अरमानों के इर्द गिर्द मकड़ी के जाले
चन्दन सा मन पर नाग काले-काले
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सूरज से बहस करके लौटता है रोज
साझ ढलते कतवारू गिनता है छाले
.
सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले
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इनकी शिकस्त तो हो ही नहीं सकती
हार की आहट से ये बदल लेंगे पाले
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अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
42 comments:
सरल भाषा में गहराई व्यक्त कर दी ।
लोकतंत्र में भी मुंह पर ताले हैं...सही बात कह दी है....
कतवारू ....मुझे नहीं समझ आया..कि क्या होता है?
इनकी शिकस्त तो हो ही नहीं सकती
हार की आहट से ये बदल लेंगे पाले
.... बहुत खूब,प्रसंशनीय रचना !!!
@ sangeeta swarup
आम आदमी का प्रचलित नाम
अभिव्यक्ति की आजादी है,
लोकतंत्र में ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
वाह! बहुत सही लिखा है.वर्तमान की सच्चाई.
अभिव्यक्ति की आजादी है, लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
बहुत खूब।
आपकी रचनाओ में बड़ी गहराई होती है वर्मा जी ।
सार्थक बहस तो बगले झाँकता रहा
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले
सार्थक बात है हालात तो यही हैं ----------
बहुत सुन्दर गज़ल
Bahut sundar Verma Sahab !
Bahut sundar Verma Sahab !
अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
Behad asardar!
सार्थक बहस तो बगले झाँकता रहा
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले
.yahi hota hai, bahut saarthak rachna
bahut khoob....
वर्मा साहब आप अच्छा लिख रहे हैं। जलजला आपको सलाम करता है और एक अच्छी रचना के लिए आपको बधाई देता है। इसे कहते हैं गजल। आपकी गजल को देखकर मुझे दुष्यंत याद आ गए। गोदीलाला से पूछिएगा उन्होंने कभी दुष्यंत को पूरा पढ़ा है क्या। आपको धन्यवाद।
अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
बिल्कुल सच के करीब से जाती एक बेहतरीन ग़ज़ल..वर्मा जी बधाई
जबरदस्त अभिव्यक्ति!!
सूरज से बहस करके लौटता है
रोज साझ ढलते कतवारू गिनता है छाले.....
बहुत खूब...........
"सार्थक बहस तो बगले झाँकता रहा
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले"..
’झाँकता रहा’ के स्थान पर ’झाँकती रही’ हो जाय तो कैसा हो !
खूबसूरत रचना । आभार ।
katwaru se accha patwaru hota
nishabd kar dete hain.............kya kahun........har baar ki tarah umda prastuti.
सूरज से बहस करके लौटता है रोज
साझ ढलते कतवारू गिनता है छाले
कमाल की गज़ल, वो भी शब्दों के जाल में उलझाए वगैर. बहुत सुन्दर.
बहुत सुंदर जी
कतवारू शब्द से मैं भी परिचित हुआ, आभार।
क्या ये देशज शब्द है ?
wah
सूरज से बहस करके लौटता है रोज
साझ ढलते कतवारू गिनता है छाले..
अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले...
अच्छी बन पड़ी है ग़ज़ल...आभार...
aapki pratikriya k liye dhanywad...
बहुत सुन्दर और शानदार रचना!
सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले
बहुत खूब .....!!
अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
वाह ...बहुत सुंदर ...गहरी सोच ......!!
कतवारू के असंख्य दर्द बयान करने की क्षमता आपमें है ! कतवारू भारत का आम नागरिक है !जिसके हिस्से में विकास के नाम पर छाले ही हाथ आते हैं !बहुत बहुत बधाई स्वीकारें !
सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले
बहुत खूब वर्मा जी। कभी की लिखी ये पंक्तियाँ याद आयीं-
बड़ी खबर बन जाती चटपट बड़े लोग की खाँसी भी
बेबस के मरने पर चुप्पी कैसी यहाँ मुखरता है
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
यथार्थपरक रचना
'अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले'
- करार व्यंग्य
ताले न भी हों तो सुनने वाले बहरे हो गये हैं। :(
अद्बुत! मुँह पर ताले, फिर भी अभिव्यक्ति की आजादी है।
सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले
... sunder gazal.. sahaj aur sunder
समसामयिक सन्दर्भ का नवगीत ।
प्रशंसनीय ।
इनकी शिकस्त तो हो ही नहीं सकती हार की आहट से ये बदल लेंगे पाले . अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
उफ्फ्फ !!!! लाजवाब ,कमाल है !!!!!!!!!!!!!!बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर भाव के साथ लाजवाब रचना! बधाई!
क्या बात है..............!!!
सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले
इनकी शिकस्त तो हो ही नहीं सकती
हार की आहट से ये बदल लेंगे पाले
अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
........बहुत सुन्दर!! "मुँह पर हैं ताले" लाजवाब..
अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले....बहुत सही कहा आपने आम ज़िन्दगी का सच है यह ...शुक्रिया
shandaar
सार्थक बहस तो बगले झाँकती रही
अनर्गल प्रलापों के छप गये रिसाले
आज के हालत का सटीक चित्रण .....
अभिव्यक्ति की आजादी है लोकतंत्र में
ये अलग बात है कि मुँह पर हैं ताले
बहुत ही ग़ज़ब का शेर है ये ... समाज को आईना दिखाता ...
आपकी इस ग़ज़ल में आज के हालात का हूबहू चित्रण है ....
अरमानों के इर्द गिर्द मकड़ी के जाले चन्दन सा मन पर नाग काले-काले . सूरज से बहस करके लौटता है रोज साझ ढलते कतवारू गिनता है छाले
bahut hi badhiya
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