मुझे डर लगता है
सन्नाटे से
क्योंकि पहली बार मैंने
इसी सन्नाटे में पढ़ी थी
मंटो की 'खोल दो'
और शोर करता हुआ सन्नाटा
ज़ेहन में आकर बैठ गया था.
क्योंकि इसी सन्नाटे में
उभरती हैं
बलत्कृत हो रही
मासूम नूरों की चीखें
क्रूर अट्टहास के साये तले.
याद करो
उस सन्नाटे को, जब
इलाज के लिए लाये मरीज़ का
गुर्दा निकाल लिया गया था;
जब हूर सी बच्ची
हलाक कर दी गयी
और
माँ बाप की तिलस्मी नींद नही टूटी;
जब किसान चुपचाप
घास की रोटियाँ खाते रहे
और आँकड़े उन्हें
बदस्तूर झुठलाते रहे
जब तन्दूर ने रोटी की बजाय
औरत के जिस्म को भुना था
जब चलती कार में
एक लड़की की आबरू ----
जब --
जब --
हाँ हाँ --
मुझे डर लगता है
सन्नाटे से
पर कब तक
मैं और शायद तुम भी
इस सन्नाटे से डरते रहेंगे !
इससे पहले कि
यह और गहरा जाये
तोडना ही होगा
इसका तिलिस्म
यह सन्नाटा.
अब तोडना ही होगा.
~~
37 comments:
सब डरते है ऐसे सन्नाटे से..जो किसी के चेहरे की मुस्कान छीन लें..नफ़रत है ऐसे सन्नाटे से जिसके बाद जिंदगी ही वीरान हो जाए...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..धन्यवाद वर्मा जी
वाह वर्मा जी ,
सन्नाटे को आज पहली बार इतने करीब से सुना ..
सच में इस सन्नाटे कि आवाज़ बहुत जोर से सुनाई दी है.....
अति संवेदनशील कविता.....
सन्नाटा हर हाल में भय उत्पन्न करता है...तभी सारे भय जो सुप्त मन में बैठे होते है, वो भी उभर आते हैं..बढ़िया रचना..
sannaata bahut bol raha hai aapki kavita me.....
bahut hi vazandaar rachnaa ke liye saadhuvaad !
Verma ji
beete hue dino ke katu satyo par teekha prahaar karti hui aapki rachna sannate ke tillism ko todne me saksham hoti hui.
बहुत बढिया भावपूर्ण रचना है।
Zabardast rachna hai!
मंटो की खोल दो कहानी को इस अंदाज से भी याद किया जा सकता है....
बढ़िया अभिव्यक्ति....
खौफनाक सन्नाटा है यह । शर्मनाक भी ।
इस सन्नाटे की आवाज़ में आरुषी की चीख भी सुन रही हूँ...
बहुत झन्नाटेदार सन्नाटा है यह..
बधाई....!!
इस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती। कोई टीका नहीं लिखी जा सकती। सिर्फ महसूस की जा सकती है।
... behad prabhaavashaali atisamvedansheel abhivyakti !!!
मंटो!
yes todna hi hoga.
बहुत ही गहराई लिये हुये सुन्दर शब्द, बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बेहतरीन रचना वर्मा साहब ! अफ़सोस कि यही सन्नाटा आज हमारे चारो तरफ पसरा पडा है !
तोड़ना ही होगा सन्नाटे का तिलिस्म ..क्या बात है ।
samvedansheel rachana
uff!bahut hi samvedansheel aur rongte khade karne wali rachna likhi hai........aur sach hamesha hi rogte khade karne wala hota hai.......ek dahakta huaa sach......ye sirf aap hi kar sakte hain.
pls visit at - http://vandana-zindagi.blogspot.com
बहुत सारे मुद्दे उठा दिए हैं, एक ही बार में। सन्नाटे में कोई सुन रहा है ?
सचमुच, बात जब इतनी बढ जाए, तो फिर इंतजार करना समझदारी नहीं।
--------
छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?
इस सन्नाटे को तोडना ही होगा । शोर हो शोर चारों तरफ ताकि सन्नाटे की आड लेकर कोई कुछ गलत ना करे ।
यह सन्नाटा अपने आगोश में न जाने कितने मुस्कान को दबाये बैठा है.
सबको सुनाना जरुरी है यह सन्नाटा
सशक्त रचना!
काबिले तारीफ!
शब्द जब सन्नाटे से निकल कर आते हैं
तो ऐसी एतिहासिक रचना का निर्माण
होता है.....
एहसास कि शिद्दत का
सटीक इज़हार
नमन .
सन्नाटे को तोड़ने की सफल कोशिश
बहुत हो आक्रोश .......... और उस आक्रोश से उपजा सन्नाटा ............और सन्नाटे में गूंजते दिल के भाव ........ सच में बेबसी इंसान से क्या क्या करवाती है ......... आपकी रचना सन्नाटे में किसी चीख से कम नही ..........
इससे पहले कि
यह और गहरा जाये
तोडना ही होगा
इसका तिलिस्म
यह सन्नाटा.
अब तोडना ही होगा
बहुत अच्छी रचना है धन्यवाद और शुभकामनायें
बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
Behtreen abhivyakti verma g....
सन्नाटे में मंटो को पढना ..........अपने आप में एक घटना है.
वाह हुज़ूर...
तिलिस्म को टटोलना ही होगा...
तोड़े जाने के लिए...
यह और गहरा जाये
तोडना ही होगा
इसका तिलिस्म
यह सन्नाटा.
अब तोडना ही होगा.
sannate ke tilism ko todane ki jarurat hai, par uska dar sab par havi hai or ghatnaye badastur jari hain..
अति संवेदनशील कविता....
अच्छी लगी आपकी यह रचना ..सन्नाटा सही में दिल को डरा देता है शुक्रिया
अति संवेदनशील कविता....
Post a Comment