भाई साहब ये क्या है...अब यह मत सोचिएगा कि आपने दिल की गहराई से लिखा और मुझे समझ नहीं आया...जो मन में आ गया उसे महान मानने के भ्रम में रहना छोड़िए...कुछ अच्छा लिखिए...भगवान आपकी मन ठंठक पहुंचाएं...
यहाँ भी पश्चाताप, और पुरानी यादें ...बहुत खूब भाई जी ! लगता है कोई महा विद्वान्, गली से झूमते हुए, टहलते हुए , आपको अच्छी नसीहत दे गए हैं वर्मा जी ! अब सिर्फ नाईस और हो जाये तो ....हा...हा...हा... बुरा न मानो होली है ...
एक बार फिर आई हूँ ..... ये अजय जी की टिपण्णी देखी नहीं थी .....रहा नहीं गया इतनी गहरी पकड़ पर ये प्रतिक्रिया देख ...... शायद वो समझ नहीं पाए इनके भाव ....कम शब्दों में तीखा प्रहार ....बहुत कम लोग इस दक्षता में परिपूर्ण होते हैं ....!!
39 comments:
भाई साहब ये क्या है...अब यह मत सोचिएगा कि आपने दिल की गहराई से लिखा और मुझे समझ नहीं आया...जो मन में आ गया उसे महान मानने के भ्रम में रहना छोड़िए...कुछ अच्छा लिखिए...भगवान आपकी मन ठंठक पहुंचाएं...
बहुत खूब भाई.... क्या बात है !!
यहाँ भी पश्चाताप, और पुरानी यादें ...बहुत खूब भाई जी !
लगता है कोई महा विद्वान्, गली से झूमते हुए, टहलते हुए , आपको अच्छी नसीहत दे गए हैं वर्मा जी ! अब सिर्फ नाईस और हो जाये तो ....हा...हा...हा...
बुरा न मानो होली है ...
दिल गहराइयों से लिखी .....बहुत सुंदर रचना...
आपकी ये क्षणिकाएं पढ़ कर डॉ. सरोजनी प्रीतम कि क्षणिकाएं याद आ गयीं....
आपने बहुत सुन्दर रचनाएँ लिखी हैं....बधाई
Saral,sundar rachana!
baut khubsurat kashanikayen hain..nayaab..
Bahut khubsurat gahare bhaav liye in kshanikaao ke liye dhanywaad!
सुन्दर क्षणिकाएं ! आभार !
nice
बहुत ही सुंदरतम क्षणिकाएं.
रामराम.
बढ़िया संजोया वर्मा जी ,
वैसे "उसने छोड़ दिया ...... की जगह 'हमने भी छोड़ दिया .... होता तो और बेहतर !!
सुन्दर...
regards
bahut hi khoobsurat prastuti
वर्मा जी , बढ़िया शब्दों की कलाकारी पेश की है। लुत्फ़ आ गया ।
gazab ki prastuti.
कम शब्दों में सुंदर अभिव्यक्ति
उसने
उसकी बात पर
तवज्जो न दी
देखिये
निगाहों से
बहने लगी नदी
baat chhoo gayi ,sundar rachna
Varma Sir.. kshanikayen mazedaar hain..
वाह अद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ! बिल्कुल सही कहा है आपने! बेहद पसंद आया आपकी ये भावपूर्ण रचना!
वाह आई न ... क्या प्रयोग है ... एक ग़ज़ल का शेर याद आ गया ..
इधर मंदिर, इधर मस्जिद, इधर गुरुद्वार, इधर गिरजा
खुदा के ये सभी घर हैं, जिधर चाहे उधर गिरजा ...
दिल गहराइयों से लिखी .....बहुत सुंदर रचना...
एक से बढ़ कर एक खूबसूरत भावपूर्ण क्षणिकाएँ....बढ़िया लगी..धन्यवाद
तीनो रचनाओं में तिन शब्दों से जिस तरह से आपने इन रचनाओं को मूल रूप दिया है अपने आप में नया तज़रबा है ...मुझे तो भई अछि लगीं... बधाई कुबूल करें...
अर्श
संगीता स्वरूप जी ने बिल्कुल ठीक कहा है। सरोजिनी प्रीतम जी की पंक्तियाँ हैं कि-
सालों की मिहनत सालों की कमाई
सालों ने मिलकर सालों तक खाई
एक और उन्हीं की क्षणिका-
हलवाई की बेटी वृक्षारोपण कार्यक्रम में जाती है
वे पेड़ों की बात बताते हैं ये पेड़ों की समझ जाती है
बहुत अच्छा वर्मा भाई।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
छोटे- छोटे भावों को बड़े करीने से पिरोया है आपने ....कुछ-कुछ हाइकू की तरह ......!१
कल हिंद युग्म में भी आपकी बड़ी अच्छी सी नज़्म पढ़ी .....!!
एक बार फिर आई हूँ .....
ये अजय जी की टिपण्णी देखी नहीं थी .....रहा नहीं गया इतनी गहरी पकड़ पर ये प्रतिक्रिया देख ......
शायद वो समझ नहीं पाए इनके भाव ....कम शब्दों में तीखा प्रहार ....बहुत कम लोग इस दक्षता में परिपूर्ण होते हैं ....!!
बहुत खूब....
गहरे भाव लिये हुये सुन्दर प्रस्तुति ।
उसने
उसकी बात पर
तवज्जो न दी
देखिये
निगाहों से
बहने लगी नदी
वाह बहुत अच्छी लगी ये क्षणिका और पहली भी सुन्दर है
बधाई आपको।
kafi achchhi hai...
zazbaat par pahli baar aana huaa hai... :) :)
एक अरसे से वह आई ना अब तो मैनें छोड़ दिया है देखना भी आईना touching..
mere blog par aane ke liye dhanyvad.
suman 'meet'
kam shabdon me behat samvedansheel abhivyakti ! pehli baar apke blog par aayaa aur abhibhoot ho gaya !
shabdon ka ye khel mujhe achha laga...khel khel me apni baat bhi keh diye...wah!
श्लेष का सुंदर उपयोग करती प्रभावी रचना । मराठी के मोरोपंत जी की याद दिला दी ।
लाज से
पलकें झुकी
चूनर सर की
जब सरकी
कहॉं खो गयी ये अलंकारिक शैली।
लाज से
पलकें झुकी
चूनर सर की
जब सरकी
कहॉं खो गयी ये अलंकारिक शैली।
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. Thanks!
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