Saturday, February 20, 2010

प्यास इतनी बढ़ी ---- क्षणिकाएँ

प्यास इतनी बढ़ी

कि वह जीवन से ऊब गया

अंततोगत्वा,

खबर मिली कि

वह दरिया में डूब गया.

*****

उसने सुना

ज़मीर बेच कर लोग

सुकून से रहते हैं,

उसने भी

ज़मीर बेचने को सोचा

पर उसके ज़मीर को

यह गंवारा न था.

55 comments:

Randhir Singh Suman said...

खबर मिली कि वह दरिया में डूब गया. nice

रानीविशाल said...

बहुत ही गहरी भवनाए लिये सुन्दर अभिव्यक्ति ...आभार!

Razia said...

बहुत सुन्दर भाव

संगीता पुरी said...

सुंदर भाव और अभिव्‍यक्ति !!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

जमीर के आगे मौत का सौदा..!
जमीर वाले को मंजूर नहीं होता....
..अच्छा सन्देश देती है यह कविता.

रवि कुमार, रावतभाटा said...

प्यास इतनी बढ़ी

कि वह जीवन से ऊब गया

अंततोगत्वा,

खबर मिली कि

वह दरिया में डूब गया.

गज़ब...

मनोज कुमार said...

बेहतरीन। लाजवाब।

ताऊ रामपुरिया said...

वाह बहुत ही लाजवाब, शुभकामनाएं.

रामराम.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दोनों क्षणिकाएं बहुत गहरे अर्थ लिए हुए हैं...बहुत अच्छी

राज भाटिय़ा said...

उसने भी

ज़मीर बेचने को सोचा
पर उसके ज़मीर को
यह गंवारा न था.
बहुत सुंदर जज्बात जनाब

Mithilesh dubey said...

बहुत खूब , लाजवाब लगा ।

Udan Tashtari said...

बहुत गहन रचना! वाह!

परमजीत सिहँ बाली said...

सुंदर भाव और अभिव्‍यक्ति !!

वाणी गीत said...

जमीर को जमीर बेचना गंवारा नहीं हुआ ....मतलब जमीर अभी भी जिन्दा था ...जो बेच पाते हैं जमीर तो उनमे भी होता है मगर मारा हुआ ....
भावपूर्ण ...!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

दोनों शब्द-चित्र सुन्दर हैं!

डॉ टी एस दराल said...

वाह ,गागर में सागर।

Yogesh Verma Swapn said...

wah pani hi pani.

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया ....

विनोद कुमार पांडेय said...

वाह वर्मा जी...लाज़वाब....खूबसूरत क्षणिकाएँ

डिम्पल मल्होत्रा said...

दोनों बेहतरीन और लाजवाब क्षणिकाएं ..

kshama said...

Seedhe saral alfaaz aur samandar-si gahari baat!

Urmi said...

बहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! बधाई!

दिगम्बर नासवा said...

ज़मीत बेचने की सोची पर जमीर को ये गवारा न था ...... बहुत ही गहरी सोच ..... लाजवाब लिखा है वर्मा जी ..
पर आज के जमाने में कितने लोग हैं जिनका जमीर बिकने से माना करता है ....

निर्मला कपिला said...

जमीर के आगे मौत का सौदा..!
जमीर वाले को मंजूर नहीं होता..
बहुत सुन्दर और गहरे भाव लिये कविता। शुभकामनायें

vandana gupta said...

gazab kar diya..............bahut hi gahan ..........aaj to tarif ke liye shabd nhi mil rahe.

अजय कुमार said...

गहरी और गूढ़ बात

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुन्दर भाव और सटीक अभिव्यक्ति!

कडुवासच said...

उसने भी, ज़मीर बेचने को सोचा
पर उसके ज़मीर को, यह गंवारा न था.
....बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति,बधाई !!!!

रंजू भाटिया said...

बहुत बढ़िया लगी दोनों ही गहन भाव शुक्रिया

श्रद्धा जैन said...

sach kahte hain ........
pata hai baimaani hi aage bad rahi hai magar kya zameer karne deta hai ........
baimaani chori bhi sabke bas ki baat nahi hai

dhaar tez hai aapki kalam ki

ओम आर्य said...

पीना न आये तो दरिया पाकर भी हम डूब हीं जाते हैं...

Jyoti said...

जमीर के आगे मौत का सौदा..!
जमीर वाले को मंजूर नहीं होता....
..अच्छा सन्देश देती है यह कविता
बहुत अचछी अभिव्यक्ति....

Pushpendra Singh "Pushp" said...

sundar bhav purn post

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

उफ़. क्या बात कही.

रंजना said...

गहरे अर्थ लिए दोनों ही क्षणिकाएं बहुत बहुत सुन्दर !!! लाजवाब !!!

Parul kanani said...

shuru ki panktiyon ne to kamaal kar diya...bahut sundar...

सदा said...

बहुत ही गहरे भावों को प्रस्‍तुति करती ये क्षणिकाएं ।

दिगम्बर नासवा said...

आपको और आपके समस्त परिवार को होली की शुभ-कामनाएँ ...

kshama said...

Holi mubarak ho!

Yogesh Verma Swapn said...

verma ji, holi ki mangalkaamnayen, aapko aur aapke pariwar ko.

Satish Saxena said...

आज तो कुछ अलग सा मिला आपसे ! होली और मिलाद उन नबी की शुभकामनायें

पंकज said...

एक एक क्षण में युगों की बात. बहुत खूब.

Neeraj Kumar said...

वर्मा जी, होली की अनेकों शुभकामनाये...और ह्रदय से आभार की आप मुझे प्रोत्साहित करते रहें हैं...

Mumukshh Ki Rachanain said...

चंद शब्दों में बहुत कुछ
गहरा अहसास कराती दोनों क्षणिकाएं बे मिसाल हैं

बधाई,
होली के इस पावन पर्व पर भी आपको हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त

संजय भास्‍कर said...

रंग बिरंगे त्यौहार होली की रंगारंग शुभकामनाए

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

दीपक 'मशाल' said...

wah.. kamaal fir se.. :)
इस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
(और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)

होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...

Alpana Verma said...

दोनों क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगीं !

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

मन मोरा झकझोरे छेड़े है कोई राग
रंग अल्हड़ लेकर आयो रे फिर से फाग

आपको होली की रंरंगीली बधाई.

Kusum Thakur said...

होली की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई !!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.

Satish Saxena said...

आपके आने से होली का आनंद दोगुना हुआ , आभारी हूँ ! स्नेह के लिए धन्यवाद ! ईश्वर से आपके लिए प्रार्थना होगी !
सादर

ज्योति सिंह said...

उसने सुना

ज़मीर बेच कर लोग

सुकून से रहते हैं,

उसने भी

ज़मीर बेचने को सोचा

पर उसके ज़मीर को

यह गंवारा न था.
bahut hi badi baat kah di is nanhi rachna ne ,holi parv ki aapko haardik shubhkaamnaaye

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही गहरे भावों को प्रस्‍तुति करती ये क्षणिकाएं ।

Unknown said...

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