Tuesday, December 15, 2009

सन्नाटा ~~

मुझे डर लगता है

सन्नाटे से

क्योंकि पहली बार मैंने

इसी सन्नाटे में पढ़ी थी

मंटो की 'खोल दो'

और शोर करता हुआ सन्नाटा

ज़ेहन में आकर बैठ गया था.

क्योंकि इसी सन्नाटे में

उभरती हैं

बलत्कृत हो रही

मासूम नूरों की चीखें

क्रूर अट्टहास के साये तले.

याद करो

उस सन्नाटे को, जब

इलाज के लिए लाये मरीज़ का

गुर्दा निकाल लिया गया था;

जब हूर सी बच्ची

हलाक कर दी गयी

और

माँ बाप की तिलस्मी नींद नही टूटी;

जब किसान चुपचाप

घास की रोटियाँ खाते रहे

और आँकड़े उन्हें

बदस्तूर झुठलाते रहे

जब तन्दूर ने रोटी की बजाय

औरत के जिस्म को भुना था

जब चलती कार में

एक लड़की की आबरू ----

जब --

जब --

हाँ हाँ --

मुझे डर लगता है

सन्नाटे से

पर कब तक

मैं और शायद तुम भी

इस सन्नाटे से डरते रहेंगे !

इससे पहले कि

यह और गहरा जाये

तोडना ही होगा

इसका तिलिस्म

यह सन्नाटा.

अब तोडना ही होगा.

~~

37 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

सब डरते है ऐसे सन्नाटे से..जो किसी के चेहरे की मुस्कान छीन लें..नफ़रत है ऐसे सन्नाटे से जिसके बाद जिंदगी ही वीरान हो जाए...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..धन्यवाद वर्मा जी

अजय कुमार झा said...

वाह वर्मा जी ,

सन्नाटे को आज पहली बार इतने करीब से सुना ..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सच में इस सन्नाटे कि आवाज़ बहुत जोर से सुनाई दी है.....

अति संवेदनशील कविता.....

Udan Tashtari said...

सन्नाटा हर हाल में भय उत्पन्न करता है...तभी सारे भय जो सुप्त मन में बैठे होते है, वो भी उभर आते हैं..बढ़िया रचना..

Unknown said...

sannaata bahut bol raha hai aapki kavita me.....


bahut hi vazandaar rachnaa ke liye saadhuvaad !

अनामिका की सदायें ...... said...

Verma ji
beete hue dino ke katu satyo par teekha prahaar karti hui aapki rachna sannate ke tillism ko todne me saksham hoti hui.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया भावपूर्ण रचना है।

kshama said...

Zabardast rachna hai!

अजित वडनेरकर said...

मंटो की खोल दो कहानी को इस अंदाज से भी याद किया जा सकता है....
बढ़िया अभिव्यक्ति....

अर्कजेश said...

खौफनाक सन्‍नाटा है यह । शर्मनाक भी ।

स्वप्न मञ्जूषा said...

इस सन्नाटे की आवाज़ में आरुषी की चीख भी सुन रही हूँ...
बहुत झन्नाटेदार सन्नाटा है यह..
बधाई....!!

मनोज कुमार said...

इस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती। कोई टीका नहीं लिखी जा सकती। सिर्फ महसूस की जा सकती है।

कडुवासच said...

... behad prabhaavashaali atisamvedansheel abhivyakti !!!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

मंटो!

Yogesh Verma Swapn said...

yes todna hi hoga.

सदा said...

बहुत ही गहराई लिये हुये सुन्‍दर शब्‍द, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बेहतरीन रचना वर्मा साहब ! अफ़सोस कि यही सन्नाटा आज हमारे चारो तरफ पसरा पडा है !

शरद कोकास said...

तोड़ना ही होगा सन्नाटे का तिलिस्म ..क्या बात है ।

अजय कुमार said...

samvedansheel rachana

vandana gupta said...

uff!bahut hi samvedansheel aur rongte khade karne wali rachna likhi hai........aur sach hamesha hi rogte khade karne wala hota hai.......ek dahakta huaa sach......ye sirf aap hi kar sakte hain.

pls visit at - http://vandana-zindagi.blogspot.com

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सारे मुद्दे उठा दिए हैं, एक ही बार में। सन्नाटे में कोई सुन रहा है ?

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सचमुच, बात जब इतनी बढ जाए, तो फिर इंतजार करना समझदारी नहीं।

--------
छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?

Asha Joglekar said...

इस सन्नाटे को तोडना ही होगा । शोर हो शोर चारों तरफ ताकि सन्नाटे की आड लेकर कोई कुछ गलत ना करे ।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

यह सन्नाटा अपने आगोश में न जाने कितने मुस्कान को दबाये बैठा है.

सबको सुनाना जरुरी है यह सन्नाटा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सशक्त रचना!
काबिले तारीफ!

daanish said...

शब्द जब सन्नाटे से निकल कर आते हैं
तो ऐसी एतिहासिक रचना का निर्माण
होता है.....
एहसास कि शिद्दत का
सटीक इज़हार
नमन .

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सन्नाटे को तोड़ने की सफल कोशिश

दिगम्बर नासवा said...

बहुत हो आक्रोश .......... और उस आक्रोश से उपजा सन्नाटा ............और सन्नाटे में गूंजते दिल के भाव ........ सच में बेबसी इंसान से क्या क्या करवाती है ......... आपकी रचना सन्नाटे में किसी चीख से कम नही ..........

निर्मला कपिला said...

इससे पहले कि

यह और गहरा जाये

तोडना ही होगा

इसका तिलिस्म

यह सन्नाटा.

अब तोडना ही होगा
बहुत अच्छी रचना है धन्यवाद और शुभकामनायें

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

योगेन्द्र मौदगिल said...

Behtreen abhivyakti verma g....

Pawan Kumar said...

सन्नाटे में मंटो को पढना ..........अपने आप में एक घटना है.

रवि कुमार, रावतभाटा said...

वाह हुज़ूर...
तिलिस्म को टटोलना ही होगा...
तोड़े जाने के लिए...

अवाम said...

यह और गहरा जाये

तोडना ही होगा

इसका तिलिस्म

यह सन्नाटा.

अब तोडना ही होगा.
sannate ke tilism ko todane ki jarurat hai, par uska dar sab par havi hai or ghatnaye badastur jari hain..

अर्चना तिवारी said...

अति संवेदनशील कविता....

रंजू भाटिया said...

अच्छी लगी आपकी यह रचना ..सन्नाटा सही में दिल को डरा देता है शुक्रिया

संजय भास्‍कर said...

अति संवेदनशील कविता....