शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

कतवारू गिनता है छाले ~~

अरमानों के इर्द गिर्द मकड़ी के जाले

चन्दन सा मन पर नाग काले-काले

.

सूरज से बहस करके लौटता है रोज

साझ ढलते कतवारू गिनता है छाले

.

सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही

अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले

.

इनकी शिकस्त तो हो ही नहीं सकती

हार की आहट से ये बदल लेंगे पाले

.

अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में

ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले

42 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सरल भाषा में गहराई व्यक्त कर दी ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

लोकतंत्र में भी मुंह पर ताले हैं...सही बात कह दी है....

कतवारू ....मुझे नहीं समझ आया..कि क्या होता है?

कडुवासच ने कहा…

इनकी शिकस्त तो हो ही नहीं सकती
हार की आहट से ये बदल लेंगे पाले
.... बहुत खूब,प्रसंशनीय रचना !!!

M VERMA ने कहा…

@ sangeeta swarup
आम आदमी का प्रचलित नाम

Alpana Verma ने कहा…

अभिव्यक्ति की आजादी है,
लोकतंत्र में ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले

वाह! बहुत सही लिखा है.वर्तमान की सच्चाई.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

अभिव्यक्ति की आजादी है, लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले

बहुत खूब।

आपकी रचनाओ में बड़ी गहराई होती है वर्मा जी ।

Razia ने कहा…

सार्थक बहस तो बगले झाँकता रहा
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले
सार्थक बात है हालात तो यही हैं ----------
बहुत सुन्दर गज़ल

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

Bahut sundar Verma Sahab !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

Bahut sundar Verma Sahab !

kshama ने कहा…

अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में

ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
Behad asardar!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सार्थक बहस तो बगले झाँकता रहा

अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले

.yahi hota hai, bahut saarthak rachna

शेफाली पाण्डे ने कहा…

bahut khoob....

Kumar Jaljala ने कहा…

वर्मा साहब आप अच्छा लिख रहे हैं। जलजला आपको सलाम करता है और एक अच्छी रचना के लिए आपको बधाई देता है। इसे कहते हैं गजल। आपकी गजल को देखकर मुझे दुष्यंत याद आ गए। गोदीलाला से पूछिएगा उन्होंने कभी दुष्यंत को पूरा पढ़ा है क्या। आपको धन्यवाद।

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले

बिल्कुल सच के करीब से जाती एक बेहतरीन ग़ज़ल..वर्मा जी बधाई

Udan Tashtari ने कहा…

जबरदस्त अभिव्यक्ति!!

Jyoti ने कहा…

सूरज से बहस करके लौटता है
रोज साझ ढलते कतवारू गिनता है छाले.....

बहुत खूब...........

Himanshu Pandey ने कहा…

"सार्थक बहस तो बगले झाँकता रहा
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले"..

’झाँकता रहा’ के स्थान पर ’झाँकती रही’ हो जाय तो कैसा हो !
खूबसूरत रचना । आभार ।

sumit ने कहा…

katwaru se accha patwaru hota

vandana gupta ने कहा…

nishabd kar dete hain.............kya kahun........har baar ki tarah umda prastuti.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सूरज से बहस करके लौटता है रोज

साझ ढलते कतवारू गिनता है छाले

कमाल की गज़ल, वो भी शब्दों के जाल में उलझाए वगैर. बहुत सुन्दर.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जी

जितेन्द़ भगत ने कहा…

कतवारू शब्‍द से मैं भी परि‍चि‍त हुआ, आभार।
क्‍या ये देशज शब्‍द है ?

Unknown ने कहा…

wah

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

सूरज से बहस करके लौटता है रोज
साझ ढलते कतवारू गिनता है छाले..

अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले...

अच्छी बन पड़ी है ग़ज़ल...आभार...

NaMaN ने कहा…

aapki pratikriya k liye dhanywad...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और शानदार रचना!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही

अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले

बहुत खूब .....!!

अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में

ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले


वाह ...बहुत सुंदर ...गहरी सोच ......!!

बेनामी ने कहा…

कतवारू के असंख्य दर्द बयान करने की क्षमता आपमें है ! कतवारू भारत का आम नागरिक है !जिसके हिस्से में विकास के नाम पर छाले ही हाथ आते हैं !बहुत बहुत बधाई स्वीकारें !

श्यामल सुमन ने कहा…

सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले

बहुत खूब वर्मा जी। कभी की लिखी ये पंक्तियाँ याद आयीं-

बड़ी खबर बन जाती चटपट बड़े लोग की खाँसी भी
बेबस के मरने पर चुप्पी कैसी यहाँ मुखरता है

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

अजय कुमार ने कहा…

यथार्थपरक रचना

hem pandey ने कहा…

'अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में

ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले'

- करार व्यंग्य

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

ताले न भी हों तो सुनने वाले बहरे हो गये हैं। :(

Kulwant Happy ने कहा…

अद्बुत! मुँह पर ताले, फिर भी अभिव्यक्ति की आजादी है।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही

अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले

... sunder gazal.. sahaj aur sunder

अरुणेश मिश्र ने कहा…

समसामयिक सन्दर्भ का नवगीत ।
प्रशंसनीय ।

रचना दीक्षित ने कहा…

इनकी शिकस्त तो हो ही नहीं सकती हार की आहट से ये बदल लेंगे पाले . अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
उफ्फ्फ !!!! लाजवाब ,कमाल है !!!!!!!!!!!!!!बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव के साथ लाजवाब रचना! बधाई!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

क्या बात है..............!!!

सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले

इनकी शिकस्त तो हो ही नहीं सकती
हार की आहट से ये बदल लेंगे पाले

अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले

........बहुत सुन्दर!! "मुँह पर हैं ताले" लाजवाब..

रंजू भाटिया ने कहा…

अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले....बहुत सही कहा आपने आम ज़िन्दगी का सच है यह ...शुक्रिया

Shri"helping nature" ने कहा…

shandaar

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले
आज के हालत का सटीक चित्रण .....

अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले

बहुत ही ग़ज़ब का शेर है ये ... समाज को आईना दिखाता ...
आपकी इस ग़ज़ल में आज के हालात का हूबहू चित्रण है ....

ज्योति सिंह ने कहा…

अरमानों के इर्द गिर्द मकड़ी के जाले चन्दन सा मन पर नाग काले-काले . सूरज से बहस करके लौटता है रोज साझ ढलते कतवारू गिनता है छाले
bahut hi badhiya