो हो गई भोर,
जिस्म पर छिपकली
लाशें हैं अधजली
नाली में कंकाल
कभी बाढ़ -
तो कभी अकाल,
लहुलुहान सूरज छिप गया
पहाड़ी के पीछे,
रक्तबीज दम तोड़ रहे
झाड़ी के पीछे,
रिश्तों का तिलिस्म;
बेदम सा जिस्म
खानाबदोश नागर
यायावर सवाल
लोटे में सागर
रोटियों का फ्लैगमार्च
भूख का आत्मसमर्पण,
शक्लें जब पहचानी
हैरान हो गया दर्पण
.
घुटने के बल चलना है
सफ़र अभी जारी है;
कन्दील बुझने तक
सफ़र अभी जारी है

35 comments:

  1. घुटने के बल चलना है

    सफ़र अभी जारी है;

    कन्दील बुझने तक

    सफ़र अभी जारी है

    bahut khoobsurat nazm ....

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  2. घुटने के बल चलना है

    सफ़र अभी जारी है;

    कन्दील बुझने तक

    सफ़र अभी जारी है ........
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति......आभार..

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  3. जिस्म पर छिपकली

    लाशें हैं अधजली

    नाली में कंकाल

    कभी बाढ़ -

    तो कभी अकाल,

    बेहतरीन रचना वर्मा साहब ! हकीकत से रूबरू करवाती !

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  4. लोटे में सागर

    रोटियों का फ्लैगमार्च

    भूख का आत्मसमर्पण,

    शक्लें जब पहचानी

    हैरान हो गया दर्पण

    गहरी संवेदनाये व्यक्त करती पंक्तियाँ.

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  5. लफ्ज़ भी भारी है,
    चित्रण भी कलाकारी है,
    ये रचना सुनाने के लिए,
    हम आपके आभारी है

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  6. बहुत सुन्दर बिम्ब विधान ...
    संत्रास को, अनिश्चय को दर्शाती हुई सुन्दर रचना.

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  7. ओह ..कैसा विभत्स मंज़र खिंच गया इस रचना से ..हकीकत को कहती बहुत संवेदनशील रचना ..

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  8. धुप्प अंधेरा
    बढ़ रही
    धुकधुकी है
    धुप्प अंधेरों से ही निकलती
    धुपधुपी है।
    ....कंदील बुझने तक जारी सफर रोशनी की संभावना लिए होती है।
    ....चिंतन के बाध्य करती कविता।

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  9. बहुत सुन्दर रची गढ़ी कविता।

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  10. bhukh or gribi ki drd bhri dastaan khubsurt alfaazon men pesh kr mrm bdhaa diyaa jnab. akhtar khan akela kota rajsthan

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  11. घुटने के बल चलना है

    सफ़र अभी जारी है;

    कन्दील बुझने तक

    सफ़र अभी जारी
    bahut hi khoobsurat likha hai .

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  12. जानदार काव्य !

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  13. वाह ! बड़ी गहरी अभिवयक्ति है

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  14. घुटने के बल चलना है

    सफ़र अभी जारी है;

    कन्दील बुझने तक

    सफ़र अभी जारी है ........
    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

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  15. घुटने के बल चलना है

    सफ़र अभी जारी है;

    कन्दील बुझने तक

    बेहतरीन रचना ......

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  16. बेहद गहन और सोचने को बाध्य करती अभिव्यक्ति।

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  17. बहुत कठिन है ये डगर ।

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  18. रोटियों का फ्लैगमार्च...गहरे भावों को सजोती है यह उत्तम कविता...बधाई.
    __________________________
    "शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...

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  19. bahut sundar bhavapoorn rachana ....abhaar

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  20. बियाबाँ से गुजरे तो महफिल में ठहरे;
    कभी अपनों की चीख सुन हो गये बहरे ...

    जीवन की हक़ीकत दिखा दी आपकी इस बेमिसाल रचना ने ,.... बहुत प्रभावी लिखा है ... ज़मीनी सचाई ...

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  21. Dunia ka ghinauna chehra jise hamesha dekh kar bhi undekha kar dena chahte hain... is kavita se saamne aa hi gaya...

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  22. बहुत बढ़िया और दिलचस्प रचना! सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको एवं आपके परिवार को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!

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  23. लोटे में सागर

    रोटियों का फ्लैगमार्च

    भूख का आत्मसमर्पण,

    शक्लें जब पहचानी

    हैरान हो गया दर्पण
    उमदा रचना। बधाई।

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  24. लोटे में सागर
    रोटियों का फ्लैगमार्च
    भूख का आत्मसमर्पण,
    शक्लें जब पहचानी
    हैरान हो गया दर्पण
    ...गहरी संवेदनशील अभिवयक्ति ...
    आपको एवं आपके परिवार को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!

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  25. जिस्म पर छिपकली

    लाशें हैं अधजली

    नाली में कंकाल

    कभी बाढ़ -

    तो कभी अकाल,

    वाह क्या बात है ....
    हकिकात बयानी और फिर उम्मीद कि बात ...
    बहुत सुन्दर !

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  26. मन को झन्झना देने वाली एक सशक्त रचना !

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  27. अनगिन पाँव होते हुए भी

    अपने पैरों पर

    कब चली है भीड़ !! ..

    behatreen prastuti.

    .

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  28. घुटने के बल चलना है

    सफ़र अभी जारी है;

    कन्दील बुझने तक

    सफ़र अभी जारी
    verma sir bhut accha likha hai apne
    kripya yaha bhi aye aur apna ashirvad de

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  29. उफ्फ्फ!!!! के सिवाय क्या कहूँ अब. सर चकरा गया पढ़ कर इतना कड़वा सच. आभार

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  30. शक्लें जब पहचानी
    हैरान हो गया दर्पण .
    घुटने के बल चलना है
    सफ़र अभी जारी है;
    कन्दील बुझने तक
    सफ़र अभी जारी है
    --
    बहुत ही जीवट की रचना!
    --
    न खत्म होने वाले सफर को आपने
    सुन्दर शब्दों में बाँधा है!

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  31. bahut hi accha likha hai aapne...jaise jindagi

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  32. क्या आप एक उम्र कैदी का जीवन पढना पसंद करेंगे, यदि हाँ तो नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते है :-
    1- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
    2- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

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