Monday, May 3, 2010

अपनी रोटी छीन ~~

एक–दो–तीन

अपनी रोटी छीन

.

बाजुएँ उठा

क्यूँ है तूँ दीन

.

बिखर गये हैं

फिर से उनको बीन

.

नज़रें तूँ खोल

मत हो इतना लीन

.

खिसकने न दे

पैरों तले की जमीन

.

सच्चाई देख

तुम भी हो ज़हीन

.

सुलझाओ उलझन

मन ना कर मलीन

.

नागों के दंश

उठा लो अपनी बीन

.

एक–दो–तीन

अपनी रोटी छीन

46 comments:

Udan Tashtari said...

यूँ तो मिलने से रहा हक...अब छीनना ही होगा.

बढ़िया रचना.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत बढ़िया ... छोटी छोटी पंक्तियों से बड़ी बड़ी बातें !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

वाकई में हक तो अब छीनना ही पड़ेगा.... दो लाइना में बहुत सुंदर कविता....

मनोज कुमार said...

बिखर गये हैं
फिर से उनको बीन
बहुत अच्छे,
लाजवाब! बेहतरीन!!

Razia said...

शब्दों की कंजूसी पर भावों की दरियादिली

Shri"helping nature" said...

shandar naujavano ki aaj ki sthti ko dekhte hue likhi gyiiiii rachna

kshama said...

नागों के दंश

उठा लो अपनी बीन ..
Hameshaki tarah gazab dhaya hai!

Dev K Jha said...

बढिया है... हम मांगे मिलता नहीं छीन सके तो छीन....

डॉ टी एस दराल said...

नए अंदाज़ में बढ़िया प्रस्तुति।
हक़ तो ऐसे ही मिलता है।

रवि कुमार, रावतभाटा said...

छोटी बंदिश में एक बड़ी रचना...
बेहतरीन...

दिलीप said...

bada badhiya tuktak sirji...

राज भाटिय़ा said...

वो दिन दुर नही....

कडुवासच said...

.... बेहतरीन व प्रसंशनीय रचना !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया रचना...सन्देश देती हुई...छोटी छोटी पंक्तियों में गज़ब की प्रस्तुति है

Shekhar Kumawat said...

aaj ka sach he ye


bahtrin

bahut badhai

shekhar kumawat

राजकुमार सोनी said...

इसे कहते हैं रचना।
रोटियों की संख्या बढ़ भी सकती है। एक-दो तीन चार, अपनी रोटी गिन यार।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

श्रेष्ठ सीपिकाएँ!

Jyoti said...

सच्चाई देख

तुम भी हो ज़हीन

बेहतरीन व प्रसंशनीय रचना ...............

.

vandana gupta said...

sundar sandesh.

mukta mandla said...

एक बेहतरीन रचना
काबिले तारीफ़ शव्द संयोजन
बेहतरीन अनूठी कल्पना भावाव्यक्ति
सुन्दर भावाव्यक्ति .साधुवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com

Urmi said...

बहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!

Satish Saxena said...

यही ज्योति जलाते चलो भाई जी ! शुभकामनायें

रचना दीक्षित said...

हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ, सच तो यही है .यही है आज के जीवन का यथार्थ

वाणी गीत said...

एक दो तीन ...अपनी रोटी छीन ...
एक गीत की पंक्तियाँ याद आ रही है ...
जिंदगी भीख में नहीं मिलती ...
अपना हक संगदिल ज़माने से छीन पो तो कोई बात बने ...!!

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही लाजवाब ... छोटे छोटे बँध में बाँध कर लंबी बात कह दी है वर्मा जी ....

स्वप्निल तिवारी said...

achha prayog hai ..teesre couplette me.. :been " jaise anchalik shabd ka prayog achha laga

sumit said...

ek do teen ,mehnat majduri kar apni
roti kama

arvind said...

एक–दो–तीन

अपनी रोटी छीन

...लाजवाब! बेहतरीन!!

hem pandey said...

'एक–दो–तीन

अपनी रोटी छीन '

- बिन मांगे मां भी अपनी संतान को दूध नहीं पिलाती.

Anonymous said...

बहुत सुंदर कविता ! हमारे देश से भूखमरी कब जाएगी !कमाल की भाषा है गोली की तरह छूटने के बाद सीधे मर्म पर लगती है ! आभार !

Ra said...

sara chakkar roti kaa hi hai ....hame bhi usaki bhookh hai


http://athaah.blogspot.com/

जितेन्द़ भगत said...

रजि‍या जी के शब्‍दों को दोहराऊॅगा-
शब्दों की कंजूसी पर भावों की दरियादिली

Anonymous said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...अंतर्मन के भाव !!
____________________
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com

दीपक 'मशाल' said...

Lajawaab kar diya

कविता रावत said...

एक–दो–तीन
अपनी रोटी छीन
बाजुएँ उठा
क्यूँ है तूँ दीन
..घुटकर, शोषित पीड़ित बनकर जीना भी क्या जीना ..
अपने अन्दर की शक्ति को पहचान कर अपनी दीनता त्याग कर मुशिबतों का डटकर सामना करने की प्रभावशाली प्रस्तुति .......
हार्दिक शुभकामनाएँ

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह कमाल कविता.... बधाई.

rashmi ravija said...

इतनी कम पंक्तियों में इतनी गहरी बात...बहुत खूब

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

जागो.....
स्पष्ट सन्देश!
साधुवाद!

shikha varshney said...

kam shabdon men kafi kuchh kah dia aapne.
badhiya rachna.

Tej said...

pahli baar aap ke blog par aaya hun par maja pura paya hun. badiya.

Gyan Dutt Pandey said...

अच्छी अलख जगाई आपने इस कविता के माध्यम से।

Anonymous said...

बढ़िया रचना...

kshama said...

Ek iltija hai..Apne blog,"Simte Lamhen" pe maine ek dil dahlane wali aap beeti post kee hai..matru diwas ke awsarpe...aap gar padhen to khushi hogi..

ज्योति सिंह said...

nirashaa ko todti hui rachna .sundar

रंजू भाटिया said...

कम लफ्जों में बहुत गहरी बात का दी है आपने ..बेहतरीन रचना

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत ही सरल ढंग से जीवन के सत्य को उद्घाटित कर दिया आपने। बधाई।
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