Tuesday, April 13, 2010

बिना तेल का तिल मिला ~~

बेवजह तो नहीं

वह रहा है -

तिलमिला,

उसके हिस्से

बिना तेल का

तिल मिला.

****

वह रूठी थी

मैनें तो उसे

मना ली,

पर इसके लिये

मुझको तो

ले जाना पड़ा उसे

मनाली.

32 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

चाकर है तो नाचा कर
ना चाकर तो ना नाचा कर

बहुत बढ़िया वर्मा जी...
लाजवाब...!!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

हमेशा की तरह इस बार भी शब्दों का खेल दिलचस्प है !

Udan Tashtari said...

चलो मनाली ही सही..कम से कम मान तो गई.

बढ़िया.

कडुवासच said...

... कुछ समय से गजब की तुकबंदीपूर्ण रचनाएं पढने मिल रहीं है ...बेहद ही प्रसंशनीय रचनाएं, बहुत बहुत बधाई!!!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आपने मना ली?
गए
मनाली!
यह क्यों नहीं बताते
कि इस बात पर
आप तो हँसते रहे
खिलखिला!
उसके घर वाले
कितने गए
तिलमिला।
--- शब्दों के साथ किए गए ये छोटे-छोटे प्रयोग काफी रोचक लगते हैं।

अजित गुप्ता का कोना said...

शब्‍दों का अच्‍छा प्रयोग, बधाई।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर, जबरदस्त कंपोजिशन.

रामराम.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब शब्दों का प्रयोग....बहुत बढ़िया...

kshama said...

Wah! Til mila aur manali...!Aap gazab ke mahir hain shabdon se khelne me...aur sandhi vichhed karne me!

Anonymous said...

बहुत खूब

Jyoti said...

शब्दों का खेल दिलचस्प है !

shama said...

बेवजह तो नहीं

वह रहा है -

तिलमिला,

उसके हिस्से

बिना तेल का

तिल मिला.
Kya maharat hasil hai aapko!

मनोज कुमार said...

लाजवाब!

रश्मि प्रभा... said...

are waah manane ke liye manali......

दिगम्बर नासवा said...

वह रूठी थी
मैनें तो मना ली,
पर इसके लिये मुझको तो
ले जाना पड़ा उसे मनाली ..

बहुत खूब वर्मा जी ... इसी बहाने आप भी गर्मी से दूर ठंडक में आ गये ...
बहुत लाजवाब ...

श्रद्धा जैन said...

Manali le jana ......... waah ji aise hi sab manaya kare.....

:-)

डॉ टी एस दराल said...

बहुत बढ़िया है जी।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मनाली पहुँच
शुरू हुआ फिर
यह सिलसिला,
कुर्ता पजामा
मैं नाप का
सिलवाना चाहता था
वो खरीद लाई
सिलसिला !

Gyan Dutt Pandey said...

शब्द तो Rubic Cube का मजा देते हैं। कई कॉम्बिनेशन में ढ़ल जाते हैं।

रंजना said...

वाह...दोनों ही क्षणिकाएं बेजोड़ हैं...
दूसरी वाली को पढ़ मुस्कान पसर गयी होंठों पर..
"मनाली" और ''मना ली" का अभिनव प्रयोग किया है आपने..

रंजना said...

वाह...दोनों ही क्षणिकाएं बेजोड़ हैं...
दूसरी वाली को पढ़ मुस्कान पसर गयी होंठों पर..
"मनाली" और ''मना ली" का अभिनव प्रयोग किया है आपने..

Urmi said...

वाह बहुत खूब लिखा है आपने ! चलिए मनाली ले जाना सार्थक हुआ! वैसे मनाली बहुत ही सुन्दर जगह है! ख़ूबसूरत रचना!

अविनाश वाचस्पति said...

तिल तिला

तिल मिला


म नाली

मना ली


न हिली डा
ली... इइइइई

अनामिका की सदायें ...... said...

shabdo ka khel.....lajawab.

दीपक 'मशाल' said...

Pahla wala to bahut hi kamaal ka bana hai par Dhrishtta ke liye muafi chahta hoon Varma sir lekin Mana li ka pryog kachcha sa laga kyonki maine usko mana li, sahi hindi hui kahan hai?

कविता रावत said...

वह रूठी थी
ले जाना पड़ा उसे
मनाली.
..... Chalo bahut achha hai....

Alpana Verma said...

"मनाली" और ''मना ली"

दिलचस्प!dono kshanikayen achchee लिखी हैं.

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत सुंदर रचना...

Neeraj Kumar said...

छोटी सी अत्यंत प्यारी रचनाये,,, क्या कहूँ क्या ना कहूँ... बारम्बार पढता रहा...

कृपया एक बार मेरी नयी गजल अवश्य पढ़ें...
http://knkayastha.blogspot.com/2010/04/blog-post.html
आपकी टिपण्णी की प्रतीक्षा रहेगी...

Anonymous said...

अति सुंदर ! यमक का प्रयोग अच्छा लगा बधाई !

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

gajab ka.... shabdo ka khel khelna aapse seekhe koi.......

अरुण चन्द्र रॉय said...

मजा आ गया.. सुंदर तुकबंदी... सर आपकी हर रचना उत्क्रीसठ होती है