जब भी उसने
हक की बात की
जमाने ने कहा
ना री !
अंततोगत्वा
नाम पड़ गया उसका
नारी
****
निगाहों में
क्यों न उभरे निशान
सवालिया
देखते नहीं देकर ‘एक’
उन्होंने तो
सवा लिया
****
सुनते थे कि
प्यार से लबरेज होकर
मुस्कराती हैं
हसीना
लाख जतन किया पर
वो तो
हंसी ना
39 comments:
वाह क्या ख्याल है....अंतिम पंक्तियाँ कमाल कर गईं हैं
....अदभुत,लाजवाब,बेमिसाल अभिव्यक्ति,बहुत बहुत बधाई !!!!
वाह शब्द से खेलना कोई आप से सीखे...बेहतरीन भावपिरोया आपने अपनी इन क्षणिकाओं से.....लाज़वाब पंक्तियाँ..धन्यवाद वर्मा जी...
कविता का भाव बहुत सुन्दर हैं . बढ़िया प्रस्तुति .... आभार.
यमक अलंकार की अनुपम छटा बिखेर दी आपने तो.
बहुत सुन्दर रचनाएँ
ना री और हंसी ना ..दोनों शब्दों ने गज़ब का कमाल किया है.....सुन्दर रचनाएँ....
अद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी।
मन मोह लिया इन रचनाओ ने
अरे वाह. क्या शब्दों की हेराफेरी की है.
Teeno rachnaon ki aakhari panktine nishabd kar diya..kamal hai!
Wah! Wah! Wah!
सभी काव्यों में अद्भुत प्रयोग किये हैं जी.......
ख़ासकर नारी और हँसी ना तो गज़ब हैं
लगे रहो दादा !
shabdo ki hara-fairi aur usme bhari gahrayi...lajawaab hai.
वाह जी वाह कमाल कर दिया आप ने तो बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता
बहुत शानदार प्रयोग!! आनन्द आया.
nice
wah. shabdon ki kalakari , behatareen.
हमेशा की तरह लीक से हट्कर शानदार भाव लिये उम्दा प्रस्तुति।
जब भी उसने
हक की बात की
जमाने ने कहा
ना री !
सुन्दर रचनाएँ..........
Bahut acghi soch lagi bahut2 badhai..
Bahut khoob !
ना, री!
सच में, जब बच्चे से नाम पूछा गया तो बोला - जॉनी डोण्ट!
जॉनी, ये न करो, जॉनी, वो न करो!
बहुत बढ़िया!
आप ना+री कह सकते है
मगर
हम तो
ना+अरि = नारि ही कहेंगे!
कमाल के शब्द प्रयोग हैं....बिलकुल नायाब :)
कमाल का शब्दांकन,अच्छा भाव, मज़ा आया पढकर!
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया
अच्छा लगा कि आप जैसे शब्द शिल्पी ब्लॉग जगत को आबाद कर रहे हैं ... आप का ब्लॉग बुकमार्क आकर लिया है सदा पढता रहूँगा ... टिप्पणी भले न कर पाऊं ... क्योंकि मै गूगल रीडर का इस्तेमाल करता हूँ पढ़ने के लिए ... माफी चाहूँगा
सभी रचनाये स्तरीय और सुंदर
नए अंदाज़ के साथ एक बेहतरीन रचना! बेहद ख़ूबसूरत भाव लिए लाजवाब रचना! बढ़िया लगा!
शब्दों का सुन्दर प्रयोग ।
bahut hi sundar abhivyakti sari ki sari ek se badh kar ek.
poonam
नारी सवालिया और हसीना .. सन्धि न होने के बावज़ूद कवि का जबरदस्त सन्धि विग्रह ।
सुंदर संधि विग्रह ,शानदार प्रस्तुति
बहुत बढ़िया !
वाह ..
वर्मा जी,
मैं ना री..भी नहीं समझ पाई थी अब तक
और हंसी ना....बनी घूमती रही...
बहुत ही सुन्दर प्रयोग शब्दों का....
यह बहुत ही गहन विषय-वस्तु है और आपने जो कहा है उसपर यकीन करने को दिल कर गया है..
समस्त नारियों की ओर से आपके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ
चलते चलते एक हास्य के पुट की धृष्टता कर रही हूँ....(हंस बंद ..से कहीं हसबैंड तो नहीं बना है )
यह हास्य है अन्यथा मत लीजियेगा ....
आपका आभार...
जब भी उसने
हक की बात की
जमाने ने कहा
ना री !
अंततोगत्वा
नाम पड़ गया उसका
नारी
वाह बहुत सुन्दर.
जब भी उसने
हक की बात की
जमाने ने कहा
ना री !
शुरुआत में ही आपने सारांश दे दिया. बहुत खूब.
ये आपकी छोटी-छोटी नोंचियाँ बड़ी असरकारी होती हैं
गज़ब की जादूगरी शब्दों से !!!!!!!!!!!!!वाह.. वाह... वाह अब और क्या कहूँ. तस्वीर ने तो कमाल की छटा बिखेरी है नायब
!!!वाह..!!!
वाह .. शब्दों की उलट फेर की श्रंखला लाजवाब है वर्मा जी ....
ना री और हसी ना .... क्या ग़ज़ब का ख्याल है ...
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