Monday, March 15, 2010

अपनी एक कहानी रक्खो


अपनी एक कहानी रक्खो
अन्दर अपने पानी रक्खो

.
भूखे पेट सोये ही क्यों कोई
माँ का आँचल धानी रक्खो

.
इतने भारी-भरकम क्यूँ हो
कुछ आदत बचकानी रक्खो

.
परिन्दों सा उड़ना चाहो तो
एहसासों को रूहानी रक्खो

.
पदचिह्नों पर चलकर आये
खुद की अब निशानी रक्खो

.
सुखद नींद मे सो जाओगे
सिरहाने याद पुरानी रक्खो

.
भीड़ में खो जाने का खतरा
खुद की खुद निगरानी रक्खो

.
शिकवों को काफूर ही समझो
जो पेशानी पर पेशानी रक्खो

40 comments:

Jyoti said...

भीड़ में खो जाने का खतरा
खुद की खुद निगरानी रक्खो....
अच्छी रचना

kshama said...

पदचिह्नों पर चलकर आये
खुद की अब निशानी रक्खो..
kya baat kahi hai! Harek pankti shandaar hai...sakaratmak arth se bharpoor..

डॉ. मनोज मिश्र said...

.
सुखद नींद मे सो जाओगे
सिरहाने याद पुरानी रक्खो..
bahut sundr laine.
.

समय चक्र said...

बढ़िया रचना हैं
नवरात्र पर्व की शुभकामनाये ....

समय चक्र said...

बढ़िया रचना हैं
नवरात्र पर्व की शुभकामनाये ....

shikha varshney said...

सुखद नींद में सो जाओगे
सिरहाने याद पुरानी रक्खो
बेहतरीन पंक्तियाँ..सुकून पहुंचाती हुई.

संजय भास्‍कर said...

परिन्दों सा उड़ना चाहो तो
एहसासों को रूहानी रक्खो
.
पदचिह्नों पर चलकर आये
खुद की अब निशानी रक्खो
.


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

Behtareen, varmaji

Randhir Singh Suman said...

पदचिह्नों पर चलकर आये
खुद की अब निशानी रक्खो
.भीड़ में खो जाने का खतरा
खुद की खुद निगरानी रक्खो nice

Neeraj Kumar said...

क्या कहने सरजी....
उम्दा ग़ज़ल और अनोखे शब्दों की सुन्दर संरचना... वाह...वाह...waah

डॉ टी एस दराल said...

पदचिह्नों पर चलकर आये
खुद की अब निशानी रक्खो

बहुत खूब कहा ।

Razia said...

भीड़ में खो जाने का खतरा
खुद की खुद निगरानी रक्खो
यथार्थपरक रचना
बहुत सुन्दर

राज भाटिय़ा said...

पदचिह्नों पर चलकर आये
खुद की अब निशानी रक्खो.
बहुत सुंदर जी

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बेहतरीन रचना.

रामराम.

विनोद कुमार पांडेय said...

क्या बात कही आपने..एक एक लाइन विचार करने योग्य..सुंदर विचारों से सजी बढ़िया ग़ज़ल..बधाई वर्मा जी...

Yogesh Verma Swapn said...

भीड़ में खो जाने का खतरा
खुद की खुद निगरानी रक्खो....

सुखद नींद मे सो जाओगे
सिरहाने याद पुरानी रक्खो..

wah wah, sabhi sher lajawaab.

शरद कोकास said...

अपने अन्दर पानी रखो ..अनेक अर्थ हैं इस मिसरे में ।

मनोज कुमार said...

भूखे पेट सोये ही क्यों कोई
माँ का आँचल धानी रक्खो
बेहतरीन अभिव्यक्ति!

Urmi said...

हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने उम्दा रचना लिखा है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भूखे पेट सोये ही क्यों कोई
माँ का आँचल धानी रक्खो

बहुत सुन्दर भाव

पदचिह्नों पर चलकर आये
खुद की अब निशानी रक्खो

बहुत खूब ...

सुखद नींद मे सो जाओगे
सिरहाने याद पुरानी रक्खो

खूबसूरत ख्याल...
आपकी ये ग़ज़ल बहुत पसंद आई....बधाई

रानीविशाल said...

परिन्दों सा उड़ना चाहो तो
एहसासों को रूहानी रक्खो
.
पदचिह्नों पर चलकर आये
खुद की अब निशानी रक्खो

bahut sundar gazal bahut gahare bhaav liye har ek sher apane aap me kamaal hai...dhanywaad.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर और मनभावन!
भारतीय नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!

अजय कुमार said...

अच्छी रचना , दिल को छूने वाली

रंजू भाटिया said...

सुखद नींद मे सो जाओगे
सिरहाने याद पुरानी रक्खो

बहुत खूब कहा आपने शुक्रिया

Rajeysha said...

sabhi lines ekdam sateek hain, aur sarthak. aabhar.

हरकीरत ' हीर' said...

सुखद नींद मे सो जाओगे
सिरहाने याद पुरानी रक्खो..

बहुत खूब .....!!

kavita verma said...

सुखद नींद मे सो जाओगे
सिरहाने याद पुरानी रक्खो..
bahut sunder rachana.

रंजना said...

वाह वाह वाह....लाजवाब....

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...हर शेर मन को मोहने और स्वतः ही वाह करवा देने वाला...
बड़ा ही आनंद आया पढ़कर....बहुत बहुत आभार...

vandana gupta said...

kin lafzon mein tarif karoon.......sabhi ek se badhkar ek.

दीपक 'मशाल' said...

Kabeer ki saakhi ki si hai ye rachna bhi.. achchhi seekh deti hui.

सदा said...

पदचिह्नों पर चलकर आये
खुद की अब निशानी रक्खो..

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का चयन, बेहतरीन प्रस्‍तुति

हितेष said...

सुखद नींद मे सो जाओगे
सिरहाने याद पुरानी रक्खो..

Kya baat kahee hai ! Esee rachna ke liye badhaiya !

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर, प्रत्येक पंक्तिया अपना वजन रखती है । आभार

गुलमोहर का फूल

कडुवासच said...

...बेहद प्रसंशनीय अभिव्यक्ति,बधाई!!!

प्रवीण पाण्डेय said...

आपकी रचना सुन्दर बहुत है,
बनाके सच की निशानी रक्खो ।

Himanshu Pandey said...

"इतने भारी-भरकम क्यूँ हो
कुछ आदत बचकानी रक्खो।"

"इतने भारी-भरकम क्यूँ हो
कुछ आदत बचकानी रक्खो।"-
इन दोनों ने मुग्ध किया । बेहद खूबसूरत रचना । सहजता से बहुत कुछ अभिव्यक्त करती रचना । आभार ।

रचना दीक्षित said...

सुखद नींद मे सो जाओगे
सिरहाने याद पुरानी रक्खो
बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत खूब !!

बेहतरीन रचना !!

दिगम्बर नासवा said...

ग़ज़ब के शेर हैं सब के सब ... किसी एक का चयन बहुत मुश्किल है ...
छोटी छोटी बात मगर गहरी बात ... ये आपकी विशेषता है ....

स्वप्निल तिवारी said...

kuch sher out of the world type hue hain ...behad shandar... jhud ki khud nigrani was awesome .... behar chhoti hai ..aur chooti behar likhna padhana mujhe jadoo jaisa lagta hai ..kuch ek sher ka flow gadbad hai ..so un par ek nazar aur daali ja sakti hai ...mubarak aisi khubsurat ghazal ke liye